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शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

अनपढ़ हूँ, साहब !

अनपढ़ हूँ, साहब !

जीवन में कुछ घटनाएं अनायास ही घट जाती हैं और व्‍यक्ति-विशेष पर बहुत गहरा प्रभाव डालती हैं। आज के भौतिकतावादी युग में हम व्‍यक्ति को देखकर ही उसके प्रति अपना विचार बनाने के आदी हो गए हैं। किसी पुलिसवाले को देखते ही हमारे मन भ्रष्‍ट एवं जुल्‍मी व्‍यक्ति की छवि बन जाती है वहीं फौजी को देखते ही मन में सम्‍मान जाग जाता है, नेता को देखते ही मन में ‘’घृणा’’ और मुँह में ‘’गाली’’............ और रिक्‍शेवाले को देखते ही मतलबपरस्‍त आदमी जो बस पैसे ऐठने का अवसर ........... जो मुश्‍किल वक्‍त में आपके गंतव्‍य स्‍थान पर नहीं पहुँचाने .......... ।

उस दिन ऐसा ही विचार मेरे मन में ‘’से’’ देखकर   । उस दिन जब मेरी पत्‍नी और 1 माह की बीटिया की तबियत अचानक ही खराब हो गई। मैं बस फैक्‍टरी से आया ही था कि पता चला पत्‍नी और बच्‍ची का शरीर ज्‍वर से तप रहा है। मेरे 4 वर्ष के पुत्र ने कहा ‘’पापा, चलो हास्पि‍टल ले चलो! जैसे ही मैं अपने घर से बाहर निकला वैसे ही इंद्र देव ने हम पर ऐसी कृपा की मात्र 05 मिनटों में पानी से सारा इलाका त्राही-त्राही करने लगा। मैं अपने परिवार के साथ बरसात में रोड पर खड़ा होकर रिक्‍शेवाले की राह देखने लगा।  मैं ऐसी जगह रहता हूँ जो अम्‍बरनाथ नगर परिषद के नक्‍शे पर प्रतिवर्ष केवल मार्च-अप्रैल के महिने में ही प्रदर्शित होता है क्‍योंकि इस दौरान वार्ड के निवासियों से हाउस टैक्‍स के की उगाही होती है। बदले में सुविधाएं इतनी अच्‍छी की रास्‍तों पर गाड़ी चलाने से ही आपकों चॉंद के क्रेटर में सैर करने का आनन्‍द आ जाएगा। कुछ महिने पहले ही हमारा वार्ड कांक्रिट सम्राटों अर्थात ‘’बिल्‍डरों’’ के नजर में चढ़ा था पर मात्र कुछ महिने में यहॉं के ठीक-ठाक रास्‍तों को उन्‍होंने और ठीक-ठाक कर दिया था। ठीक-ठाक करें भी क्‍यों नहीं ? नगर परिषद में जाकर .............. त्‍याग जो करते हैं। मैं मन ही मन बिल्‍डरों, भ्रष्‍ट सरकारी नगर परिषद कार्मिकों, नेताओं नगर सेवकों (नगर भक्षकों) तथा रिक्‍शेवालों को गालियॉं दे रहा था। इस दौरान इंद्र देव की अनवरत कृपा हो रही थी।

इस बीच एक रिक्‍शा नजर आया । मैंने उसे रूकने का इशारा किया पर उसने इशारे का जवाब हाथ हिला कर दिया और आगे बढ़ गया। मैं अपने परिवार की मौजूदगी भूल उसे ‘’अमृत वचन’’ देने लगा। दो मिनट बाद वह लौट आया, मैं बस तैयार ही था, रिक्‍शे के रूकने से पूर्व ही उसमें कूद गया और अपनी पत्‍नी व बच्‍चों को बैठाते ही कहा ‘’हास्पिटल जाना है।‘’ मेरा क्रोध अभी शांत नहीं हुआ था। मैं अन्‍दर ही अंदर कुढ़ रहा था , इस बीच उसने बात छेड़ी’’ साहब , स्‍वामी विवेकानन्‍द जी को जानते हैं...... रामकृष्‍ण परमहंस उनके गुरू थे । बड़े ज्ञानी .............। मुझे उसकी बातों में बिलकुल रूचि नहीं थी पर करता क्‍या हूँ- हॉं करते रहा।

