साहित्यकार-5जॉर्ज मारिओ पेद्रो वर्गास लोसा,नोबेल पुरस्कार २०१० के लिए |
कृतियां- १. द चलेंज – १९५७ २. हेड्स – १९५९ ३. द सिटी एण्ड द डौग्स- १९६२ ४. द ग्रीन हाउस – १९६६ ५. प्युप्स – १९६७ ६. कन्वर्सेसन्स इन द कैथेड्रल – १९६९ ७. पैंटोजा एण्ड द स्पेशियल - १९७३ ८. आंट जूली अण्ड स्क्रिप्टराइटर-१९७७ ९. द एण्ड ऑफ़ द वर्ल्ड वार-१९८१ १०. मायता हिस्ट्री-१९८४ ११. हू किल्ड पलोमिनो मोलेरो-१९८६ १२. द स्टोरीटेलर-१९८७ १३. प्रेज़ ऑफ़ द स्टेपमदर-१९८८ १४. डेथ इन द एण्डेस-१९९३ आत्मकथा – द शूटिंग फ़िश-१९९३ |
साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पेरू के साहित्यकार जॉर्ज मारिओ पेद्रो वर्गास लोसा को वर्ष 2010 के लिए चुना गया है। 28 मार्च 1936 को पेरू के अरेक्विपा शहर में जन्में इस 74 वर्षीय लेखक को सत्ता के ढांचे के चित्रण तथा उसके प्रति व्यक्तियों के प्रतिरोध, विद्रोह और पराजय की प्रभावशाली तस्वीर पेश करने के लिए यह पुरस्कार दिया जा रहा है। उनके पिता एक बस चालक थे। अपने जीवन के आरंभिक 10 वर्ष तक वे कोचाबम्बा, बोलीविया, में माँ और दादा दादी के साथ रहते थे। 1946 में वह पेरू में लौटे, जब उनके माता पिता, जिनका उनके जन्म से पहले ही तलाक हो गया था, फिर से साथ रहने लगे थे। बाद में वे मडालिना दे मार, लीमा के एक मध्यम वर्गीय उपनगर में बस गए। जब वे 16 साल के थे तब लीमा के कई पत्रिकाओं के लिए काम कर रहे थे। इनकी तब की रचनाओं में अपराध कहानियाँ मुख्य रूप से शामिल है। उनकी पहली पुस्तक,लॉस जेफ़ेस, लघु कहानियों का संग्रह, 1958 में प्रकाशित हुआ था तब वे 22वर्ष के थे। स्पेनी भाषा के साहित्यकार जॉर्ज मारिओ पेद्रो वर्गास लोसा पिछले 45 वर्षों से लैटिन उपन्यासकारों में जहां एक ओर सबसे सफल और प्रसिद्ध रहे हैं वहीं दूसरी ओर विवादास्पद भी। 1960 और1970 के दशक में युवा उपन्यासकारों ने एक साहित्यिक आंदोलन चलाया था – “लैटिन अमरीकन बूम”, लोसा उसके भी प्रमुख लेखक रहे हैं। उन्होंने 30 से अधिक उपन्यास और निबंध लिखे हैं। जिनमें कन्वर्सेसन्स इन कैथेड्रल और द ग्रीन हाउस काफ़ी प्रसिद्ध हैं। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। एक महान लेखक के साथ-साथ वे एक सजग पत्रकार भी हैं। वे लैटिन अमेरिकी साहित्य में आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता आरंभ करने वाले लेखक हैं। क्रांतिकारी लेखकों के प्रति रुझान के कारण उनका शुरुआती लेखन वामपंथी विचारधारा से प्रभावित था। पर बाद में उन्होंने फ़्रांस के प्रसिद्ध विचारक और अस्तित्ववाद के संस्थापक ज्यां पॉल सात्र के प्रभाव से लेखन शुरु किया। फिर उनकी सोच और लेखन में भी परिवर्तन आया और वे जहां पहले लेखन और साहित्य को विद्रोह का हथियार मानते थे अब इसे कलावादी और सौंदर्यवादी दृष्टिकोण से देखने लगे। 1995 में उन्हें स्पेनिश भाषा के सबसे प्रतिष्ठत सरवेंटेज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1963 के दशक के दौरान अपने “द टाइम ऑफ़ हीरो” उपन्यास से दुनिया की नज़र में वे आए थे। इसके दो साल बाद 1965 में प्रकाशित “द ग्रीन हाउस” ने साहित्य जगत में हंगामा ही मचा दिया था। इस उपन्यास में एक तरुणी के वेश्या बनने की कहानी को बहुत ही संवेदनशीलता और मार्मिक ढंग से प्रस्तुतिकरण किया गया है। कई आलोचकों ने इसे एक महान उपन्यास की संज्ञा दी। पर अपने इस प्रिय विषय को कई उपन्यासों में उन्होंने वर्णित किया, जिसमें पेरू की सेनाएं जंगल में वेश्याओं को बुलाते हुए बताए गए। जिसके कारण उनके उपन्यास विवाद का केन्द्र भी बने। हालाकि ये उनके सेना में बिताए अनुभव पर आधारित थे, फिर भी आलोचना का तो उन्हें सामना करना ही पड़ा। एक और बहु चर्चित उपन्यास “आंट जूली अण्ड स्क्रिप्टराइटर” उनकी पहली पत्नी जूली और उनके रिश्तों पर आधारित है। उनके कई उपन्यासों पर फ़िल्में भी बन चुकी हैं, जिनमें प्रमुख हैं “टाइम ऑफ़ द हीरो”, “कैप्टन पैंटोजा एण्ड द स्पेशियल सर्विस”, “द फ़ीस्ट ऑफ़ द गोट”। |
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ज्ञानवर्धक लेख , बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:!!
जवाब देंहटाएंनवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...
कृपया ग्राम चौपाल में आज पढ़े ------
"चम्पेश्वर महादेव तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल चंपारण"
... सार्थक व समसामयिक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंसार्थक व समसामयिक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंनोबेल पुरस्कार विजेता ..जॉर्ज मारिओ पेद्रो वर्गास लोसा के बारे में जानना अच्छा लगा ...आभार .
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी प्राप्त हुई.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंनोबेल पुरस्कार विजेता जॉर्ज मारिओ पेद्रो वर्गास लोसा के बारे में जानना अच्छा लगा.ज्ञानवर्धक लेख .
जवाब देंहटाएंबहुत आभार नोबेल पुरस्कार विजेता जॉर्ज मारिओ पेद्रो वर्गास लोसा के परिचय का...
जवाब देंहटाएंउपयोगी सामग्री। महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिली ।
जवाब देंहटाएंनोबेल पुरस्कार विजेता ..जॉर्ज मारिओ पेद्रो वर्गास लोसा के बारे में जानना अच्छा लगा ...आभार .
जवाब देंहटाएंसार्थक व समसामयिक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक लेख , बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंयह पुरस्कार इस बात का प्रमाण है कि मानवाधिकार संस्थाओं की सक्रियता और लोकतंत्र के दावों के बावजूद,जनता अब भी बुनियादी हक़ से वंचित है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउम्मीद की जानी चाहिए इस पुरस्कार से,मर्यादित जीवन और संतोषजनक कार्य के लिए दुनिया भर में चलाए जा रहे आंदोलनों को बल मिलेगा जिनकी सफलता ही बहुत हद तक यह सुनिश्चित करेगी कि सर्वोपरि जनता है न कि उसके द्वारा चुनी गई या उस पर थोपी गई सरकारें।
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