सोचिए अगर आपको प्रेमचन्द, निराला, महादेवी वर्मा, दिनकर , गाँधी जी सहित राहुल सांकृत्यायन से लेकर वेद-पुराण-रामायण-महाभारत तक सब कुछ मुफ़्त में पढ़ने को मिल जाय या डाउनलोड करने को मिल जाय तो आप कितने भारी वजन से बचे रह सकते हैं! सिर्फ़ साहित्य ही नहीं बल्कि विज्ञान और तकनीक की भी सैकड़ों-हजारों किताबें भी आपको अन्तर्जाल पर मुफ़्त मिल सकती हैं। आप जरूरत होने पर किताबों को इस्तेमाल भी कर सकते हैं, अगर किताब सर्वाधिकार(कापीराइट) मुक्त हुई तब।
अन्तर्जाल पर स्तरीय हिन्दी किताबों की कमी की बात अक्सर कही जाती है, जो बहुत हद तक सही भी है। गूगल पुस्तकों में कई पन्ने गायब रहते हैं या फिर उनको आफलाइन पढ़ना सम्भव बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। हिन्दी समय ने साहित्य की दिशा में तो बहुत काम किया है लेकिन अभी तक कथा-कहानी-उपन्यास के अलावे किताबों पर काम कम ही हुआ है।
भारत सरकार कुछ अच्छे काम भी कर डालती है कई बार। उनमें से एक है किताबों के डिजिटाइजेशन करने का। डिज़िटल लाइब्रेरी पर हिन्दी, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं की दो-ढाई लाख से अधिक किताबें मौजूद हैं। आनलाइन पढ़ने के लिए आपको भारत सरकार की वेबसाइट पर जाना होगा।
आइए हम किताबों को खोजने, पढ़ने और उनको डाउनलोड करने का सचित्र विवरण देखते हैं।
आप यहाँ विषय और भाषा का चुनाव कर सकते हैं। और फिर किताबों को उनके नाम , लेखक , प्रकाशन का वर्ष आदि के आधा र पर दिए गए बक्से की सहायता से खोज सकते हैं। यहाँ एक बात ध्यान देने लायक है किताबों के नाम आप नागरी में लिखकर खोजेंगे तो ठीक से नहीं देख सकेंगे। हालाँकि आप ठीक से समझ नहीं आ रहे शब्दों पर कर्सर ले जाते ही स्थिति पट्टी यानी स्टेटस बार में देख सकते हैं कि उस समझ नहीं आ सकने वाले शब्द का क्या मतलब है। उदाहरण के लिए , मैंने किताब के नाम के लिए टाइटल में ‘हिंदी’ लिखा तब
S. Rahul
किताबों के नाम के साथ एक बड़ी संख्या दी हुई है, जो उस किताब का बार कोड है। जैसे
Baiswabi Sdi., 5990010115302. Rahul Sanskrityayna. 1943. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 145 pgs.
यह विंडो खुलेगा। आप यहाँ भी बार को ड देख सकते हैं। बुक रीडर एक या दो पर क्लिक कर के आप इस किताब को आनलाइन पढ़ सकते हैं। जिस कम्प्यूटर में इंटरनेट डाउनलोड मैनेजर नाम का साफ्टवेयर स्थापित है, कई बार वहाँ किताब पढ़ने में समस्या भी आती है। फिलहाल हम उस असुविधा या समस्या पर नहीं जाकर किताब को डाउनलोड करने की प्रक्रिया पर आते हैं। फिर भी अगर आप किताब आनलाइन पढ़ने में परेशानी महसूस करें तब सम्पर्क कर सकते हैं।
किताबों को कैसे करें डाउनलोड
किसी भी किताब को डाउनलोड कर ने के लिए डीएलआई डाउनलोडर नाम के साफ्टवेयर की आवश्यकता होगी। उसे आप यहाँ से सीधे डाउनलोड कर सकते हैं।
डाउनलोड करने के बाद स्थापित करें। पहली बार एक संदेश वाला विंडो खुलेगा। वहाँ आप लाल × (क्रास) पर क्लिक करें। अब आप कोई भी किताब डाउनलोड करने के लिए तैयार हैं।
डीएलआई डाउनलोडर का विंडो नीचे दिखाया गया है, जिसमें आप किसी किताब को खोजने के बाद , उसके बार कोड को दिए बक्से में चिपकाएंगे। पेजेज के अन्दर आप किताब के कितने पन्ने डाउनलोड करना चाहते हैं, यह लिखा जाता है। अगर आप पूरी किताब डाउनलोड करना चाहते हैं, तब उसमें कुछ न लिखें यानी खाली छोड़ दें। अब आपके डाउनलोड बटन पर क्लिक करते ही नीचे स्टेटस में आपको किताब के डाउनलोड होने के लिए उपलब्ध होने का संदेश मिल जाएगा। बगल में दाईं तरफ़ किताब की कुल पृष्ठ संख्या और डाउनलोड हो चुके पन्नों की संख्या भी दिखेगी।
