प्रस्तुतकर्ता : मनोज कुमार
खेड़ा ज़िले के किसानों ने, फसल कम हो जाने या मारे जाने के कारण गवर्नमेंट का माल कम कराने के लिए, आंदोलन आरंभ किया था। किसानों ने वहां सत्याग्रह करने का निश्चय किया। सरदार वल्लभभाई ने गांधी जी के साथ उनका नेतृत्व किया। गांधी जी के साथ राजेन्द्र प्रसाद भी खेड़ा गए थे। अप्रैल का अंतिम सप्ताह था। वहां धूप कड़ाके की थी। आश्रम से रल पर सवार होकर वे लोग कुछ दूर गए। वहां से कई गांवों में जाकर लोगों से मिले। गांधी जी उनलोगों से बातें गुजराती में ही किया करते थे। वे लोगों को बताते कि अगर माल न देने के कारण ढोर-मवेशी ज़ब्त किए जाएं तो उसको भी बरदाश्त करना चाहिए, पर माल हरगिज न देना चाहिए।
एक दिन दोपहरी की कड़ी धूप में गांधी जी के साथ राजेन्द्र प्रसाद जा रहे थे। ज़मीन रेतीली होने की वजह से बहुत तप रही थी। रजेन्द्र बाबू तो जूता पहने थे, पर गांधी जी तो उन दिनों चप्पल भी नहीं पहनते थे। बालू में पैर जलने लगे। अभी कुछ दूर जाने पर ही किसी पेड़ की छाया मिल सकती थी। इस बीच में गरम बालू के सिवा और कुछ नहीं था। राजेन्द्र बाबू को कोई विशेष तकलीफ़ नहीं थी। पर उन्होंने देखा कि बापू बहुत कष्ट पा रहे थे। राजेन्द्र बाबू के कंधे पर एक चादर थी। उन्होंने उसे बापू के पैरों के सामने डाल दिया कि उस पर थोड़ा आराम पैरों को मिल जाएगा। किंतु बापू ने उस पर पैर नहीं रखा।
बापू राजेन्द्र बाबू से बोले, “इसकी क्या ज़रूरत है? इस देश में करोड़ों आदमी इसी दोपहरी में, इससे भी अधिक गरम बालू में, बिना जूता के चलते हैं और काम करते हैं।”
राजेन्द्र बाबू लाचार होकर, चादर लेकर उनके पीछे चुपचाप चलते गए।
(स्रोत : बापू के कदमों में- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद)
सार्थक और सामयिक प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंगाधी जी के विचारों से मैं बचपन से ही प्रभावित था मेरे पिताजी गांधी जी के साथ कलकता शहर में रोड पर झाड़ू लगाए थे । जहां तक मुझे याद है ,उनका एक फोटो मेरे पिताजी के कमरे में लगा होता था एवं बाबूजी पूजा करने के पूर्व भगवान की मूर्तियों की सफाई करने के साथ-साथ प्रतिदिन गांधी जी का फोटो भी साफ किया करते थे । गांधी जी संसार के उन चंद महापुरूषों में से एक हैं जिनके विचार सदैव मानव सभ्यता के विकास में बहुमूल्य साबित होते रहे हैं । गांधी जी ने केवल सामाजिक और राजनीतिक ही नहीं बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है । आज जबकि मानवीय मूल्यों और पर्यावरण में होते ह्रास के कारण पृथ्वी और यहां उपस्थित जीवन के खुशहाल भविष्य को लेकर चिंताएं होने लगी है, ऐसे समय में उनका विचार हमें इसका समाधान खोजने में काफी हद तक कारगर सिध्द हो सकता है । जलवायु परिवर्तन एवं इससे संबंधित विभिन्न समस्याओं जैसे प्रदूषित होता पर्यावरण, जीवों व वनस्पतियों की प्रजातियों का विलुप्त होना, उपजाऊ भूमि में होती कमी, खाद्यान्न संकट, तटवर्ती क्षेत्रों का क्षरण, ऊर्जा स्रोतों का कम होना और नयी-नयी बीमारियों का फैलना आदि संकटों से धरती को बचाने के लिए गांधीजी के विचार प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं ।उस महन यगी के विचारों को हम सब तक पहुँचाने के लिए मैं आपको तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ । मैं अपने नए पोस्ट पर आपका इंतजार करूंगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकथनी करनी का भेद मिटे तो
जवाब देंहटाएंजीवन कितना सुंदर हो!
बापू तो रहते हैं दिल में
आ जांय
सबके कर्मों में
यह संसार
कितना सुंदर हो!
...प्रेरक संस्मरण।
श्री मनोज कुमार जी ,नमस्कार
जवाब देंहटाएंमेरा विचार है कि मेरे कुछ पोस्टों को "राजभाषा ब्लॉग" पर भी प्रकाशित कर देते तो जो लोग इस पोस्ट पर नियमित रूप से आते हैं ,वे भी इसे पढ़ पाते । जिस हिंदी की विकाश के लिए हम सब अपना अमूल्य समय व्यर्थ करते हैं, उसकी सार्थकता प्रासांगिक सिद्ध होती । आपके सुझाव के अनुसार जो कुछ भी मुझे पसंद आता है उसे बटोर कर प्रस्तुत कर देता हूँ। मरे अनुरोध पर विचार कीजिएगा । धन्यवाद ।
बहुत बढ़िया प्रेरक सन्देश देती कथा
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
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बापू का कथनी और करनी एक थी !
जवाब देंहटाएंबापू जो कहते थे स्वयं भी करते थे ..प्रेरक प्रसंग
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक ..प्रेरक प्रसंग ...
जवाब देंहटाएंआभार
सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
http://terahsatrah.blogspot.com
यही चीज तो खींचती है गाँधी की ओर…
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी वृतांत.. !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़कर!!
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