पक्षी और बादल, ये भगवान के डाकिए हैं जो एक महादेश से दूसरें महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरते हुए पक्षियों की पाँखों पर तिरता है। और एक देश का भाप दूसरे देश में पानी बनकर गिरता है। |
दिनकर तो दिनकर हैं !
जवाब देंहटाएंदिनकर की छदमुक्त कविता पहली बार देख रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंदिनकर जी की यह कविता नहीं पढ़ी थी पहले।
जवाब देंहटाएंआज 25- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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दिनकर जी की सुंदर रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंबेजोड कविता है दिनकर जी की…………आभार्।
जवाब देंहटाएंdinkar ki is kavita ko mujh tak pahuchaney ke liye dhanyavaad..... mera karyasthal meghalaya hai, jahan baadal jhoomtey naachtey hain,,,, maine kuch varsh pehley ek kavita likhi thi English meyn, krapya is link par dekheyn..... bhav kafi kuch miltey hain......
जवाब देंहटाएंhttp://vkshrotryiapoems.blogspot.com/2010/04/abode-of-clouds.html
ये सुन्दर कविता यू् पी बोर्ड के पाठ्यक्रम में है। इस् प्रस्तुति ने फिर एक बार दिनकर को पढ़ने का अवसर दिया।
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
श्रेष्ठ कवि को हमारा शत-शत नमन। बस थोड़ा सा आशीर्वाद आज के उभरते कवियों को भी मिल जाये तो क्या कहने। आभार आपका कि आज सुबह सुबह दिनकर जी की कविता पढ़ने को मिली।
जवाब देंहटाएंदिनकर जी की इतनी खूबसूरत कविता पढवाने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
दिनकर जी की इस रचना के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंमुझे जहां तक याद है इस कविता को हाईस्कूल -इंटर मे पढ़ा है।
जवाब देंहटाएंएक बार फिर इसे पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
सादर
दिनकरजी की रचना पढ़वाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंbahut acchhi kavita. aabhar.
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