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शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

उपन्यास की परिभाषा

उपन्यास साहित्य

उपन्यास की परिभाषा

vcm_s_kf_m160_160x120मनोज कुमार

उपन्यास ‘उप’ और ‘न्यास’ से मिलकर बना है। ‘उप’ का अर्थ समीप और ‘न्यास’ का अर्थ है रचना। अर्थात्‌ उपन्यास वह है जिसमें मानव जीवन के किसी तत्त्व को उक्तिउक्त के रूप में समन्वित कर समीप रखा जाए।

इसमें उपन्यासकार मानवजीवन से संबंधित सुखद एवं दुखद किन्तु मर्मस्पर्शी घटनाओं को निश्चित तारतम्य के साथ चित्रित करता है।

संस्कृत लक्षण ग्रंथों में भी उपन्यास का अधिकाधिक प्रयोग हुआ है। किन्तु उस उपन्यास शब्द और आज के उपन्यास शब्द में भिन्नता है। संस्कृत साहित्य में एक स्थान पर कहा गया है, “उपन्यासः प्रसाधनम्‌” अर्थात्‌ प्रसन्नता प्रदान करने वाली कृति उपन्यास है। किन्तु संस्कृत नाट्य शास्त्र में उपन्यास को प्रतिमुख संधि का एक उपभेद माना गया है, जिसकी व्याख्या में कहा गया है ‘उपपति वृतहथ उपन्यासः प्रकृतितः’ अर्थात्‌ किसी अर्थ को उसके उक्तिउक्त अर्थ में उपस्थित करने को उपन्यास कहा जाता है। किन्तु आज उपन्यास शब्द के अन्तर्गत गद्य द्वारा अभिव्यक्त सम्पूर्ण कल्पना प्रसूत कथा साहित्य में ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि संस्कृत साहित्य में प्रयुक्त उपन्यास शब्द और आधुनिक उपन्यास शब्द में ज़मीन आसमान का अंतर है।

इसमें उपन्यासकार मानव जीवन से संबंधित सुखद एवं दुखद किन्तु मर्मस्पर्शी घटनाओं को निश्चित तारतम्य के साथ चित्रित करता है। उपन्यास एक ऐसी लोकप्रिय साहित्यिक विधा है जिसे मानव जीवन का यथार्थ प्रतिबिंब कहा जा सकता है। वस्तुतः उपन्यास में एक ऐसी विस्तृत कथा होती है जो अपने भीतर अन्य गौण कथाएं समेटे रहती है। इस कथा के भीतर समाज और व्यक्ति की विविध अनुभूतियां और संवेदनाएं, अनेक प्रकार के दृश्य और घटनाएं और बहुत प्रकार के चरित्र हो सकते हैं, और यह कथा विभिन्न शैलियों में कही जा सकती है।

इस प्रसंग में आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी ने अपनी पुस्तक “आधुनिक साहित्य” में लिखा है कि उपन्यास में आजकल गद्यात्मक कृति का अर्थ लिया जाता है। पद्यबद्ध उपन्यास नहीं हुआ करते। उपन्यास के विकास से गद्य का विकास का भी संबंध है। प्रायः वही परिस्थिति गद्य के विकास में सहायक हुई हैं जो उपन्यास के विकास में योग दे रही थीं। यूरोप में गद्य उपन्यासों के पहले कुछ प्रेमाख्यान कविताएं प्रचलित थीं। उन्हें ही आधुनिक उपन्यास की जननि कहा जा सकता है।”

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “उपन्यास आधुनिक युग की देन है। नए गद्य के प्रचार के साथ-साथ उपन्यास प्रचार हुआ है। आधुनिक उपन्यास केवल कथा मात्र नहीं है और पुरानी कथाओं और आख्यायिकाओं की भांति कथा-सूत्र का बहाना लेकर उपमाओं, रूपकों, दीपकों और श्लेषों की छटा और सरस पदों में गुम्फित पदावली की छटा दिखाने का कौशल भी नहीं है। यह आधुनिक वैक्तिकतावादी दृष्टिकोण का परिणाम है।”

डॉ. श्याम सुंदर दास उपन्यास को मानव के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा मानते हैं, किन्तु मुंशी प्रेमचंद जी कहते हैं, “मैं उपन्यास को मानव-जीवन का चित्र समझता हूं। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मुख्य स्वर है।”

क्षेमेन्द्र सुमन के अनुसार उपन्यास मानव जीवन की आन्तरिक और बाह्य परिस्थितियों का उसके मन के संघर्ष-विघर्ष का, उसके चारो ओर के वातावरण और समाज का काल्पनिक चित्र है, किन्तु काल्पनिक होता हुआ भी वह यथार्थ है। उसमें जीवन के स्त्य की अभिव्यक्ति होती है।

