सुमित्रानन्दन पन्त
की कविता-3
की कविता-3
मैं नहीं चाहता चिर सुख
मैं नहीं चाहता चिर सुख,
मैं नहीं चाहता चिर दुःख,
सुख-दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख।
सुख-दुख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन,
फिर घन में ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन !
जग पीड़ित है अति दुख से,
जग पीड़ित रे, अति सुख से,
मानव जग में बँट जाएँ
दुख सुख से औ’ सुख दुख से !
अविरत दुख है उत्पीड़न,
अविरत सुख भी उत्पीड़न,
दुख-सुख की निशा-दिवा में
सोता-जगता जग-जीवन !
यह साँझ-उषा का आँगन,
आलिंगन विरह-मिलन का ;
चिर हास-अश्रुमय आनन
रे, इस मानव जीवन का !
यह साँझ-उषा का आँगन,
जवाब देंहटाएंआलिंगन विरह-मिलन का ;
चिर हास-अश्रुमय आनन
रे, इस मानव जीवन का !
Kya gazab kee panktiyan hai! Sahee hai....Hariwanshrai Bachhan kaa kamaal hai!
अविरत दुख है उत्पीड़न,
जवाब देंहटाएंअविरत सुख भी उत्पीड़न,
दुख-सुख की निशा-दिवा में
सोता-जगता जग-जीवन !
सुमित्रा नन्दन पन्त जी की बेहतरीन रचनाओं में से एक .. आभार
यह सुन्दर कविता पढ़वाने का आभार
जवाब देंहटाएंआज तो बचपन की याद ताज़ा हो गयी.. हमारी पाठ्य-पुस्तक में यह कविता पढाई जाती थी. इसकी व्याख्या लिखने में हम कितने पृष्ठ लिख जाते थे..
जवाब देंहटाएंschool men padhi kavita fir padhwane ke liyebahut-bahut dhanybad......
जवाब देंहटाएंsumitra nandan pant ki kavita padhvane ke liye shukriya...
जवाब देंहटाएंआप इतने सुंदर फूल चुनकर लाते हैं कि मन प्रसन्न हो जाता है कई सारी साहित्यिक जानकारियां आपके माध्यम से हो रही है आभार
जवाब देंहटाएंपंत जी ने जीवन दर्शन करा दिया …………पढवाने के लिये हार्दिक आभार्।
जवाब देंहटाएंsundar
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