यह व्यथा की रात का कैसा सबेरा है?
सुधीजनों को मेरा सदर प्रणाम ! बहुत दिनों बाद आना हुआ इसके लिया क्षमा याचक हूँ. चलिए तो आज आपकी नाराज़गी दूर करने के लिए मैं कुछ बहुत ही रोचक प्रसंग लेकर आपके लिए ले कर आई हूँ और उम्मीद करती हूँ कि आप इसे पढ़ कर निराश नहीं होंगे.
आज मैं आधुनिक हिंदी साहित्य की शुभश्री महादेवी वर्मा जी के जीवन के बारे में बताते हुए उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को भी आपके साथ साझा करुँगी... तो जी लीजिये आप भी इन्हें जान कर आनंद उठाइए ...
परिचय -
"महादेवी जी आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में अन्यतम हैं. छायावाद युग के चार महान कवियों में उनका स्थान बड़ा महत्वपूर्ण है. साहित्य को उनका योगदान एक कवि के रूप में ही है, लेकिन हिंदी भाषा को सजाने-सवारने में, उसको एक विशेष लालित्य और अर्थ-गाम्भीर्य प्रदान करने में उन्होंने जो भागीरथ प्रयत्न किया है उसके भावी साहित्यकार सदा उनके ऋणी रहेंगे.
भारतीय संस्कृति और साहित्य में जो कुछ श्रेष्ठ, शुभ और गरिमामय है उसे पूर्वजों की महान उपलब्धि के रूप में आत्मसात करके महादेवीजी ने अपनी अद्वितीय काव्य-प्रतिभा से साहित्य की श्रीवृद्धि की है. गीत की विधा को विकास की चरम सीमा पर पहुँचाने वाली यह वाग्देवी खड़ी बोली हिंदी की श्रेष्ठतम रहस्य कवि, यथार्थ गद्यकार और समन्वय वादी समालोचक के साथ ही अद्वितीय शब्द-चित्रकार, संस्मरण लेखिका, चित्रकार तथा समाज-सेविका के रूप में भी प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुकी हैं.
महादेवी जी सांस्कृतिक कवयित्री हैं. आधुनिक युग में महादेवी जी अपने इस सांस्कृतिक आध्यात्मिक उत्तराधिकार का पूर्ण निर्वाह करने में सतत संलग्न हैं. उनका व्यक्तित्व इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है. उन्होंने कहा भी है - "इस बुद्धिवाद के युग में भी मुझे जिस अध्यात्म की आवश्यकता है, वह किसी रूढ़ि, धर्म या सम्प्रदायगत न होकर उस सूक्ष्मता की परिभाषा है जो व्यष्टि की सप्राणता में समष्टिगत एकप्राणता का आभास देता है, इस प्रकार वह मेरे सम्पूर्ण जीवन का ऐसा सक्रिय पूरक है, जो जीवन के सब रूपों के प्रति मेरी ममता समान रूप से जगा सकता है. इसी भावोन्मेष में वो लिखती हैं...
सब आँखों के आंसू उजले सबके सपनों में सत्य पला ! मधुर मुझको हो गए सब मधुर प्रिय की भावना ले.
जीवन यात्रा -
महादेवी जी का जन्म संवत १९६४ (26 मार्च सन् 1907) में होली के दिन फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ. जन्मदिन की यह रंगमयता और सार्वजनीनता उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में सन्निहित है. जन्मदिन की सारी विशेषताएं महादेवी जी के साहित्य में चरितार्थ हैं.
महादेवी जी अपने जीवन पर कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार लिखती हैं -
प्रिय सांध्य गगन मेरा जीवन ! यह क्षितिज बना धुंधला विराग
नव अरुण अरुण मेरा सुहाग
छाया सी काया वीतराग ;
सुधि भीने स्वप्न रंगीले धन
प्रिय सांध्य गगन मेरा जीवन !