इस बीच मुझे अस्‍पताल नजर आ गया। मैंने उसे तत्‍काल रूकने को कहा और पैसे चुकता कर दिया । इस बीच मैंने उससे पूछा कि क्‍या वह हमारे लिए थोड़ी देर इंतजार करेगा। उसने स्‍वीकारोत्ति में सिर हिला दिया। डॉक्‍टर द्वारा इंजेक्शन देने पर पत्‍नी को तत्‍काल आराम पहुँचा । दवाई लेकर हम उस रिक्‍शेवाले के पास वापस घर लौटने के लिए पहुँचे। अब तक मेरा गुस्‍सा गायब हो चुका था। उसने हमे लिया और बढ़ चला। उसने फिर बातों का सिलसिला छेड़ दिया । कभी अध्‍यात्मिक, कभी रोजी-रोटी की । इस बीच उसने कहा कि ‘’ क्‍या करते हैं साहब ? मैंने कहा ‘’ आर्डनेन्‍स फैक्‍टरी में काम करता हूँ । फिर तो उसने वेतन और सुविधाओं के बारे में पूछना आरम्‍भ किया । मैं बस हूँ- हॉं किए जा रहा था और मन ही मन सोचने लगा , अच्‍छा बच्‍चू, अब मेरे पेमेन्‍ट के बारे में पूछ कर तय भाड़े से अधिक भाड़ा मॉगने की कोशिश करने लगे हो। मैं तय भाड़े से एक रूपया भी अधिक नहीं दूँगा । इस बीच उसने कहा ‘’ देखिए, साहब! इन्‍होंने रोड की क्‍या हालत कर दी है ? उसका बस यह कहना था कि मैं फूट पड़ा भ्रष्‍ट नगर परिषद कार्मिकों, नगरसेवकों , बिल्‍डरों पर ‘’ सब चोर हैं साले ! गोली मार देना चाहिए।‘’ 

इस पर उसने कहा ‘’साहब किसकिस को गोली मारिएगा ? इन सब के लिए तो क्‍या किसी न किसी रूप में हम भी जिम्‍मेदार नहीं हैं। हममें से  अधिकांश लोग एक एक वोट के लिए तीन तीन 3000/- हजार रूपया लेते हैं, अच्‍छे पढ़े-लिखे, नौकरी पेशा लोग भी......... । भ्रष्‍ट सरकारी कार्मिक भी हमारे ही भाई बंद हैं। नेता......... और ये नेता तो चाह कर भी इस पर कुछ नहीं बोल सकते हैं। देखों न चीन हमारे विरूद्ध सीमा पर मिसाइल पर मिसाइल तैनात कर रहा है और हमारे नेता उसे हमारा मित्र देश बताते हैं, कहते हैं कि उससे हमें कोई खतरा नहीं है। उसके खिलौने गृहपयोगी वस्‍तुएं हमारे घरों में पैठ बना चुके हैं। हमारे लोग सस्‍ते के चक्‍कर में उनका सामान खरीद कर जाने अनजाने अपने देश का पैसा विदेशों में पहुँचा रहे हैं। इन्‍हीं पैसे को वह हमारे देश के विरूद्ध इस्‍तेमाल कर रहा है, हमारे देश के सीमावर्ती प्रदेशों को हड़पने के लिए नीत नई साजिश रच रहा है। विद्यटनकारी तत्‍वों को आर्थिक एवं शस्‍त्रों की मदद दे रहा है । सीमा पर मिसाइल तैनात कर अनावश्‍यक तनाव पैदा कर रहा है।

साहब, ‘’चीनी समान’’ बच्‍चों के लिए भी घातक हैं । उनमें बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए घातक केमिकल्‍स होते हैं। आप तो पढ़े लिखे हैं, आप कभी ‘’चाइना’’ का सामान नहीं खरीदना और अपने नाते रिश्‍तेदारों और दोस्‍तों को भी मना कर देना। न हम उसका सामान खरीदेंगे , न ही हमारा पैसा उसके पास जाएगा, न ही वह समृद्ध होगा और हमें ऑंख दिखाएगा।

मैं एकचित्‍त होकर उसे सुन रहा था । इस बीच उसने कहा ’’ साहब, आपका घर आए हुए 10 मिनट हो गया, माफ कीजिए आपका समय लिया । इस बीच मैंने अपनी पत्‍नी को घर जाने का इशारा किया । मैंने उससे भाड़े के बारे में पूछा ‘’ कितना हुआ ? साहब, आप जो देना चाहते हैं। दे दीजिए। मैंने उसे निसंकोच होकर भाड़ा मॉंगने के लिए कहा । मेरे बहुत कहने पर उसने तय भाड़ा ही लिया ‘’वेटिंग चार्ज’’ भी नहीं लिया। मैंने उससे पूछा कितना पढ़े हो ? इस पर वह कुछ झेप गया और कतराते हुए कहने लगा , ‘’ अनपढ़ हूँ, साहब!, नमस्‍कार करते हुए वह आगे निकल गया।

अब तक मैं समझ चुका था कि कौन सही में ‘’अनपढ़’’ हैं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. अनपढ़ के माध्यम से बाजारवाद पर ध्यान दिलाती हुई कथा ...

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  2. ज्ञान अक्षर की जानकारी का भी मुंहताज नहीं होता !!

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  3. पर जि‍न्‍हें अक्षर की जानकारी है वो अक्‍सर ज्ञान के मोहताज देखे हैं...

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  4. रिक्शा वाले के माध्यम से जिस सच को उकेरा उसने मन मंथन करने पर मजबूर कर दिया. सच कहा उसने चीन कितना चतुर चालाक है और हम पढ़े लिखे हो कर भी कितने अनपढ़ हैं.

    अच्छी प्रभावशाली प्रस्तुति.

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  5. कई बार ज़िंदगी में सार्थक सबक यूँ ही मिल जाते हैं. जो किसी स्कूल कॉलेज में नहीं पढ़ाये जाते .. सही सोच होने के लिए कॉलेज की डिग्री और मोडर्न पहनावा ही हो ऐसा जरूरी तो नहीं. बहुत सुन्दर सीख देती हुयी कहानी.

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