आदरणीय पाठकों को अनामिका का सादर प्रणाम ! आप सभी पाठकों की प्रेरणादायक टिप्पणियों ने मेरे मन की आशंकाओं का निराकरण करते हुए बहुत प्रोत्साहन दिया है. मानवीय स्वभाव है ये कि जब जब इन्सान को उसके साथियों का साथ और प्रोत्साहन मिलता है तो वो और भी अत्यधिक ऊर्जा से अपने कार्यों को अंजाम देने में लग जाता है...ऐसी ही कुछ ऊर्जा मुझे आप सब से प्राप्त हुई है जिसके लिए मैं आप सब का अपने दिल की गहराइयों से आभार व्यक्त करती हूँ...तो चलिए अब इस श्रृंखला के अगले पड़ाव की ओर अग्रसर होते हैं.......
पिछले अंकों में हमने महादेवी जी के तीसरे सोपान - नीरजा, चौथी काव्य कृति 'सांध्यगीत'और पांचवी काव्य-कृति 'दीपशिखा'के बारे में पढ़ा. महादेवी जी एक सफल चित्रकर्मी भी हैं. महादेवी जी के चित्र के विषय में कुछ अधिक कहने की मैं अधिकारी नहीं हूँ. केवल इतना ही कह सकती हूँ कि गीतों की पृष्ठभूमि के रूप में अंकित उनके चित्र भावों के मूर्तित करने में पूर्णतः सफल हैं. गीतों की भाव-व्यंजना के सहयोगी होने के कारण ये चित्र स्वभावतः वस्तुपरक होने की अपेक्षा भावात्मक अधिक हो गए हैं, यह भी सच है. उदाहरणस्वरुप - 'आंसू से धो आज इन्हीं अभिशापों को वर कर जाउंगी ' वाला चित्रगीत लिया जा सकता है. चित्र में एक स्त्री के दोनों हाथ काँटों से बंधे हैं और अँगुलियों में अविकसित, अर्धविकसित कमल के फूल अपनी नाल के साथ लिपटे पड़े हैं. अपने ऊपर आपदाओं का बोझ रखकर भी दूसरे के सुख-स्वागत का भाव ही चित्र और गीत का प्रतिपाद्य है. अपनी तपन - तपस्या और त्याग से दूसरों को सुखी बनाने की कामना ही दोनों के साम्य का आधार हैं. किसी भी चित्रगीत को लेकर यह भावसाम्य स्पष्ट किया जा सकता है.
अभी तक महादेवी जी की चित्रकला पर सम्यक समालोचन का प्रायः अभाव है, परन्तु जब कभी इस ओर कलाविन्दों का ध्यान आकर्षित होगा, तब भारतीय संस्कृति की दृष्टि से इन चित्रों का महत्त्व स्पष्ट होकर सामने आएगा, यह निश्चित जान पड़ता है. अपने चित्रों की चर्चा करते हुए इन्होने चित्रकला की जिन विशेषताओं का उल्लेख किया है वे अधिकतर इनके चित्रों में समविष्ट हैं.
वास्तव में महादेवी जी की भाव-चेतना इनती गंभीर, मार्मिक और संवेदनशील है कि उसकी अभिव्यक्ति का प्रत्येक रूप नितांत मौलिक और हृदयग्राही शैली की स्थापना करने में स्वभावतः सफल होता है. साहित्यकार, चित्रकार तथा मूर्तिकार होने के साथ ही वे एक अत्यंत प्रभावशाली व्याख्याता और समाज-सेविका भी हैं. इनके भाषणों को सुनने वाले श्रोताओं को यह भली-भाँती ज्ञात है कि उन्हें भाव-विभोर कर देने की क्षमता में महादेवीजी अद्वितीय हैं. विषय को सुनने वालों के लिए इतना संवेदनीय बना देती है कि वे इनके शब्दों को अपने संवेदनों से मिलते हुए इनके साथ परम आत्मीय भाव से बहते चले जाते हैं. वक्ता और श्रोता का भाव-स्पंदन एक ही लय में लयमान हो जाता है. वक्ता और श्रोता का ऐसा तादाम्य -स्थापन भाषण कला की चरम परिणति है. महादेवीजी ऐसी ही समर्थ व्याख्याता हैं.