मेरी समझ से इस साफ्टवेयर में आप मोड हमेशा सेफ़ मोड चुनें। फ़ाइल मेन्यू से किताबों को रखने के लिए फोल्डर आदि की सेटिंग अपने सुविधानुसार कर लें। किताब डाउनलोड होने के बाद पीडीएफ में आपको उसी फोल्डर में मिलेगी जिसको आपने फ़ाइल मेन्यू से सेट किया है। डिफाल्ट यानी पहले से यह फोल्डर आपके माई डाक्यूमेंट्स यानी मेरे दस्तावेज के अन्दर डीएलआईडी बुक्स फोल्डर होता है।
किसी भी किताब के डाउनलोड होने के बाद सफलतापूर्वक किताब डाउनलोड होने का एक संदेश मिलेगा।
1-6,9,11-13
बस अब किताब का आनन्द बिना आनलाइन हुए भी लीजिए। देखिए किताब की खुद से बनी हुई पीडीएफ और उसका पहला पन्ना:
चलते-चलते यहाँ कुछ किताबों के लिए कड़ियाँ और उनके बार-कोड दिए जा रहे हैं। इसका आनन्द उठाइए।
राहुल सांकृत्यायन
chin mai kya dekha., 99999990001271. rahul sankrtyayan. 1960. hindi. literature. 255 pgs. |
Darshan Digdarshan., 5990010118791. Rahul Sankritiyayn. 1944. hindi. Literature. 879 pgs. |
divodasha., 99999990012024. sankrityayan, rahul. 1884. hindi. |
Ghumakkar Shastra., 1990010094258. Rahul Sankrityayan. 1949. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 169 pgs. |
rigvedik arya., 99999990275714. sankrityayan, rahul. 1956. hindi. etihasik nibandh. 395 pgs. |
roosa me pacheesa varsh [yatra]., 99999990000642. rahul. 1952. hindi. history. 429 pgs. |
Visaw ki Rooprekha., 5990010115569. Rahul Sankrityawan. 1944. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 430 pgs.
1120 Volga Se Ganga 1943., 99999990235425. Rahul. 1943. hindi. Hindi Sahitya. 387 pgs. |
1241 KARL MARKS., 99999990235511. Rahul. 0. hindi. Jeevani. 398 pgs. |
1337 NAYE BHARAT KE NAYE NETA (1943)., 99999990235592. Rahul. 1943. hindi. Neta. 698 pgs. |
Maanav Samaaj., 2990140052599. Sn'krxtyaayan Raahul. 1942. hindi. SOCIAL SCIENCES. 473 pgs.
यशपाल
Daadaa kaamred., 5990010043462. Yashpal. 1984. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 194 pgs. |
dekha soch or samgha., 99999990276604. yashpal. 1951. hindi. hindi shahitya. 155 pgs. |
Desh drohii., 5990010044774. Yashpal. 1984. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 253 pgs. |
Dharmayudhya., 1990010094246. Yashpal. 1950. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 127 pgs. |
Divyaa., 5990010043549. Yashpal. 1980. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 207 pgs. |
Faansi., 1990010086419. Yashpal. . hindi. Literature. 123 pgs. |
Jhuuthaa sach., 5990010045093. Yashpal. 1963. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 513 pgs. |
Khachchar aur Admee., 5990010042708. Yashpal. 1965. hindi. LITERATURE. 104 pgs. |
Lohe kii diivaar ke dono or., 5990010043763. Yashpal. 1953. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 358 pgs. |
Manushya ke Roop., 5990010045400. Yashpal. 1983. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 346 pgs. |
markswaad., 5990010114399. yashpal. 0. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 227 pgs. |
Meri Teri Uski Baat., 5990010045422. Yashpal. 1984. hindi. LANGUAGE. LINGUISTICS. LITERATURE. 631 pgs. |
राममनोहर लोहिया
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hindu banam hindu., 99999990276361. lohiya rammanohar. 1955. hindi. hindu law --digests.. 91 pgs. | ||||
itihas chakra., 99999990276362. lohiya rammanohar. 1955. hindi. history-india. 97 pgs. |
जवाहर लाल नेहरु
hindustan ki kahani., 99999990000920. nehru, pandit jawaharlal. 1947. hindi. history. 741 pgs.
