राजभाषा हिंदी का नवीनतम इलेक्ट्रानिक माध्यमों से प्रचार-प्रसार
मनोज कुमार
सूचना है कि राजभाषा हिंदी का नवीनतम इलेक्ट्रानिक माध्यमों से प्रचार-प्रसार करने की योजना बनाई जा रही है। इसके लिए राष्ट्रव्यापी स्तर पर प्रचार-प्रसार संबंधी मार्गदर्शी सिद्धांत तैयार कर लिए गए हैं। इस के अंतर्गत प्रचार-प्रसार की कार्य योजना में आउटडोर प्रचार-प्रसार को महत्व दिया जाएगा। दिल्ली के अलावा देश के तीन अन्य महानगरों अर्थात कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई तथा बड़े शहरों जैसे विभिन्न राज्यों की राजधानियों में तथा कुछ अन्य बड़े नगरों में फिलहाल प्रचार-प्रसार कार्य को संकेन्द्रित किया जाएगा।
इस काम को अंजाम देने के लिए महानगरों के नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है। यह समिति इस बात को ध्यान में रख कर स्थल का चयन व निर्धारण करेगी कि लक्षित वर्ग अर्थात केंद्रीय सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारीगण अधिक से अधिक लाभान्वित हों। प्रचार-प्रसार सरकारी कार्यालयों/आवासीय कॉलोनियों के आस-पास भी किया जाएगा।
रेलवे स्टेशन, सीजीएचएस, ईएसआईसी अस्पताल, पासपोर्ट कार्यालय, पोस्ट ऑफिस, हवाई अड्डे, केंद्रीय सरकारी कार्यालय समुच्चय तथा सरकारी आवासीय कॉलोनी के आस-पास के क्षेत्रों को प्रचार-प्रसार के स्थल के रूप में प्राथमिकता आधार पर चयन किये जाने से राजभाषा हिंदी के प्रति अच्छा संदेश जायेगा। इस कार्यक्रम में केन्द्र सरकार के कार्यालयों को भी शामिल किया जाएगा ।
प्रचार-प्रसार की विषय वस्तु को देशभर में प्रचारित करने के लिए गृहमंत्रालय के राजभाषा विभाग में समिति गठित की गई है। विषय-वस्तु पर सचिव (राजभाषा) का अनुमोदन अनिवार्य होगा। यह बहुत ही ज़रूरी है कि हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए संस्तुत विषय वस्तु से किसी अन्य भाषा के साथ तुलना न हो, किसी की भावना आहत न हो।
महापुरूषों/विद्वानों द्वारा हिंदी के बारे में व्यक्त उदगारों को भी प्रचार-प्रसार हेतु चयन किया जाएगा। राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार में प्रांतीय भाषा को भी प्रचार प्रसार का माध्यम बनाया जा सकता है। संदेश का व्यापक व मैत्रीपूर्ण प्रसार किया जाएगा। प्रांतीय, राष्ट्रीय और यदि आवश्यक हो तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सुविख्यात व्यक्तियों के हिदी के संबंध में व्यक्त विचारों/साक्षात्कारों क दृश्य/श्रव्य रिकार्डिंग की जाएगी।
“जागो ग्राहक जागो” की तर्ज़ पर सरकार द्वारा उठाया गया यह क़दम निश्चय ही प्रशंसनीय है। इस कार्य को अंजाम देने के लिए एनीमेशन डिस्प्ले बोर्डों का भी इस्तेमाल किया जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी साधन जैसे श्रुतलेखन, लीला, मंत्रा राजभाषा, ई-महाशब्दकोश, यूनीकोड-इनकोडिंग के बारे में भी सूचना प्रदर्शित की जाएगी। यह काम डीएवीपी द्वारा कराए जाएंगे। आउटडोर पर फोकस देते हुए होने वाले इस प्रचार प्रसार के माध्यम के रूप में बस क्यू शेल्टर, मेट्रो रेल पैनल, एनीमेशन डिस्प्ले, एलईडी/एलसीडी, टीवी, एफ एम रेडियो, आदि जैसे माध्यमों को अपनाया जाएगा। पिलर्स पर कियोस्क लगाकर भी प्रचार किया जा सकता है। इससे लोगों को अच्छी जानकारी मिलेगी। डीएवीपी के माध्यम से लघु फिल्में भी बनवाई जा सकती है। विमानों में टी.वी चैनल्स पर उक्त लघु फिल्में प्रदर्शित की जा सकती है।
समितियां बनाना अच्छी बात है लेकिन सरकारी कार्य के एक नमूने का वर्णन स्व.डा.शंकर दयाल सिंह ने एक साप्ताहिक मेगजीन में छपे एक आलेख में किया था-कि जब वह राजभाषा क्रियान्वन संसदीय समिति के अध्यक्ष के रूप में बिहार में एक अनडर टाकिंग में इंस्पेक्शन के लिए गए तो उन्होंने अफसरों को साफ़ कहा कि वह एक राजनेता -एम्.पी. हैं और एक एम्.पी. कम से कम ५ लाख लोगों को मूर्ख बना कर आता है अतः उसे मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है.उन्होंने इशारा किया बोर्ड का ताजा पेंट सब पोल बता रहा है कि यह समिति को धोखा देने के लिए अभी किया गया है और हिन्दी के लिए कुछ ठोस नहीं किया गया था.
