पेज

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

पुस्तक परिचय-9 : सूफ़ीमत और सूफ़ी-काव्य

पुस्तक परिचय- 9

सूफ़ीमत और सूफ़ी-काव्य

पुराने पोस्ट के लिंक

व्योमकेश दरवेश, मित्रो मरजानी, धरती धन न अपना, सोने का पिंजर अमेरिका और मैं, अकथ कहानी प्रेम की, संसद से सड़क तक, मुक्तिबोध की कविताएं, जूठन

मनोज कुमार

IMG_1964इस सप्ताह डॉ. नरेश रचित पुस्तक ‘सूफ़ीमत और सूफ़ी-काव्य’ पढ़ा, तो सोचा इसी से आपका परिचय कराया जाए। कवि-कथाकार-आलोचक डॉ. नरेश लम्बे समय तक पंजाब विश्वविद्यालय में आधुनिक साहित्य के आचार्य रहे हैं। आलोचना तथा रचनात्मक साहित्य की अनेक पुस्तकों की रचना के साथ-साथ उन्होंने हिन्दी-कविता की कई विस्मृत-विलुप्त पाण्डुलिपियां खोजकर उनको सम्पादित एवं प्रकाशित किया है।

सूफ़ीमत और सूफ़ी कविता पर डॉ. नरेश की अद्भुत पकड़ है। हालाकि वे सूफ़ीमत को एक मत न मानकर, साधक का अपने ब्रह्म के साथ नितांत वैयक्तिक प्रेम-सम्बन्ध मानते हैं। लेकिन उन्होंने जिस प्रकार से सूफ़ी-साधना को व्याख्यायित किया है, वह उनकी पैनी दृष्टि, गहरी पैठ और सुदीर्घ चिन्तन-मनन का प्रतिफल है।

IMG_1966डॉ. नरेश की इस पुस्तक में स्पष्टतः दो भाग हैं। पहले भाग में लेखक ने सूफ़ीमत के उद्भव और विकास, सूफ़ियों के प्रमुख सम्प्रदाय, उनकी साधना पद्धति पर विस्तार से चर्चा की है। दूसरे भाग में उन्होंने हिन्दी सूफ़ी काव्य की विवेचना की है। सूफ़ीमत के अध्ययन में, विशेष रूप से पाश्चात्य विद्वानों ने, प्रारंभिक सूफ़ियों की विचारधारा के निर्माण में भारतीय दर्शन और चिंतनधारा की सर्वथा उपेक्षा की है। डॉ. नरेश ने सम्भवतः पहली बार सूफ़ीमत के विश्व इतिहास को रेखांकित कर इसके विकास में भारतीय अध्यात्मवाद के योगदान को आधिकारिक ढंग से प्रस्तुत किया है।

धार्मिक सहिष्णुता और उदारता आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता रही है। सूफ़ी साधकों का मूल लक्ष्य प्रेम है। मानव-जीवन की आत्मा मूलतः प्रेम है। इसके बिना जीवन नीरस और आनन्द रहित है। ईश्वर के प्रति पाया जाने वाला प्रेम ही सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ और पवित्रतम होता है। प्रेम का अधिकारी केवल ईश्वर है, शेष जितने भी प्रेम इस जगत में हैं, वे सब उसके अधीन होने चाहिए। सूफ़ी इसी प्रेम के कायल हैं।

सूफ़ीमत की संपूर्ण साधना प्रेमाश्रित रही है। सूफ़ियों के लिए प्रेम का लक्ष्य ईश-सान्निध्य प्राप्ति है। इसी के लिए वह साधना करता है, इसी के लिए वह दुख सहता है, पीड़ाओं को सहन करता है। इसी के लिए वह तड़पता है, परेशान रहता है। जब वह मंजिल पा लेता है, अपने को मिटा कर वह उसी का हो जाता है, जिसको उसने अपना प्रियतम बनाया था। व्यक्ति साधना की उच्चभूमि में पहुंचने पर भी इनकी दृष्टि में लोकरक्षा और लोकरंजन के प्रति गहरा सरोकार बना रहा।