अपने साहित्यिक और सामाजिक कार्यों के साथ वे देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में भी निरंतर यथायोग्य सहयोग देती रही हैं. सन १९४२ के स्वतंत्रता -संग्राम में इन्होने जिस अडिग धैर्य और अटूट साहस के साथ विद्रोहियों का साथ दिया है, उनकी सहायता की है, उनको और उनके परिवार को सरंक्षण दिया है, वह बहुत ही रोमांचकारी और आश्चर्यजनक है. उन्ही दिनों की एक घटना-विशेष से परिचित होकर श्री इलाचंद्र जी जोशी ने कहा था -
'आजकल सरकार का रुख बहुत कड़ा है ! किंचितमात्र संदेह होने पर पुलिस वाले बहुत परेशान करते हैं. स्थिति महिलाओं के लिए और भी भयावह है. आपको बहुत सावधान रहना चाहिए.'
' यह सब तो मैं नहीं जानती हूँ, पर विश्वास और आशा से आये हुए देश-प्रेमी विद्रोही को सहानुभूति और सरंक्षण देने से इंकार भी तो नहीं किया जा सकता. इस समय देश को बहुत बड़े बलिदान और त्याग की आवश्यकता है. पुलिसवाले हमें जीवित तो पकड़ नहीं सकते, और यथाशक्ति काम तो करना ही है. राक्षसी परिपीडन का भय हमको नहीं है, क्युकी हम जौहर व्रत के सच्चे अधिकारी हैं !'
हम लोग केवल स्तब्ध थे.
बंगाल के अकाल के समय 'बंगदर्शन' और चीनी आक्रमण के समय 'हिमालय' काव्य-संकलन और प्रकाशन इनकी राष्ट्रसेवा के ही ज्वलंत अनुष्ठान हैं. 'बंगदर्शन' की अपनी बात में महादेवीजी ने लिखा था - 'किसी अन्य देश में यह घटना घटित होती तो क्या होता इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. परन्तु हमारा देश इसे अदृश्य का लेख मानकर स्वीकार कर ले तो स्वाभाविक ही कहा जायेगा. फिर भी प्रत्येक विचारक जानता है कि यह आकस्मिक वज्रपात नहीं है, जिसका कारण दुर्देव या संयोग मानकर जिज्ञासा विराम न पा सके. यह तो मनुष्य के स्वार्थ की शिला पर उसके प्रयत्न और बुद्धि द्वारा निर्मित नरक है. अतः इसका कारण ढूँढने दूर ना जाना होगा. इस दुर्भिक्ष की ज्वाला का स्पर्श करके हमारे कलाकारों की लेखनी-तूली यदि स्वर्ण न बन सकी तो उसे राख हो जाना पड़ेगा. हिमालय का समर्पण इस प्रकार है - जिन्होंने अपनी मुक्ति की खोज में नहीं, वरन भारत भूमि को मुक्त करने के लिए अपने स्वप्न समर्पित किये हैं, जो अपना संताप दूर करने के लिए नहीं, वरन भारत की जीवन ऊष्मा को सुरक्षित रखने के लिए हिम में गले हैं, जो आज हिमालय में मिलकर धरती के लिए हिमालय बन गए हैं, उन्हीं भारतीय वीरों को पुण्यस्मृति में' और इस संग्रह के विषय में इन्होंने लिखा है -'इतिहास ने अनेक बार प्रमाणित किया है कि जो मानव समूह अपनी धरती के जिस सीमा तक तादाम्य कर सका है, वह उसी सीमा तक अपनी धरती पर अपराजेय रहा है. इस तादाम्य के अनेक साधनों में विशिष्ट साहित्य है. किसी भूमिखंड पर किस मानव समूह का सहज अधिकार है, इसे जानने का पूर्णतम प्रमाण उसका साहित्य है. आधुनिक युग के साहित्यकारों को भी अपने रागात्मक उत्तराधिकार का बोध था, इसीसे हिमालय के आसन्न संकट ने उनकी लेखनी को ओज के शंख और आस्था की वंशी के स्वर दिए हैं !