जवाब देंहटाएंसही कहा माथुर साहब आपने। जब बड़े लोग आते हैं तो नए बैनर पोस्टर तो बनाए जाते ही हैं। लेकिन तब से अब तक में कुछ बदलाव तो आया ही है। और यह कार्यक्रम कुछ बड़े लोगों के लिए नहीं आम जनता के लिए है। उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि क्रियान्वयन में ईमानदारी बरती जाएगी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सोच आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसकारात्मक सोच रखना और सरकार की प्रोपगंडा तकनीक के प्रति आशावान होना अच्छी बात है। परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार नेता नहीं ब्यूरोक्रेट चला रहे हैं। ब्यूरोक्रेटों को हिंदी रास नहीं आती। हिंदी के नाम पर कुछ व्यवसाइयों को काम व लाभ मिलेगा। धन का उपयोग विकास कार्य में होगा। लेकिन कार्यालयों में हिंदी की स्थिति विंडो ड्रेसिंग ही है। जिन संस्थाओं में राजभाषा अधिकारी निःस्पृह और मिशनरी भाव से हिंदी का प्रसार कर रहे हैं वहाँ तो कुछ हिंदी दिख जाती है परंतु सर्वत्र ऐसा नहीं है। आज भी हिंदी हिंदी वालों के लिए ही अहम मानी जाती है। स्वेच्छा से प्रेरित होकर अपना काम हिंदी में करना ही हिंदी लाने के लिए पर्याप्त नहीं है। जब तक कार्यालयों में अधिकारी स्तर पर सरकारी काम के लिए हिंदी का नियमित प्रयोग नहीं किया जाएगा ऐसे प्रचार तंत्र थोथे ही साबित होंगे। फिर भी हम ब्लॉग लेखक तो हिंदी के प्रचार प्रसार में सक्रिय हैं ही।
जवाब देंहटाएंराजभाषा विकास परिषद के ब्लॉग पर यूपीएससी की उच्चतम परीक्षाओं में भाषा के व्यवधान व समाधान के बारे में एक पोस्ट भी पढें।
जवाब देंहटाएंजहाँ ब्यूरोक्रेट्स बनने के लिए अंगरेजी में अनिवार्य रूप से उतीर्ण होना पड़े और साक्षात्कार में भी अंगरेजी में भी अपने ज्ञान का प्रदर्शन करना पड़े, वहां हिन्दी प्रसार की योजना पर हंसी आती है...
जवाब देंहटाएंहिन्दी या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में प्राप्त ज्ञान९लिखित व मौखिक/बोलचाल ) के आधार पर आज अपने देश में सरकारी गैर सरकारी एक भी संस्थान है,जहाँ व्यक्ति काम पा सकता है ????? यदि है, तो कृपया अवश्य बताएं, मन को बड़ी तसल्ली मिलेगी..
स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में से पहले तो हिन्दी को पूरी तरह से काट कर फेंक देना और फिर बाद में पोस्टर और स्लोगन लिख हिंडे को अपनाने की सीख देना- एकदम विरोधाभाषी नहीं ये ????
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जवाब देंहटाएंजहाँ ब्यूरोक्रेट्स बनने के लिए अंगरेजी में अनिवार्य रूप से उतीर्ण होना पड़े और साक्षात्कार में भी अंगरेजी में ही अपने ज्ञान का प्रदर्शन करना पड़े, वहां हिन्दी प्रसार की योजना पर हंसी आती है...
