माँ के दूध से बढ़ कर कोई मिठाई और माँ के आँचल से बढ़ कर कोई रजाई नहीं होती। "मातृ देवो भवः !" माँ.... धात्री ! अपने जीवन के कीमत पर हमें जीवन देती है। अपने रक्तसे सींच हमारा पोषण करती है। संस्कारों से सुवाषित कर 'जड़ता' नाश करती है। साक्षात ब्रहमा, विष्णु, महेश.... ! 9मई को विश्व मातृ-दिवस मनाया जाता है। मुझे आश्चर्य है कि जिसके बिना हमारा वजूद नहीं है, उसको समर्पित सालमें मात्र एक दिन.... ! फिर भी काम करती मां शीर्षक कविता के साथ उस परब्रह्म रूप को सिर नवाते हैं। विश्व मातृ-दिवस पर माँ तुझे सलाम !!
काम करती मां
--- --- मनोज कुमार
जब मां आटा पीसती थी
तो सिर्फ अपने लिए ही नहीं पीसती थी,
सबके लिए पीसती थी,
झींगुर दास के लिए भी !
मां जब झाड़ू देती थी
तो सिर्फ घर आंगन ही नहीं बुहारती थी
ओसारा, दालान और
झींगुर दास का प्रवास क्षेत्र भी बुहार देती थी।
मां जब बर्तन धोती थी
तो सिर्फ अपना जूठन ही नहीं धोती थी
घर के सभी लोगों के जूठे बर्तन धोती थी
झींगुर दास के चाय पिए कप को भी !
खिले फूल की तरह होता था
जिसकी सुगंध पर सबका हक़ था
झींगुर दास का भी !
उस फूल की सुगंध सबके लिए होती थी
झींगुर दास के लिए भी !
अब समय बदल गया है
घर के काम के लिए बाई है
वह झाड़ू, पोछा, चौका-बर्तन कर देती है
पर मां
अपना घर आज भी बुहार रही है।
माँ की महिमा अवर्णीय! कोटि कोटि प्रणाम!
जवाब देंहटाएंभाव-भीनी कविता के साथ उस परब्रह्म रूप को सिर नवाते हैं। विश्व मातृ-दिवस पर - माँ तुझे सलाम !!
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा व भावपूर्ण रचना लगी ।
जवाब देंहटाएंमाँ तुझे सलाम !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता पढ़कर मन ख़ुश हो गया!
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सबसे प्यारा होता है -
अपनी माँ का मुखड़ा!
रुलाओगे क्या मालिक...
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