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गुरुवार, 8 सितंबर 2011

प्राण कह दो ,आज तुम मेरे लिए हो .. हरिवंश राय बच्चन




प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।


रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।


वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जा‌ए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।


मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।



हरिवंश राय बच्चन 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चन जी की कोई भी रचना, कोई भी गीत चाहे वो "सों मछरी" हो या "रात आधी/ खींचकर मेरी हथेली/ एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने" हो.. बस रोमांटिसिज्म तो इनका भी अद्भुत है!! अमर!!

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  2. सलिल से सहमत ./ रूमानियत से लबरेज हैं बच्चन

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  3. बच्चन जी को पढना अपने आप मने एक नया अनुभव होता है ...
    मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
    प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।
    प्राण को संबोधित कर लिखी गयी यह रचना जीवन दर्शन से ओतप्रोत है ...आपका आभार इसे हम सबके साथ साँझा करने के लिए ...!

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  4. इस गीत को पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया।

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  5. अनुपम गीत है यह... पढवाने के लिए आभार...

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  6. बच्चन जी का गीत पढकर आनन्द आ गया।

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  7. बच्चन जी का गीत पढवाने के लिए आभार...

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  8. आह ..इसे कहते हैं रुमानियत.एक एक शब्द प्रफुल्लित करता सा.
    आभार इस सुन्दर रचना को पढवाने का.

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  9. कितना मिठास है यहाँ ... मन आनंदित हो उठा .

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  10. a complete institution... usnki ek-ek rachna se kai baatein seekhne ko milti hain...
    thank you so much for publishing this one also...

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  11. कवि वर बच्चन जी की बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की आपने...धन्यवाद!

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