हिन्दी या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में प्राप्त ज्ञान (लिखित व मौखिक/बोलचाल ) के आधार पर आज अपने देश में सरकारी गैर सरकारी एक भी संस्थान है,जहाँ व्यक्ति काम पा सकता है ????? यदि है, तो कृपया अवश्य बताएं, मन को बड़ी तसल्ली मिलेगी..
स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में से पहले तो हिन्दी को पूरी तरह से काट कर फेंक देना और फिर बाद में पोस्टर और स्लोगन द्वारा प्रचारित कर हिन्दी को अपनाने की सीख देना- एकदम विरोधाभाषी नहीं ये ????
एक तो राजभाषा हिन्दी और अन्य हिन्दी को अलग कर के देखिए।
जवाब देंहटाएंराजभाषा के रूप में जो हिन्दी है वह केन्द्रीय सरकार के कामकाज की भाषा है।
वहां की अपनी नीति है और विवशता भी। उस विषय पर इस ब्लॉग पर काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है।
केन्द्र सरकार किसी पर इसे जबर्दस्ती थोप नहीं सकती और इसे प्रोत्साहन और प्रेरणा से चलाना और बढ़ाना है।
नौकरी तो कम से कम हिन्दी की योग्यता पर अनुवादक और हिन्दी अधिकारी की है ही, हिन्दी टाइपिस्ट के भी पद हैं। और हिन्दी माध्यम से पढ़े और परीक्षा दे रहे लोग काफ़ी चुने जाते हैं।
हम भी हिन्दी माध्यम से ही पढ़े।
इतना असंतुष्ट और निराश होने की ज़रूरत भी नहीं है, माहौल में बड़ी तेज़ी से बदलाव आ रहा है।
आप और हम अपने बच्चों को हिन्दी माध्यम से शिक्षा दिला कर तो देखें ...
हमें एक बात स्वीकार करनी चाहिए कि सरकार की एक अलग भाषा होती है... कभी सरकार एक एक्ट, नोटिफिकेशन आदि को पढ़ के देखिये.. आम अंग्रेजी से अलग होती है वो अंग्रेजी... कभी लीगल नोटिस.. और दूसरे ऑर्डर्स को पढ़ कर देखिये पृथक होती है वह अंग्रेजी.. ऐसे में यदि सरकार की हिंदी अलग है आम हिंदी से क्यों इतनी आलोचना.... सरकार सब मुद्दों के लिए एक बजट रखती है वैसे ही राजभाषा के प्रचार प्रसार के लिए भी इस वर्ष बजट आया है और शुरू हुआ है .. दिल्ली में तो होर्डिंग आदि लग गए हैं और देश भर में लगेंगे... कुछ जागरूकता तो आएगी....
जवाब देंहटाएं... दूसरी बात हिंदी में कैरियर है... भारत सरकार में लगभग १००० पोस्ट हैं हिंदी से जुड़े... बैंको और पीएसयू में भी सैकड़ो नौकरियाँ हैं... मीडिया में तो भीड़ लगी है.... विश्वविद्यालाओं में भी नौकरियाँ हैं... स्कूलों में भी हैं.. हाँ हिंदी भाषा से अभी डाक्टर इंजीनियर कम बन रहे हैं लेकिन आने वाले समय में इस दिशा में भी प्रगति होगी.... अभी ब्रेन ड्रेन रेवार्शल हो रहा है बाहर से जो लोग मातृभाषा का महत्व समझ कर आ रहे हैं वे हिंदी को उचित मान दे रहे हैं.... रूपा और हार्पर कोलिन्स जैसे प्रकाशकों का हिंदी पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में उतरना हिंदी के बढ़ते प्रभाव की ओर इशारा कर रहा है.. कई मेरे प्रकाशक मित्र हैं जो कहते हैं कि तकनीकी विषयों में हिंदी पुस्तकों की मांग बढ़ी है.. वर्तमान में मैं स्वयं भी धनपत राय एंड संस के लिए हिंदी में अर्थशाश्त्र, प्रबंधन, बिजनेस स्टडीज़ आदि विषयों के लिए ग्यारहवी बारहवी की पाठ्यपुस्तको का हिंदी अनुवाद कर रहा हूँ और दूसरे सभी प्रकाशक कर रहे हैं.. यानी हिंदी स्कूलों तक पहुच रही है....
.. निराश होने की तो कतई जरुरत नहीं है.. जरुरत है अपने स्तर पर छोटी सी कोशिश करने की....