डॉ, जे. बी. क्रिस्टले लिखते हैं, “उपन्यास जीवन का विशाल दर्पण है और इसका विस्तार साहित्य के किसी भी रूप से बड़ा है।” इसी प्रकार रौल फ्रांस के अनुसार “उपन्यास केवल काल्पनिक गद्य नहीं है वरन वह मानव जीवन का गद्य है। ऐसी प्रथम कला जिसने सम्पूर्ण मानव को लेने और उसे अभिव्यंजना देने का प्रयास किया है लेकिन इसके विपरीत विलियम हेनरी हेडसन के अनुसार, “मानव और मानवीय भावों से तथा क्रियाओं की विस्तृत चित्रावलि ने नर एवं नारियों की सार्वकालिक, सार्वदेशिक रुचि ही उपन्यास के अस्तित्व का कारण है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उपन्यास की एक सर्वमान्य परिभाषा निर्धारित करना कठिन है। इस कठिनाई की ओर इंगित करते हुए डॉ. देवराज लिखते हैं, “उपन्यास की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है। प्रायः यह अंग्रेज़ी में Novel शब्द का पर्यायवाची शब्द समझा जाता है। पर Novel का प्रयोग अंग्रेज़ी में जहां एक ओर सुसंगठित कथाओं के लिए भी किया जाता है वहीं दूसरी ओर अतीत की स्मृतियों के लिए भी, जिन कथाओं का कोई विस्तृत रूप नहीं है।

देवकी नंदन खत्री जी का चंद्रकांता और उसकी संतति, प्रेमचंद जी का सेवासदन तथा अज्ञेय की शेखर एक जीवनी के लिए हम एक शब्द उपन्यास का प्रयोग करते हैं। जो भी हो, जिस व्यक्ति ने उपन्यास शब्द का प्रयोग Novel के पर्यायवाचे रूप में किया होगा वह अवश्य ही साहित्य तत्त्वज्ञ और उसके नूतन रूप विधान का मर्मज्ञ होगा। उप = निकट, निकट माने समीप और न्यास = रखने, अर्थात स्थापित करना। अर्थात उपन्यास शब्द से यह ध्वनि निकलती है कि लेखक इसके द्वारा निकट की कोई बात करना चाहता है। यद्यपि उपर्युक्त परिभाषाओं में एक रूपता नहीं है तथापि प्रायः सभी विद्वान उपन्यास को मानव जीवन का काल्पनिक या कलात्मक चित्र मानते हैं। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि उपन्यास मानव जीवन की कथा है।

40 टिप्‍पणियां:

  1. एक प्रमुख पात्र से जुड़े अन्य पात्रों की कथा , मनोभाव , व्यवहार ...यही तो उपन्यास है !

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    1. ये संक्षिप्त लेकिन समीचीन परिभाषा है Ma'am

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  2. उपन्यास को समझने में अब इस से मदद मिलेगी...

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  3. उपन्यास क्या है...इसे समझाने के लिए अच्छा लेख ..

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  4. उपन्यास ‘उप’ और ‘न्यास’ से मिलकर बना है। ‘उप’ का अर्थ समीप और ‘न्यास’ का अर्थ है रचना।

    उपन्यास की परिभाषा बहुत ही अच्छी बताया आपने .आभार

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  5. बड़ी सुन्दर विवेचना की आपने...

    सुगठित सार्थक आलेख...

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  6. बहुत अच्छे तरीके से समझाया उपन्यास का अर्थ. कहो कब से ट्यूशन आ जाउँ ? :)

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  7. उपन्यास को समझने में अब इस से मदद मिलेगी..
    .काफी ज्ञान वृद्धी हुई.

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  8. aapne bhut trike se upnyas ko smjhaya.............aabhar

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  9. इस लेख के अध्ययन से पूर्व मुझे उपन्यास का अर्थ समझ नही आता था । अब समझ गया हूँ ।

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  10. बहुत ही सरल तरीके से सुझाव दिये सर आप ने इसके लिए आपको बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  11. बहुत ही सरल तरीके से सुझाव दिये सर आप ने इसके लिए आपको बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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  12. बहुत ही स्पष्टता से परिभाषित करने के धन्यवाद

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  13. उपन्यास का स्वरूप परिभाषा एवं तत्व

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  14. उपन्यास शब्द 'उप' उपसर्ग और 'न्यास' पद के योग से बना है। जिसका अर्थ है उप= समीप, न्याय रखना

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  15. उपन्यास शब्द 'उप' उपसर्ग और 'न्यास' पद के योग से बना है। जिसका अर्थ है उप= समीप, न्याय रखना

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  16. उपन्यास का अर्थ बहूत अच्छी तरह समझ पाएं।

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  17. संक्षिप्त किंतु सारगर्भित.

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  18. धन्यवाद आपका मुझे काफी समझ आया।

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  19. उपन्यास का शाब्दिक अर्थ जानकर बहुत आनन्द की अनुभूति हुई।

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