प्रस्तुतकर्ता : मनोज कुमार
मार्च 1922 की बात है। बारडोली का सत्याग्रह स्थगित किया जा चुका था। गांधी जी को गिरफ़्तार करने की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन आन्दोलन रोक देने के कारण गांधी जी के प्रति जनता और राष्ट्र के नेता क्षुब्ध हैं, यह देखकर उस प्रभावशाली नेता को जेल भेजने का निश्चय सरकार ने किया।
10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया और उनपर सरकार के विरुद्ध द्वेष फैलाने का अभियोग लगाया गया। अहमदाबाद की अदालत में मुकदमा चला। गांधी जी ने अपराध स्वीकार करते हुए कहा, “इस शासन के विरुद्ध असन्तोष पैदा करना मेरा धर्म है। बुराई से असहयोग करना वैसा ही फ़र्ज़ है जैसा अच्छा से सहयोग।”
इसके पहले लोकमान्य तिलक को छह वर्ष की सज़ा दी गयी थी। उसी उदाहरण को सामने रखकर न्यायाधीशों ने गांधी जी को भी छह वर्ष की सज़ा सुनाई। अब छह साल तक बाहर रहकर बापू देश को नेतृत्व देने वाले नहीं थे। महादेवभाई रोने लगे। तात्या साहब केलकर उन्हें धीरज बंधा रहे थे। दृश्य बड़ा ही हृदय विदारक था।
उधर बंगाल के एक गांव में एक मकान में एक संतरी रो रहा था। क्यों? वह भला क्यों रो रहा था?
उस मकान में क्रांतिकारी उल्लासकर दत्त रहते थे। अभी-अभी वे जेल से छूटे थे। अपने मकान के पहरेदार को रोते देख वे उसके पास गए। उसके हाथ में एक अख़बार था। क्रांतिकारी दत्त ने उससे पूछा, “क्यों रोते हो?”
पहरेदार ने कहा, “मेरी जाति के एक आदमी को छह वर्ष की सज़ा हुई है। वह बूढ़ा है। 54-55 वर्ष की उसकी उमर है। देखो, इस अख़बार में छपा है।”
अख़बार में गांधी जी के उस ऐतिहासिक मुकदमे की तफ़सील थी। गांधी जी ने मुकदमे के दौरान अपनी जाति किसान बतायी थी और धन्धा कपड़े की बुनाई लिखाया था। वह पहरेदार मुसलमान था। वह बुनकर जाति का था। यह ख़बर पढ़कर उसकी आंखें भर आई थी।
क्रांतिकारी दत्त की समझ में सारी बातें आ गई। वह अपने संस्मरण में लिखते हैं, “हम कैसे क्रांतिकारी हैं? सच्चे क्रांतिकारी तो गांधी जी हैं। सारे राष्ट्र के साथ वे एकरूप हुए थे। मैं किसान हूं, मैं बुनकर हूं, --- यह उनका शब्द राष्ट्रभर में पहुंच गया होगा। करोड़ों लोगों को यही लगा होगा कि हममें से ही कोई जेल गया। जनता से जो एकरूप हुआ, जनता से जिसने संपर्क जोड़ा, वही विदेशियों के बन्धन से देश को मुक्त कर सकता है। उस सच्चे महान क्रांतिकारी को प्रणाम!”
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हम तो अभी तक बंटे हुए हैं ...कोई बंगाली है ..तो कोई गुजराती तो कोई मद्रासी ..बिहारी ...मलयाली , भारतीय तो कोई है ही नहीं ..
जवाब देंहटाएंबंटे तो हम अभी भी है
जवाब देंहटाएंv7: .इतने दिनों बाद........
bahut achchi prastuti.inspirational.
जवाब देंहटाएंप्रणाम!
जवाब देंहटाएंप्रसंग सच में बहुत प्रेरक है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक और अनुकरणीय ...
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिंदी में प्रकाशित पोस्टस मैं पढ़ नहीं पाता.... भाषा की समस्या है... इसे कैसे दूर किया जा सकता है... सुधिजनों से मार्गदर्शन की दरकार है....
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत सुंदर प्रेरक आलेख,...अच्छी प्रस्तुती,
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की बहुत२ शुभकामनाए.....
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