अन्याय कि दुर्दमनीय स्थितियों के प्रति मन में विद्रोह स्वाभाविक है, पर उसे क्रियात्मक रूप देने कि क्षमता जिस अपराजेय आत्मदान की अपेक्षा रखती है, वह महादेवीजी की निजी विशेषता है. वस्तुतः मैथिलि की अग्निपरीक्षा, बुद्ध का गृहत्याग और महादेवी की विद्रोह सत्य को सुंदर और सुंदर को शिव बनाने की ऊर्धव्गामी सीढियां हैं, जिनके द्वारा राग द्वेष से मुक्त होकर मनुष्य जीवन की उच्चतम भूमि पर चढ़ सकता है. इनके विद्रोह में आग की लपटों का उच्छ्वसित आवेग नहीं, दीपक की लौ की आलोकवाही स्निग्धता है, चमत्कारी बुद्धि का उतावलापन नहीं, भावावेश को स्पंदित कर देने वाली हार्दिकता का विश्वास है, संकोच, संदेह तथा भय-पराजय का भाव नहीं, विजयी की वह विनम्रता और उदारता है, जिसपर साधना का पानी चढ़ा हुआ है. आशय यह है कि विद्रोह कि मंगल्मुखी भावना पर ही इनकी आस्था है.
क्रमशः
बंग भू शत वन्दना ले
बंग भू शत वन्दना ले !
भव्य भारत की अमर कविता हमारी वन्दना ले !
अंक में झेला कठिन अभिशाप का अंगार पहला,
ज्वाल के अभिषेक से तूने किया श्रृंगार पहला,
तिमिर सागर हरहराता,
संतरण कर ध्वंस आता,
तू मनाती है हलाहल घूँट में त्यौहार पहला,
नील्कंठिनी ! सिहरता जग स्नेह कोमल कल्पना ले !
वेणुवन में भटकता है एक हाहाकार का स्वर,
आज छले से जले जो भाव से वे सुभर पोखर,
छंद से लघु ग्राम तेरे,
खेत लय विश्राम तेरे,
वह चला इन पर अचानक नाश का निस्तब्ध सागर!
जो अचल बेला बने तू आज वह गति-साधना ले !
शक्ति की निधि अश्रु के क्या श्वास तेते तोलते हैं ?
आह तेरे स्वप्न क्या कंकाल बन बन डोलते हैं ?
अस्थियों की ढेरियाँ हैं,
जम्बुकों की फेरियां हैं,
स्मरण केवल मरण क्या संकल्प तेरे बोलते हैं ?
भेंट में तू आज अपनी शक्तियों की चेतना ले !
किरण चर्चित, सुमन चित्रित, खचित स्वर्णिम बालियों से,
चिर हरित पट है मलिन शत शत चिता-धूमालियों से,
गृद्ध के पर छत्र छाते,
अब उलूक विरुद्ध सुनते,
अर्ध्य आज कपाल देते शून्य कोटर-प्यालियों से !
मृत्यु क्रंदन गीत गाती हिचकियों की मूर्छना ले !
भृकुटियों की कुटिल लिपि में सरल सृजन विधान भी दे,
जननी अमर दधीचियों की अब कुलिश का दान भी दे,
निशि सघन बरसात वाली,
गगन की हर सांस काली ,
शून्य धूमाकर में अब अर्चियों का प्राण भी दे !
आज रुद्राणी ! न सो निष्फल पराजय वेदना ले !
