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सोमवार, 26 सितंबर 2011

राख का अम्बार और इंतज़ार


न जाने कितनी बार
मेरे हिस्से ज़हर आया है
जब -जब भी ज़िन्दगी ने
मंथन किया
मैंने विष ही पाया है।
इतना गरल पा कर भी
मन मेरा शिव नही बन पाया
क्यों कि ये ज़हर
मेरे कंठ में नही रुक पाया है।
उगल दिया मैंने सब
बिना ज़मीं देखे हुए
बंजर हो गई वो धरती
जहाँ प्रेम की पौध
उगा करती थी
जल गए वो दरख्त
जिनकी टहनी मिला करती थी
सूख गए वो अरमान
जो इन पेडों पर रहा करते थे
मर गए वो एहसास
जो इन पर
झूले झूला करते थे ।
आज बस रह गया है तो
एक राख का अम्बार है
इसे उड़ने के लिए हवा के
हल्के से झोंके का इंतज़ार है.
 
संगीतास्वरूप

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता। बधाई।

    शायद आपने ब्‍लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।

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  2. गरल पीकर सरल रहना दुष्कर है इसलिए लोग उलीच देते हैं और यह ज़हर समाज के लिए ख़तरा हो जाता है.आख़िर हर कोई शिव थोड़ी हो सकता है !

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  3. हाँ ,शिव होना बहुत कठिन है ,गरल को पचाना उससे भी अधिक मुश्किल .

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  4. न जाने कितनी बार
    मेरे हिस्से ज़हर आया है
    जब -जब भी ज़िन्दगी ने
    मंथन किया, मैंने विष ही पाया है।

    Sangeeta ji bahut sundar rachana.
    Badhai.

    जवाब देंहटाएं
  5. गरल पीने की शक्ति और उसे अपने अन्‍दर धारण करने की क्षमता यदि किसी में है तो वह महिला ही है। लेकिन आज लोगों ने इस दुनिया को वास्‍तव में जहर से भर दिया है। बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति।

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  6. उफ़ बेहद दर्द ही दर्द भर दिया है हकीकत के साथ्।

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  7. मैंने विष ही पाया है।
    इतना गरल पा कर भी
    मन मेरा शिव नही बन पाया
    क्यों कि ये ज़हर
    मेरे कंठ में नही रुक पाया है।

    मन की पीड़ा से उपजी बहुत मार्मिक, बहुत सुन्दर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  8. गरल पान का दायित्व सदैव स्त्री के ही हिस्से में क्यों आता है ? क्या संतुलन बनाये रखने की जिम्मेदारी सिर्फ उसीकी है ? बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  9. जब -जब भी ज़िन्दगी ने
    मंथन किया
    मैंने विष ही पाया है।
    इतना गरल पा कर भी
    मन मेरा शिव नही बन पाया
    क्यों कि ये ज़हर
    मेरे कंठ में नही रुक पाया है।.......शिव बनना कहाँ आसान, पर आपके बेबाक सच ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए

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  10. बहुत मार्मिक और गहन अभिव्यक्ति ....

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  11. जब -जब भी ज़िन्दगी ने
    मंथन किया
    मैंने विष ही पाया है।
    इतना गरल पा कर भी
    मन मेरा शिव नही बन पाया

    जवाब देंहटाएं
  12. मन मेरा शिव नही बन पाया
    क्यों कि ये ज़हर
    मेरे कंठ में नही रुक पाया है।
    उगल दिया मैंने सब
    बिना ज़मीं देखे हुए
    बंजर हो गई वो धरती
    जहाँ प्रेम की पौध
    उगा करती थी
    जाने कितनो का सच कह दिया.पता नहीं कैसे भावों को इतना सहज और सटीक लिख लेती हैं आप.

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. आज बस रह गया है तो
    एक राख का अम्बार है
    इसे उड़ने के लिए हवा के
    हल्के से झोंके का इंतज़ार है.

    rachnakar jis bhavbhoomi par rachna ka srijan karta hai jaruri nahi ki pathak uski soch tak pahunch paye...isliye me nahi janti ki ye upar ki panktiya kis bhaavbhoomi ko sambandhit karti hain....han jahan tak meri soch pahunchti hai to in panktiyo ke jawab me main yahi kahungi...ki acchha ho vo hawa ka jhonka is garal yukt raakh ko uda le jaye aur ek nayi pyar ki, sahishnuta ki mitti laaye jisme shiv jaisa saty aur sundarta to ho lekin zeher na ho. jis se paid ki hari bhari tehniyon par armaan lehlaha uthen.

    जवाब देंहटाएं
  15. न जाने क्यों आपकी बात से सहमत होने का मन करता है। जहर निगलें क्यों, बहुत सही किया है कि उगल दिया और यह विष उन्हें नुकसान पहुंचा रहा है जिन्होंने साजिश की थी जहर पिलाने की।

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  16. सभी पाठकों का आभार ...

    अनामिका जी ,

    शुक्रिया आपकी सुन्दर सोच के लिए ...

    अंतिम पंक्तियाँ अंतिम विदाई के लिए हैं ... प्यार नया पुराना नहीं होता ...नयी शुरुआत भी नहीं होता ..आपकी खूबसूरत कामना के लिए शुक्रिया

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  17. नीलकंठ न बन पाना और विष-वमन... अनोखे बिम्बों के सहारे अनोखी रचना का सृजन!!

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  18. बिल्कुल ही नये प्रतिम्बों में पीड़ा व्यक्त की गई है.अति-सुंदर.
    त्रिशूल,त्रिनेत्र और ताण्डव भी अनिवार्य है विष को कंठ में धारण करने के लिये.

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  19. आज बस रह गया है तो
    एक राख का अम्बार है
    इसे उड़ने के लिए हवा के
    हल्के से झोंके का इंतज़ार है.
    bahut umda...aabhar

    जवाब देंहटाएं
  20. उगल देना ही ठीक था , राख बनकर उड़ जायेगा !
    गहन भाव !

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  21. sangeeta ji mere comments par apka jawab maine aaj padha...aur aapki rachna ki bhaavbhoomi jaani.

    maine pahle hi likha hai ki jaruri nahi ki pathak rachnakar ki bhavbhoomi tak pahunch paye.

    so...ant me in antim panktiyon par to meri yahi kaamna hai ki aaj is raakh ke ambaar par koi prem varsha kare jis se isme chhupa garal amrit me parivartit ho jaye aur aaye to sahi hava ka jhonka lekin aisa jo ise chhoo kar nikle to ek thandak ka ehsaas lekar nikle.

    prem varsha me bahut takat hoti hai...usi ke liye dua karungi.

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  22. इतना गरल पा कर भी
    मन मेरा शिव नही बन पाया
    क्यों कि ये ज़हर
    मेरे कंठ में नही रुक पाया है।
    जीवन में अनायास ही हम उस विष को उड़ेलने लगते हैं ..जो हमने अपनों से या अनुभवों से पाया है. यह भूल जाते हैं की इसे उगलने से पीड़ा और बढ़ेगी......और वह बढती जाती है

    अति सुन्दर !

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