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रविवार, 25 सितंबर 2011

प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र

प्रेरक प्रसंग-4

प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र

मनोज कुमार

DSCN1454गांधी जी प्रायः सप्ताह में एक दिन मौन धारण किया करते थे और दिन होता था सोमवार। इसके द्वारा वे अपने गले को सुरक्षित रखना चाहते थे और अपने शरीर में साम्य। अपना मौन वे दो ही परिस्थिति में तोड़ सकते थे, एक जब किसी अनिवार्य मसले पर किसी उच्च अधिकारी से बात करनी हो, या दूसरे किसी बीमार आदमी की देखभाल करनी हो। उपवास के दौरान गांधी जी पानी में चुटकी भर सोडियम बाइकार्बोनेट मिलाकर लेते थे। वे मानते थे कि ग़रीब और निसहाय लोगों के लिए उपवास सबसे मज़बूत शस्त्र है। जब भी वे विकट परिस्थित में होते थे, इसका इस्तेमाल करते थे। उनके जीवन में बड़ी बड़ी सफलताएं इसके प्रयोग से हासिल हुईं। अपने सम्पूर्ण जीवन में उन्होंने सोलह बार उपवास ग्रहण किया। दो बार उनका उपवास 21 दिनों तक चला। उनहोंने स्वीकार किया है कि सार्वजनिक जीवन में खुद पर आरोपित इस तरह की यातना बहुत ही प्रभावकारी अहिंसक शस्त्र सिद्ध हुआ। इसके प्रयोग के वे सारे संसार में सबसे बड़े सिद्धान्तकार कहलाए। लेकिन उनका कहना था कि उपवास का निश्चय कुछ खास परिस्थितियों में लिया जाना चाहिए।

DSCN1415उपवास के दौरान उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत होती या कुछ सूचना देनी होती, तो काग़ज़ के टुकड़े पर लिखकर बताते थे। लेकिन काग़ज़ का यह टुकड़ा भी नया या कोरा नहीं होता था। बापू आए हुए पत्रों के पीछे, जिन पर कुछ लिखा हुआ न हो या लिफ़ाफों को खोलकर उनके अन्दर की ओर के बिना लिखे या बिना छपे वाले हिस्से पर लिखा करते थे। बापू का कहना था,

“हमें आवश्यकता से तनिक भी ज़्यादा उपयोग नहीं करना चाहिए। और हर चीज़ का इस्तेमाल किफ़ायत से करना चाहिए।”

11 टिप्‍पणियां:

  1. “हमें आवश्यकता से तनिक भी ज़्यादा उपयोग नहीं करना चाहिए। और हर चीज़ का इस्तेमाल किफ़ायत से करना चाहिए।”

    यह बात हम सभी के लिए आज भी प्रयोज्य है । पोस्ट अच्छा लगा । धन्यवाद ।

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  2. जीवन में वस्तुओं का अधिकतम सदुपयोग करने का तरीका जितना गाँधी जी ने किया, उतना विश्व के इतिहास में शायद ही कोई किया होगा। आभार।

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  3. “हमें आवश्यकता से तनिक भी ज़्यादा उपयोग नहीं करना चाहिए। और हर चीज़ का इस्तेमाल किफ़ायत से करना चाहिए।”

    यदि यह सार्थक सीख लोग जीवन में उतार लें तो किसी वस्तु की कमी न रहे ...आवश्यता से अधिक धन की भी नहीं ...

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  4. किफायती जीवन शैली में संतोष का जो भाव अन्तर्निहित है,वह आर्थिक दृष्टि से तो उपयोगी है ही,जीवन के दूसरे लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायक है.

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  5. aaj sabhi is k vipreet karne ki koshish kar rahe hain.

    aabhar is post aur gandhiji k hastlikkhit chhote se dastavez k liye.

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  6. अच्छी सीख देती सुन्दर प्रस्तुति।

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  7. गांधीजी के जीवन से सम्बंधित इस प्रसंग से हमें भी सीखने की आवश्यकता है ...

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  8. जीवन को दृष्टि देता बहुत अच्छा आलेख....

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