महादेवी जी माँ - बाप की पहली संतान हैं. रुढ़िग्रस्त भारतीय समाज में आज भी, फिर उन दिनों तो निश्चित रूप से प्रथम कन्या लाभ शुभ या सुखद नहीं माना जाता था. सौभाग्य से इनका जन्म बड़ी प्रतीक्षा और मनौती के बाद हुआ था. बाबा ने इसे कुलदेवी दुर्गा का विशेष अनुग्रह माना और आदर प्रदर्शित करने के लिए नाम रखा - महादेवी ! इन्होने अपने नाम को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से सफल - सार्थक बना दिया. साकेत के गुप्तजी ने महादेवी जी के लिए लिखा भी है -
सहज भिन्न दो महादेवियाँ एक रूप में मिली मुझे, बता बहन साहित्य -शारदा या काव्यश्री कहूँ तुझे !
महादेवी जी का काव्य करुणा-कलित-अश्रुसिक्त है. पैदा होते ही रोते तो प्राय सभी बच्चे हैं, पर इनकी रोने की अद्भुत आदत. माँ हेमरानी देवी आस्तिक स्वभाव की भारतीय महिला होने के कारण पति को खिलने-पिलाने का कार्य नौकरों पर ना छोड़ कर स्वयं करना चाहती थीं. माँ ने विवशता से परंपरा प्रचलित अफीम का संबल ग्रहण किया. अफीम खिलाई और पलंगे पर डाल दिया. वे अपनी दैनिकी में व्यस्त हो गयी और बालिका ने कल्पनालोक की सैर की. अफीम सेवन से हानि जो भी हुई हो, पर प्रत्यक्ष लाभ यह हुआ कि अन्य शिशुओं कि अपेक्षा इनका विकास शीघ्र हुआ.
क्रमशः
*** *** ***
यह व्यथा की रात का कैसा सबेरा है ?ज्योति-शर से पूर्व का
रीता अभी तूणीर भी है,
कुहर-पंखों से क्षितिज
रूँधे विभा का तीर भी है,
क्यों लिया फिर श्रांत तारों ने बसेरा है ?
छंद-रचना-सी गगन की
रंगमय उमड़े नहीं घन,
विहग-सरगम में न सुन
पड़ता दिवस के यान का स्वन,
पंक-सा रथचक्र से लिपटा अँधेरा है।
रोकती पथ में पगों को
साँस की जंजीर दुहरी,
जागरण के द्वार पर
सपने बने निस्तंद्र प्रहरी,
नयन पर सूने क्षणों का अचल घेरा है।
दीप को अब दूँ विदा, या
आज इसमें स्नेह ढालूँ ?
दूँ बुझा, या ओट में रख
दग्ध बाती को सँभालूँ ?
किरण-पथ पर क्यों अकेला दीप मेरा है ?
यह व्यथा की रात का कैसा सबेरा है ?
vaah kya andaaz hai badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंसाठ वर्ष पहले तो निश्चित रूप से प्रथम कन्या लाभ शुभ या सुखद नहीं माना जाता था
जवाब देंहटाएंआज भी यही हाल है| महादेवी जी के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार
,
गर्व है कि हम उस देश की संतानें हैं जहाँ इतने बड़े-बड़े साहित्यकारों ने जन्म लिया है।
जवाब देंहटाएंदीप को अब दूँ विदा, या
जवाब देंहटाएंआज इसमें स्नेह ढालूँ ?
दूँ बुझा, या ओट में रख
दग्ध बाती को सँभालूँ ?
किरण-पथ पर क्यों अकेला दीप मेरा है ?
यह व्यथा की रात का कैसा सबेरा है ?
महदेवी वर्मा अपने विरह में चिर विश्वास को स्थायी भाव के रूप में बनाए रखने में विश्वास करती है । उन्हें अपने को चिर विरहिणी बनने में ही आनंद की प्राप्ति होती है । उनकी मान्यता है कि तृप्ति साधना में बाधक सिद्ध होती है । इसलिए तो वह अपने काव्यों में वेदना को ही प्रशय देती नजर आती हैं । अज्ञात के प्रति उनकी मान्यता एक रहस्य की सृष्टि कर जाती है । उनकी एक कविता-
जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में विछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार,
अनुराग भरा उन्माद राग,
आँसू लेते वे पद पखार।
उनके हृदय की आकुलता को अपनी पूर्ण समग्रता में उदभाषित करती नजर आती है । महादेवी जी की कविता 'यह व्यथा की रात का कैसा सबेरा है' पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा । धन्यवाद ।
महादेवी वर्मा मात्र साठ साल पहले की हैं? 100 साल से अधिक पहले ही उनका जन्म हुआ था।
जवाब देंहटाएं@ साठ वर्ष पहले
जवाब देंहटाएं@ महादेवी वर्मा मात्र साठ साल पहले की हैं?
