(घ) व्यक्तिवादी उपन्य़ास :
इस विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति की सत्ता और अस्तित्व को समाज से पहले स्वीकारते हैं। उनकी दृष्टि में समाज-व्यवस्था सिर्फ़ एक माध्यम होती है, लक्ष्य व्यक्ति होता है। अपने अच्छे-बुरे का निर्णायक व्यक्ति होता है। वह अपने प्रति स्वयं उत्तरदायी होता है। इसमें व्यक्ति का अहं प्रबल होता है।
प्रमुख कृतियां : ‘टेढे-मेढे रास्ते’, ‘आख़िरी दांव’, ‘अपने खिलौने’, ‘भूले-बिसरे चित्र (1959), ‘सामर्थ्य और सीमा’, ‘रेखा’, ‘सबहिं नचावत राम गुसाईं’, ‘चित्रलेखा’ (1934), ‘तीन वर्ष’ (1936)।
भगवती चरण वर्मा ने ‘चित्रलेखा’ (1934) की रचना कर काफ़ी लोकप्रियता हासिल की। ‘तीन वर्ष’ (1936) भी अपनी भावुकता के कारण काफ़ी लोकप्रिय हुआ। ‘टेढे-मेढे रास्ते’ में दो पीढियों के बीच अंतराल का प्रश्न उठाया गया है। पिता और उसके तीन पुत्रों के बीच दूरियां हैं और उनके रास्ते टेढे-मेढे।
वर्मा जी के उपन्यासों में इस बात पर अधिक ज़ोर दिया गया है कि ‘मनुष्य परिस्थितियों का दास है’। उनके अनुसार परिस्थितियां इकहरी होती हैं, और मनुष्य उनसे पराभूत हो जाता है। प्रेमचंद की भांति वर्मा जी तात्कालिकता को तीख़ेपन के साथ चित्रित नहीं कर पाते। उन्हें ‘गोदान’ की परंपरा का उपन्यासकार न मान कर ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’ और ‘ग़बन’ की परंपरा का उपन्यासकार माना जाना चाहिए।
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ समग्र अर्थ में तो नहीं पर इन्हें भी प्रेमचंद परंपरा का उपन्यासकार कहा जा सकता है। इन्होंने भी मध्यम वर्गीय व्यक्तियों की परिस्थितियों, समस्याओं और परिवेश को यथार्थवादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।
अश्क जी ने ‘एक रात का नरक’, ‘सितारों के खेल’, ‘गिरती दीवारें’ (1949), ‘शहर में घूमता आईना’, ‘एक नन्ही कंदील’, ‘गर्म राख’ (1952), ‘बड़ी-बड़ी आंखे’ (1954), ‘पत्थर-अल-पत्थर’ (1957), लिखे हैं। ‘गिरती दीवारें’ और ‘गर्म राख’ व्यक्तिवादी और यथार्थवादी परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
भगवती प्रसाद वाजपेयी (पतिता की साधना, चलते-चलते, टूटते बंधन) और उषा देवी मित्रा (वचन का मोल, जीवन की मुस्कान, पथचारी) ने व्यक्तिवादी उपन्यास की रचना की। इन उपन्यासकारों ने सामाजिक शक्तियों के स्थान पर व्यक्ति की चेतना और उसके व्यक्तित्व को अधिक महत्वपूर्ण माना है। भगवती प्रसाद वाजपेयी के उपन्यासों में प्रेम, वासना, कर्तव्य और मानसिक द्वन्द्व का वैज्ञानिक ढंग से चित्रण हुआ है।
भगवती चरण वर्मा, व अन्य लेखको ने कितना कार्य किया आपके द्दारा बेहतरीन जानकारी पायी है,
जवाब देंहटाएंआपको इस कार्य के लिये धन्यवाद,
उपयोगी श्रृंखला ....
जवाब देंहटाएंIt is a very informative and useful post. Thanks Manoj ji.
जवाब देंहटाएंलगभग एक ही रचना काल के दौरान इन साहित्यिक विभूतियों ने समाज के अलग अलग आयामों पर रचनाएं करके हिंदी साहित्य को कालजयी रचनाएं प्रदान कीं। इतने सालों के बाद भी इन्हें पढ़ना नवीन लगता है। शृंखला में यह कड़ी भी सुरुचि पूर्ण लगी।
जवाब देंहटाएंआजकल डॉ. विद्या ने रोमन में लिखना शुरू कर दिया है। क्या कारण हो सकता है?
Useful Information!
जवाब देंहटाएंstill a lot to read.