तुंग मंदिर के कलश को धो रहा 'रवि' अंशुमाली,
लीपती आँगन विभा से वह 'शरद' विधु की उजाली,
दीप लौ का लास 'बंकिम '
पूत धूम 'विवेक' अनुपम,
रज हुई निर्माल्य छू 'चैतन्य' की कम्पन निराली,
अमृत पुत्र पुकारते तेरे, अजर अराधना ले !
बोल दे यदि आज, तेरी जय प्रलय का ज्वार बोले,
डोल जा यदि आज, तो वह दंभ का संसार डोले,
उच्छ्वसित हो प्राण तेरा,
इस व्यथा को हो सवेरा,
एक इन्गति पर तिमिर का सूत्रधार रहस्य खोले !
नाप शत अन्तक सके यदि आज नूतन सर्जना ले !
भाल के इस रक्त चन्दन में ज्वलित दिनमान जागे,
मन्द्र सागर तूर्य पर तेरा अमर निर्माण जागे,
क्षितिज तम साकार टूटे,
प्रखर जीवन धार फूटे,
जाह्नवी की उर्मियाँ हो तार भैरव राग जागे !
ओ विधात्री ! जागरण के गीत की शत अर्चना ले !
ज्ञान गुरु इस देश की कविता हमारी वन्दना ले !
बंग भू शत वन्दना ले !
स्वर्ण भू शत वन्दना ले !
(बंग दर्शन से ...)
kyaa baat hai bhtrin .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी । वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की । न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाज सुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि "दीपशिखा" में वह जन- जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया । महादेवी वर्मा जी के बारे में आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता... बहुत सुन्दर आलेख
जवाब देंहटाएंअप्रतिम विद्वत्ता से भरी पोस्ट .प्रस्तुति लाज़वाब भाषा शैली अपनी सी अपनापन लिए .
जवाब देंहटाएंजैसे संगीत में लता ने स्थान प्राप्त कर लिया है, वैसे आधुनिक साहित्य में महादेवी वर्मा ने। …
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी व महादेवी जी की महान रचना से रूबरू कराने के लिए आपका आभार !
जवाब देंहटाएंअपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
सुन्दर प्रस्तुतिकरण ....महादेवी जी के बारे में बहुत कुछ जानने का अवसर मिल रहा है
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट से हमलोग भरपूर फायदा उठा रहें हैं
जवाब देंहटाएंआलेख बहुत सुन्दर.. और कविता के विषय में कहने की न तो योग्यता है न क्षमता!!
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय आलेख!
जवाब देंहटाएंइस श्रृंखला का हर पड़ाव सुंदर है!
यह श्रृंखला एक संग्रहणीय दस्तावेज़ बन रहा है। हर अंक में कुछ नई बातें, कोई अप्रिचित गीत ... हम तो खूब लाभ उठा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंNice description.
जवाब देंहटाएंAapkee post rochak tatha jaankaaree bharpoor hotee hai is me to shanka nahee...lekin aapkee bhasha behtareen hai...man ko talleen kar detee hai...jee karta hai padhtee hee chalee jaun!
जवाब देंहटाएंwah !!! gazab ka prabhutva hai aapka hindi par....
जवाब देंहटाएंBenamoon ekdum...
Mahadevi ji ke baare mein bahut kuch jaanane mila...dhanyavaad
www.poeticprakash.com
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...सारगर्भित और सूचना परक लेख हेतु
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के बारे मे जानकर और मन को भाने वाली कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसादर
महादेवी जी के बारे मैं जान कर अछा लगा .. ..बहत अच्छा आलेख .
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी की बहुत ही ओजपूर्ण रचना है ! आपका आलेख भी अत्यंत तथ्यपरक है एवं महादेवी जी के व्यक्तित्व व लेखन को सही अर्थों में प्रतिबिम्बित करता है ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी के बारे में जानकारी देता लेख ..आभार !१
जवाब देंहटाएं