सूफ़ी काव्य प्रेम-काव्य या प्रेमाख्यान के नाम से जाना जाता है। सूफ़ी काव्यधारा की मूल चेतना प्रेम रही है। सूफ़ी साधकों द्वारा रचित प्रेमाख्यानों पर भारतीय आख्यान परंपरा के साथ-साथ फ़ारसी की मसनवी शैली का भी पर्याप्त प्रभाव रहा है। फ़ारसी की मसनवी शैली के संयोग से इन प्रेमाख्यानों में अभिव्यक्त प्रेम का स्वरूप परम्परागत काव्य से भिन्न एवं विशिष्ट हो गया है।

सूफ़ी-काव्य के नाम से अलंकृत अ-सूफ़ी साहित्य को वास्तविक सूफ़ी-साहित्य से अलगाकर डॉ. नरेश ने खोजार्थियों तथा आलोचकों के लिए चिन्तन के नूतन आयाम प्रस्तुत किए हैं और झूलते हुए मापदण्डों को स्थिरता प्रदान की है। इसी आधार पर मलिक मुहम्मद जायसी कृत ‘पद्मावत’, उस्मान कृत ‘चित्रावली’, क़ासिमशाह कृत ‘हंस जवाहिर’, नूर मुहम्मद कत ‘इंद्रावती’ और ‘अनुराग-बांसुरी’, ख़्वाजा अहमद कृत ‘नूरजहां’ आदि की विस्तृत चर्चा कर उसके अध्यात्म पक्ष की विवेचना द्वारा उन्होंने उनके सूफ़ी काव्य होने की पुष्टि की है। वहीं दूसरी तरफ़ उन्होंने ‘चन्दायन’, ‘मृगावती’ ‘मधुमालती’ आदि की विवेचना कर कहा है कि इन्हें प्रेमाख्यान ही माना जाना चाहिए, सूफ़ी-काव्य नहीं।

इसमें संदेश नहीं कि सूफ़ी-साधना का मूलाधार प्रेम है। सूफ़ी-साधना में जब तक आत्मा को परमात्मा से बिछुड़ने की पीड़ा से उद्वेलन नहीं होता, तब तक उसका दिव्यता की खोज का संकल्प ही नहीं बनता। ईश-प्रेम का दीवाना होकर दीन-दुनिया से बेखबर मस्तमौला बन जाना ही सूफ़ी साधना नहीं है। केवल प्रेम के अतिरेक को व्यक्त हुआ देखकर किसी रचना को सूफ़ी-साहित्य घोषित कर देना, शायद उचित नहीं था, लेकिन प्रेमाख्यान और सूफ़ी-काव्य को पर्यायवाची मानकर ऐसा होता रहा।

सूफ़ी-साहित्य की खोज, सुरक्षा तथा प्रकाशन के कार्य को अभी तक बहुत गंभीरता के साथ नहीं लिया गया है। आवश्यकता है कि प्रादेशिक भाषाओं में रचित सूफ़ी-साहित्य में जो कुछ हिन्दी का है, उसे अलग निकालकर हिन्दी सूफ़ी-साहित्य की मुख्यधारा का मिर्माण किया जाए ताकि भारत के परंपरात्मक सहिष्णुभाव का पोषण करने वाली तथा ‘सर्वधर्म समभाव’ के आदर्श को अंगीकार कर प्राणीमात्र के आत्मिक उत्थानार्थ रची गई सूफ़ी-कविता की धरोहर को पूरी सुरक्षा प्राप्त हो और हिन्दी-साहित्य की श्रीवृद्धि हो।

पुस्‍तक का नाम सूफ़ीमत और सूफ़ी-काव्य

रचनाकार : डॉ. नरेश

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली

पहला संस्‍करण : 2007

मूल्‍य : 150 रु.

