हिंदी के प्रति मनोवृत्ति का अध्ययन
हमने राजभाषा विकास परिषद के ब्लॉग पर एक मतदान कराया था कि क्या हिंदी के बारे में मनोवृत्ति पर अखिल भारतीय स्तर पर अध्ययन की ज़रूरत है? इस मतदान में 10 मत आए और दसों मत इसके पक्ष में आए। इसका मतलब यह है कि हिंदी के बारे में लोगों की राय स्पष्ट नहीं है। आइए इस विषय में कुछ चिंतन किया जाए।
हिंदी का प्रश्न भाषा का प्रश्न नहीं है बल्कि इस प्रश्न का संबंध राष्ट्रीयता से है। परंतु इधर इस सोच में परिवर्तन आ गया है। हिंदी के प्रति जिस संकल्पशील निष्ठा की ज़रूरत है उसकी झलक हिंदी कक्ष/विभाग से जुड़े कार्मिकों के अलावा कहीं और नहीं दिख रही है। गैर सरकारी, गैर शिक्षण संस्थाओं द्वारा किए जा रहे कार्य ही वास्तव में हिंदी के प्रचार-प्रसार में ज़्यादा सहायक हैं। इसका मतलब है कि अन्यत्र इस विषय में सकारात्मक सोच का अभाव है या नकारात्मक सोच सकारात्मक सोच पर अभिभावी हो गई है। हम एक ऐसी संस्था में कार्य कर रहे हैं जिसका स्वरूप अखिल भारतीय है और हमारा संपर्क अनेक भाषा भाषी व्यक्तियों से होता है। उस परिस्थिति में हमसे क्या अपेक्षित है और हमारा व्यवहार कैसा हो?
2. हम पहले इस पहलू पर विचार कर लें कि सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच क्या है और इसका प्रभाव किस प्रकार पड़ता है? - (क) सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के पास समाधान होता है और नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के पास समस्या होती है। वह हर काम में समस्या देख लेता है। (ख) सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के पास कार्यक्रम होता है और नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के पास बहाना होता है। (ग) सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति काम करने का इच्छुक होता है और नकारात्मक सोच वाल व्यक्ति कहता है कि यह काम मेरा नहीं है। (घ) सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के पास समस्या में समाधान होता है जबकि नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के पास समाधान में समस्या होती है। (ङ) सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के पास यह सोच होती है कि कठिन ज़रूर है पर असंभव नहीं है।
अतः मैं इस मंच से किसी अध्यवसायी व्यक्ति का आह्वान करता हूं कि इसे पीएच. डी. या किसी परियोजना के तहत इसका अध्ययन करे और अपना शोधप्रबंध प्रस्तुत करे। राजभाषा विकास परिषद ऐसे शोधार्थी को अध्ययन का टूल बनाने तथा अध्ययन की सिनॉपसिस बनाने में निःशुल्क सहायता करेगी।
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बहुत अच्छी पहल है। इस तरह के अध्ययन से बहुत कुछ सामने आएगा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी पूर्ण पोस्ट.
जवाब देंहटाएंअच्छी सोच...अच्छी पहल
जवाब देंहटाएंस्वागत है......
अच्छी जानकारी पूर्ण पोस्ट| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी देती पोस्ट ..
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा है कि हिन्दी का प्रश्न महज भाषा का प्रश्न नही है बल्कि रा्ट्रीयता का प्रश्न है । देश भर में प्रान्तीय भाषाओं व अंग्रेजी के साथ एक ही भाषा प्रमुख व अनिवार्य हो और वह हिन्दी ही हो । हिन्दी का कोई विकल्प न हो । आपके द्वारा सुझाया कदम इस दिशा में काफी सहायक होगा ।
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित
जवाब देंहटाएंहै जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते
हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है,
जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत
वेद नायेर ने दिया है...
वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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