संवत - 57 = ई. (1964-57 = 1907)
महादेवी जी का जन्म संवत १९६४ (26 मार्च सन् 1907)
aadarniy sir
जवाब देंहटाएंaaj aapke blog se maha kavy ki mahan kaviyitri mahadevia verm ji
ki jivan shaili tatha sabhi vidhao
se jaankari mili .vaise to in kaviyitri jo ko hamne padha bhi hai pahle.
par bahut dilno baad fir se unko padhna bahut bahut hi achha laga.
hindi sahity ko apna yog daan dene
wali in shreshhthtam vibhuti ko mera shat -shat naman v aapko bhi bahut bahut badhai
sadar naman ke saath
poonam
यह क्षितिज बना धुंधला विराग
जवाब देंहटाएंनव अरुण अरुण मेरा सुहाग
छाया सी काया वीतराग ;
सुधि भीने स्वप्न रंगीले धन
प्रिय सांध्य गगन मेरा जीवन !
महादेवी जी के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार ..मेरा उन्हें नमन..
सार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंजन्म १९०७ में फिर किन पंक्तियों का आशय ?
महादेवी जी माँ - बाप की पहली संतान हैं. रुढ़िग्रस्त भारतीय समाज में आज भी, फिर आज से प्राय : साठ वर्ष पहले तो निश्चित रूप से प्रथम कन्या लाभ शुभ या सुखद नहीं माना जाता था.
भ्रम उत्पन्न करने वाली हैं ...
महादेवी जी के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार|
जवाब देंहटाएंसब आँखों के आंसू उजले सबके सपनों में सत्य पला !
जवाब देंहटाएंमधुर मुझको हो गए सब मधुर प्रिय की भावना ले.
अप्रतिम प्रस्तुति !आभार !हिंदी दिवस की बधाई 1
महादेवी वर्माजी से विस्तार में परिचय करने के लिए आभर आपका ......
जवाब देंहटाएंमहीयसी महादेवी वर्मा को नमन!
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार ....
जवाब देंहटाएंआदरणीय,
जवाब देंहटाएंसुनील जी की बात पर मैंने ऐसा कहा था। धन्यवाद। वैसे अब संवत् प्राय: नहीं लिखा जाता या भक्तिकालीन कवियों के लिए ही लिखा जाता है।
जब भी किसी कवि या कवयित्री के बारे में कुछ कहा जाता है तो उसे वर्तमान में ही कहा और लिखा जाता है क्योंकि किसी भी कवि या कवयित्री की रचना उसके जन्म या मृत्यु के साथ अपनी अभिव्यक्ति को नही जोड़ती हैं । प्रत्येक कवि या कवयित्री की रचना अमर होती हैं । कवि चिर काल से ही वर्तमान में जीता आया है एवं उसी काल में जीता रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंहिन्दी जगत की महान कवियत्री महादेवी जी पर केंद्रित इस आलेख से उनकी अनेकानेक अमर कविताओं की कालजयी पंक्तियाँ अनायास याद आ गयीं , जिन्हें हम कभी अपने छात्र-जीवन में पढ़ा करते थे .आलेख के लिए अनामिका जी को बहुत-बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंआधुनिक मीरा कही जाने वाली कवियित्री महादेवी जी के विषय में जितना कहा जाय कम है । आलेख अच्छा लगा किन्तु पहली बात तो यह कि कवियित्री के साथ-साथ गद्य-लेखन में भी उनका कोई मुकाबला नही । जिसने स्मृति की रेखाएं, अतीत के चलचित्र आदि रचनाएं एक बार भी पढी हैं वह आजीवन भूल नही सकता । रेखाचित्र व संस्मरण तो उनके अद्भुत हैं । चाहे वे निराला जी केविषय में हों या गुप्तजी व नेहरू जी के विषय में । भाषा परिपूर्ण ,
जवाब देंहटाएंसंस्कृत-निष्ठ व गहन-गंभीर होते हुए भी काव्यात्मक आनन्द देती है यह उनके लेखन की सबसे बडी विशेषता है । गद्य-पद्य दोनों में ही में उन्होंने समान अधिकार से लिखा है । अन्तिम पंक्तियाँ (अफीम वाली) किसके लिये कही गईं हैं स्पष्ट नही है ।
श्रद्धेय महादेवी वर्मा जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर इतने ज्ञानवर्धक एवं सार्थक आलेख के लिये आपको बहुत बहुत साधुवाद अनामिकाजी ! उनके बारे में जितना पढ़ने को मिलता है कम लगता है ! इतनी सुन्दर जानकारी देने के लिये आपका ढेर सारा आभार !
