काव्य-सृजन का उद्देश्य |
मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है,
कई बार मेरे मन में यह प्रश्न आता है, आपके भी आता होगा, आखिर हम कविता लिखते क्यों हैं? कविता ही क्यों? काव्य प्रयोजन की क्या आवश्यकता है? इसकी सार्थकता क्या है? साहित्य का मूल प्रयोजन क्या है? इसका उद्देश्य क्या है? कहीं न कहीं इसका उद्देश्य मानव संवेदना का विस्तार है। ताकि एक अच्छे संस्कार का विस्तार हो सके, उसका परिष्कार हो सके। इस तरह से हम कह सकते हैं कि सृजन का उद्देश्य एक सांस्कृतिक प्रक्रिया है। एक ऐसी प्रक्रिया जो हमारी भावनात्मक संवेदना को परिष्कार कर, निखार लाए। इस तरह से सामाजिकता में भी निखार आती है। साहित्य हमें देश-काल की समस्याओं के प्रति जागरूक बनाता है। समस्या के विभिन्न पहलुओं से, उसकी चिंताओं हमें अवगत कराता है ताकि हम आने वाली हर चुनौतिओं का डट कर मुक़ाबला कर सकें। हमारे चारो ओर जो द्वन्द्व हैं, तनाव हैं, उनका लेखा-जोखा प्रस्तुत कर हमें संघर्षों का सामना करने हेतु सक्षम बनाता है। सृजन का उद्देश्य हमारी चेतना को विकसित करना है। हमारी चेतना एक सीमा में बंधी होती है। सृजन का उद्देश्य हमारी चेतना के सीमांतों का विस्तार करना होना चाहिए। हमारी इंसानियत, मानवता या मानवीयता में वृद्धि करे तभी सृजन का उद्देश्य पूरा समझा जाना चाहिए। सृजन कर्म आनंद का सृजन करे, ऐसा आनंद जो लोकमंगलकारी हो। आनंद और लोकमंगल के अंदर ही बाक़ी सभी प्रयोजन शामिल हैं। |
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उम्दा संदेश एवं सार्थक आलेख.
जवाब देंहटाएंसंदेश बहुत ही विचारणीय है पर कविता तो अपने आप बह कर निकलती है उस वक्त इतना सोच विचार !!
जवाब देंहटाएंसृजन का उद्देश्य हमारी चेतना को विकसित करना है। हमारी चेतना एक सीमा में बंधी होती है। सृजन का उद्देश्य हमारी चेतना के सीमांतों का विस्तार करना होना चाहिए। हमारी इंसानियत, मानवता या मानवीयता में वृद्धि करे तभी सृजन का उद्देश्य पूरा समझा जाना चाहिए !
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने सोचने और अमल करने को प्रोत्साहित करती आपकी ये प्रस्तुति अपना काम कर रही है.
आभार.