अज्ञेय की कविता-4
चीनी चाय पीते हुए
चाय पीते हुए
मैं अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ।
आपने कभी
चाय पीते हुए
पिता के बारे में सोचा है?
अच्छी बात नहीं है
पिताओं के बारे में सोचना।
अपनी कलई खुल जाती है।
हम कुछ दूसरे हो सकते थे।
पर सोच की कठिनाई है कि दिखा देता है
कि हम कुछ दूसरे हुए होते
तो पिता के अधिक निकट हुए होते
अधिक उन जैसे हुए होते।
कितनी दूर जाना होता है पिता से
पिता जैसा होने के लिए!
पिता भी
सवेरे चाय पीते थे
क्या वह भी
पिता के बारे में सोचते थे --
निकट या दूर?
चाय पीते हुए पिता के निकट या पिता जैसा होने की इच्छा .. अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत गहरा सन्देश है इस कविता में.
जवाब देंहटाएंगहन भाव से भरी कविता।
जवाब देंहटाएंआज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
chay peete hue..... main apne pita ko yaad karti rahi
जवाब देंहटाएंबेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
vicharneey.
जवाब देंहटाएंमनोज जी सुन्दर रचना अज्ञेय जी की-हमने तो नहीं सोचा था अब सोचना होगा आगे
जवाब देंहटाएं-
कितनी दूर जाना होता है पिता से
पिता जैसा होने के लिए!
शुक्ल भ्रमर ५