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रविवार, 24 जुलाई 2011

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए


दुष्यंत कुमार त्यागी

हो  गई  है  पीर   पर्वत-सी   पिघलनी  चाहिए,
इस  हिमालय  से  कोई  गंगा  निकलनी चाहिए।

आज  यह  दीवार,  परदों  की  तरह हिलने लगी,
शर्त  लेकिन  थी कि ये  बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में,
हाथ  लहराते  हुए  हर  लाश  चलनी   चाहिए।

सिर्फ़  हंगामा  खड़ा  करना मेरा  मकसद  नहीं,
मेरी  कोशिश  है  कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे  सीने  में  नहीं  तो  तेरे  सीने  में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन  आग जलनी चाहिए।

27 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. दुष्यंत कुमार त्यागी
      जन्म -- 1 सितंबर, 1933
      मृत्यु – 30 दिसंबर, 1975
      स्थान – राजपुर-नवादा, बिजनौर (उ.प्र.)
      शिक्षा – एम.ए. (हिन्दी) इलाहाबाद
      वृत्ति – सरकारी नौकरी और खेती
      कृतियां
      सूर्य का स्वागत-कविता संग्रह, आवाजों के घेरे में, (कविता), जलते हुए वन का वसंत-(कविता), एक कंठ विषव्यापी- (काव्य नाटक), छोटे-छोटे सवाल-(उपन्यास), आंगन में एक वृक्ष-(उपन्यास), दुहरी जिंदगी-(उपन्यास), मन के कोण-(एकांकी), मसीहा मर गया-(नाटक), साये में धूप अंतिम काव्य संग्रह

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  2. सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
    मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


    मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

    मन भावन गजल का एक-एक शब्द अपने साथ अभिव्यक्ति के लिए हजारों शब्दों को रूपायित कर देता है। आपका चयन प्रशंसनीय है। धन्यवाद ।

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  3. मेरी पसंदीदा रचना ...यहाँ पढवाने हेतु आभार

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  4. इस ग़ज़ल को पढ़ पढ़ के बड़े हुए हैं... मुझे लगता है सब्से अधिक संदर्भित की जाने वाली कविता है यह...

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  5. दुष्यंत जी की यह रचना एक क्रान्तिगीत के रूप में प्रसिद्द है.. एक अजीब संयोग है कि इनकी ग़ज़लों को कभी किसी ने गाने का प्रयास नहीं किया.. फिल्म "शौर्य" में इस गज़ल को पार्श्वगीत के रूप में फिल्मांकित किया गया था..

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  6. मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
    kitni achchi baat hai......wah....

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  7. aaj ke samye ke liye bahut hi satik rachna.dushyantji ne bahut pahle hi ees paristhiti ko bhamp liya tha.ees kaljayee rachna ke liye aabhar.

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  8. मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

    सुना पहले भी है फिर सुना। शानदार है यह कड़ी या शेर। दुष्यंत कुमार त्यागी लिखते थे नहीं पता था।

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  9. दुष्यंत जी की एक बेहतरीन रचना ...आनद आ गया इस रचना के भावों को महसूस कर के ... सादर धन्यवाद ..इसको साझा करने के लिए...

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  10. प्रशंसनीय रचना.....सुन्दर

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  11. mere bhi fav. hai dushyant ji... bhaut hi acchi rachna hai unki....

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  12. दुष्यंत जी की क़लम लिखने वालों के लिए प्रेरणा-स्रोत है.

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  13. यह रचना मेरी पसंदीदा रचनाओं में से है इसे पढ़ने का मौका देने के लिए आपका धन्यवाद

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  14. आह! दुष्यंत कुमार जी तो ग़ज़ल की गंगा हैं...
    उन्हें पढ़ना ऐसा ही जैसे गंगा में स्नान करना....
    पुनः पढवाने के लिए सादर आभार...

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  15. सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
    मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
    मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

    दुष्यंत जी की बेहतरीन रचना पढ़कर मन को बहुत अच्छा लगा...
    रचना को साझा करने के हेतु बहुत बहुत धन्यवाद!

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  16. कालजयी रचना...इसे साझा करने के लिए आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  17. प्रेरक प्रस्तुती के लिए आभार।

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. मेरी सबसे पसंदीदा क्रांतिकारी ग़ज़ल 💖

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  20. दुष्यंत कुमार की कलाजायी रचना।
    Ho Gayi Hai Peer Parvat Si : हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए - दुष्यंत कुमार
    https://www.drmullaadamali.com/2022/08/ho-gayi-hai-peer-parvat-si.html

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