जवाब देंहटाएंक्योंकि एक संस्मरण में उन्होंने लिखा है कि उनका जन्म कुल में कई पीढियों बाद जन्मी कन्या के रूप में हुआ था सो बहुत ही लाड-प्यार के बीच उनका लालन-पालन हुआ । घर भरा पूरा था । कई नौकर-चाकर थे । ऐसे में , क्षमा करें , अफीम वाली बात ...। हो सकता है मैं अँधेरे में हूँ । लेकिन ...।
जवाब देंहटाएंक्योंकि एक संस्मरण में उन्होंने लिखा है कि उनका जन्म कुल में कई पीढियों बाद जन्मी कन्या के रूप में हुआ था सो बहुत ही लाड-प्यार के बीच उनका लालन-पालन हुआ । घर भरा पूरा था । कई नौकर-चाकर थे । ऐसे में , क्षमा करें , अफीम वाली बात ...। हो सकता है मैं अँधेरे में हूँ । लेकिन ...।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपने महादेवी जी के बारे में जानकारी बहुत सुन्दर तरीके से दी है |बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
आनंदित कर गया यह आलेख -
जवाब देंहटाएंमहादेवी का गद्य भी उतना प्रभावित करता है जितना पद्य
आभार
सुन्दर जानकारी देते हुए अनुपम लेख के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंबधाई ||
महादेवी वर्मा जी के बारे मे इतना विस्तार से जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसादर
दीप को अब दूँ विदा, या
जवाब देंहटाएंआज इसमें स्नेह ढालूँ ?
दूँ बुझा, या ओट में रख
दग्ध बाती को सँभालूँ ?
महादेवी जी के बारे में यह विस्तारपूर्वक की गई प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी ..आभार आपका ।
महादेवी जो को स्कूल में पढ़ा था ... उनकी राक्स्ह्नाएं हमेशा से ही प्रभावित करती रही अहिं ... आज दुबारा उनके बारे में इतना विस्तृत लेख और इतनी जानकारी पढ़ के बहुत ही अच्छा लगा ... शुक्रिया आपका ...
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंआदरणीय कवयित्री को सादर नमन और आपका आभार
जवाब देंहटाएंसभी सुधि पाठकों की आभारी हूँ जिन्होंने इस लेख को पसंद किया .
जवाब देंहटाएं@ प्रेम सरोवर जी ....मेरी पिछली कई पोस्ट्स पर आप नहीं आये थे, मुझे तो डर था कि कहीं मेरी किसी गलती से खफा तो नहीं हैं.
आज आपको यहाँ देख कर और आपकी विस्तार में दी गयी जानकारी/ टिप्पणी से मन की सारी शंकाएं जाती रही. बहुत बहुत धन्यवाद आपका.
@ गिरिजा जी - आपने अफीम की जो बात कही...आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूंगी की मैंने ये तथ्य ' आज के लोक प्रिय हिंदी कवि - महादेवी वर्मा ' श्री गंगा प्रसाद पण्डे द्वारा सम्पादित जीवनी और संकलन पुस्तक से लिए हैं.
Bahut saree badhiya jaankaaree milee....
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