Bharat ki khoj., 99999990128722. Nehru Jvaherlal. 1996. hindi. General history or asia . 399 pgs.
vishv etihas ki jalak., 99999990276295. nehru motilal. 1931. hindi. hindi sahitya. 495 pgs. |
vishva itihas ki jhalak (vol - i)., 99999990000881. pandit jawahr lal nehru. 1937. hindi. history. 775 pgs. |
vishva itihas ki jhalak (vol - ii)Â ., 99999990000880. pandit jawahr lal nehru. 1968. hindi. history. 776 pgs. |
प्रेमचन्द और गाँधी जी पर या इनकी लिखी बहुत सी किताबें हैं। इसी तरह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, मन्मथनाथ गुप्त, विनोबा भावे, गुणाकर मुळे, भगतसिंह, मैक्सिम गोर्की, चेखव, दिनकर, रामविलास शर्मा, बंकिम चन्द्र, जयप्रकाश नारायण, मुक्तिबोध, अम्बेदकर, आर एस शर्मा, कार्ल मार्क्स, चतुर सेन, फणीश्वरनाथ रेणु, महादेवी वर्मा, आचार्य शिवपूजन सहाय, डार्विन, विवेकान न्द, भदन्त आनन्द कौशल्यायन, भोलानाथ तिवारी, इन सबकी किताबों का आनन्द लीजिए। साथ ही मनोविज्ञान, इतिहास, कम्प्यूटर, चिकित्साविज्ञान जैसे विषय की भी बहुत सारी किताबें हैं। कभी कभी खोजने में परेशानी हो सकती है। उस वक्त नाम में हिज्जे यानी स्पेलिंग को थोड़ा इधर-उधर कर के देखें।
इस लेख के लिखे जाने तक हिन्दी की 25470, अंग्रेजी की 152326, संस्कृत की 7888 किताबें डिजिटल लाइब्रेरी पर हैं, ऐसी सूचना है। हालाँकि कई किताबें दो-चार बार भी हैं।
ध्यान दें: अभी अभी पता चला है कि कुछ किताबों में डाउनलोड की समस्या है। फिर भी आनलाइन पढ़ने के लिए लगभग सब किताबें उपलब्ध हैं। किसी-किसी किताब में कोई-कोई पृष्ट भी गायब हो सकता है। लेकिन सामान्यत: सबकुछ ठीक है। ऊपर के कुछ लिंक डाउनलोड के लिए काम नहीं कर पा रहे हैं ।
किताबों के लिए अन्तर्जाल पर कई विकल्प हैं:
इसके अलावे आप स्क्रीबडी, अपनीहिन्दी, आर्काइव डॉट ओआरजी, हिन्दीसमय (यह भी लाजवाब है। हिन्दी साहित्य के लिए तो समुद्र ही है) आदि जगहों पर भी बहुत कुछ पढ़ सकते हैं। हाँ, स्क्रीबडी से डाउनलोड करने के लिए आपको वहाँ अपना खाता खोलना पड़ेगा। स्क्रीबडी पर भास्कराचार्य की लीलावती और बीजगणित भी हैं।
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ... नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 19-11-11 को | कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें...
जवाब देंहटाएंजानकारी तो अच्छी है पर कुछ ढूँढ नहीं पायी ..फिर फुरसत से प्रयास करुँगी
जवाब देंहटाएंमैं रागदरबारी ढूँढ रही थी फिर से पढ़ना चाहती थी ... समझ नहीं आया कुछ
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी,
जवाब देंहटाएंमैं नहीं समझ पाया कि राग दरबारी क्यों नहीं मिल सकी?
5990010043059…मुझे टाइटल में rag darbari लिखते ही, वह भी बिना भाषा, लेखक आदि चुने एक बार में दिख गई। राग दरबारी का तमिल, ओड़िया और पंजाबी संस्करण भी सिर्फ़ darbar लिखकर खोजते ही मुझे मिल गया। आप ऊपर वाले बार कोड डीएलआई डाउनलोडर में डाल कर और पेजेज विकल्प में खाली छोड़कर देखिए। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित, 1993 में मुद्रित संस्करण आपके सामने होगा। वैसे आप अपनी हिन्दी वेबसाइट पर भी राग दरबारी प्राप्त कर सकती हैं। लेकिन अपनी हिन्दी पर पुराने संस्करण की जानकारी है। पुराने संस्करण का अर्थ, जब छपाई में शब्द अलग-अलग अक्षरों वाले साफ दिखते थे। मैं हमेशा आधे-अधूरे नाम से किताब खोजकर पा लेता हूँ।
बढ़िया लगा ,तीन दिनों से नेट खराब था .
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