आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की कविता-1
बांसुरी...
किसने बांसुरी बजाई ?
जनम-जनम की पहचानी-
वह तान कहां से आई?
अंग-अंग फूले कदम्ब-सम,
सांस-झकोरे झूले;
सूखी आंखों में यमुना की –
लोल लहर लहराई!
किसने बांसुरी बजाई?
जटिल कर्म-पथ पर थर-थर-थर
कांप लगे रुकने पग,
कूक सुना सोए-सोए-से
हिय में हूक जगाई!
किसने बांसुरी बजाई?
मसक-मसक रहता मर्म-स्थल,
मर्मर करते प्राण,
कैसे इतनी कठिन रागिनी
कोमल सुर में गाई!
किसने बांसुरी बजाई?
उतर गगन से एक बार-
फिर पीकर विष का प्याला,
निर्मोही मोहन से रूठी
मीरा मृदु मुसकाई!
किसने बांसुरी बजाई?
आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी की सुन्दर रचना ..बांसुरी .. पढ़ कर मन आनंदित हुआ .. बांसुरी के साथ राधा , मीरा की बात और फिर कर्म पथ पर चलने का सन्देश देती यह रचना बहुत अच्छी लगी ..
जवाब देंहटाएंनमन.. शास्त्री जी को! प्रणाम, उनकी इस रचना को!!
जवाब देंहटाएंबंसी धुन-सी ही मधुर रचना !
जवाब देंहटाएंआभार !
आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी की..बांसुरी ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार इसे यहाँ पढवाने का.