आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की कविताएं-3
दूर दुनिया क्या कहेगी
रेत पर जो लिख रहा मैं,
धार उसको मेट देगी !
फिर किनारे पर खड़ी दुनिया,
कहो तो, क्या कहेगी?
झुक गया भ्रम में न फूला
रुक गया पर पथ न भूला
यह कहानी जो वही मेरी निशानी क्या रहेगी?
धार पर आंखें गड़ा, दुनिया, कहो फिर क्या कहेगी?
सजल बादल बन न पाया
मैं गगन से छन न पाया,
अश्रुःफुहियों के लिए क्या भूमि लू-लपटें सहेगी?
बाद बादल के जली बिजली कड़क कर क्या कहेगी?
दर्द यह चुप लिख रहा मैं,
गर्द में क्या दिख रहा मैं!
यह कसक बन गान तेरे प्राण में लुक-छुप रहेगी?
मैं सुनूंगा ही नहीं फिर, दूर दुनिया क्या कहेगी!
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एक अनोखे कवि की अनोखी रचना.. नमन!!
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जवाब देंहटाएंदर्द यह चुप लिख रहा मैं,
जवाब देंहटाएंगर्द में क्या दिख रहा मैं!
यह कसक बन गान तेरे प्राण में लुक-छुप रहेगी?
मैं सुनूंगा ही नहीं फिर, दूर दुनिया क्या कहेगी!
जीवन सन्दर्भों को उद्घाटित करती शास्त्री जी की यह रचना अद्भुत है .....आपका आभार इसे हम सब के साथ सांझा करने के लिए ...!
बहुत सुन्दर रचना, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंरेत पर जो लिख रहा मैं,
जवाब देंहटाएंधार उसको मेट देगी !
फिर किनारे पर खड़ी दुनिया,
कहो तो, क्या कहेगी?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी की कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंदर्द यह चुप लिख रहा मैं,
गर्द में क्या दिख रहा मैं!
कसक बन गान तेरे प्राण में लुक-छुप रहेगी?
मैं सुनूंगा ही नहीं फिर,दूर दुनिया क्या कहेगी!
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