पृष्ठ : 105

10 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो बस देखकर विस्मित रह जाते हैं कि कितना पढ़ते हैं आप... और लिखते भी हैं... सुन्दर समीक्षा...

    जवाब देंहटाएं
  2. पुस्तक आप पढते हैं और फायदा बहुतों को होता है ... अच्छी जानकारी मिली ..

    जवाब देंहटाएं
  3. सूफी साहित्य पर अल्प कार्य हमारे बीच कट्टरता पसरते जाने की दास्तान है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन समालोचना रचनाकार के प्रति आदर भाव से संसिक्त जो आलोचना की पहली शर्त है .दंभ से मुक्त होकर लिखतें हैं मनोज भाई .

    जवाब देंहटाएं
  5. सूफी मतों के सुफियों ने भारत की धरती पर जन्में धर्मों से बहुत कुछ लिया है । माला जपने की क्रिया उन्होंने बौद्ध धर्म से ली है । सुफियों में शहद खाने का निषेध और अहिंसा- पालन का सिद्धांत जैन धर्म से लिया । भारतीय योगमत का भी सुफियों पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा । आसन प्राणायाम आदि के लिए सूफी, योगियों के ॠणी है । सूफी अब सईद ने योगियों से ही ध्यान धारण की बातें सीखी थी । ईश्वराशधन सुफियों का ध्येय था, प्रेम उनका मूल मंत्र था। एकेश्वरवाद में उनकी आस्था थी, उनके लिए हिंदू- मुस्लिम एक अल्लाह की ही संतान थे। उनकी भेद में जाति भेद नही था । भारतीय हिंदू में मूर्ति पूजा का प्रचार था । सूफी एवं मुसलमानों पर भी इसका प्रभाव पड़ा । वे समाधि- स्थानों की यात्रा करने लगे । इन स्थानों पर दीप चढ़ाने आदि के द्वारा उन्होंने भी पीरों की पूजा शुरु की । सुफियों ने भारतीय वातावरण के अनुकूल केवल प्रचार ही नहीं किया था, वरन सुन्दर काव्य की भी रचना की। इन काव्य रचनाओं में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रुपों में सूफी मत के सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ था । इनका उद्देश्य ईश्वरीय प्रेम के अतिरिक्त जन- समाज को प्रेम- पाश में आबद्ध करना भी था।
    सूफीमत और सूफी काव्. पर प्रस्तुत जानकारी अच्छी लगी । इस पुस्तक को पढ़ने की कोशिश करूंगा । सूचनापरक पोस्ट के लिए धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही बढिया जानकारी मिली…………आभार्।

    जवाब देंहटाएं
  7. हमें तो काफी -कुछ जानने को मिला ....आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. मनोज जी,
    किसान को अपने लहलहाते खेत और बाबा भारती को अपने घोड़े सुलतान को देखकर भी वह आनंद नहीं आता होगा, किसी माता को अपनी संतान देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद मैंने आपके चेहरे पर देखा है जब आप साहित्य अकादमी के पुस्तक विक्रय केंद्र में लगी पुस्तकों को देख रहे थे..
    सूफीमत और सूफी साहित्य या सूफी संगीत आत्मा का साहित्य और संगीत है जिसे सुनते हुए इंसान एक दूसरी दुनिया में पहुँच जाता है!! बहुत ही सुन्दर प्रतिक्रया और पुस्तक परिचय!!! आभार!

    जवाब देंहटाएं
  9. किताबों का क्रम जारी है। सूफी साहित्य को अलग करके उसे विस्तार से बताया गया किताब में। अध्ययन और शोध करने वालों को लाभ मिलेगा।

    जवाब देंहटाएं
  10. श्री मनोज कुमार जी ,नमस्कार
    मेरा विचार है कि मेरे कुछ पोस्टों को "राजभाषा ब्लॉग" पर भी प्रकाशित कर देते तो जो लोग इस पोस्ट पर नियमित रूप से आते हैं ,वे भी इसे पढ़ पाते । जिस हिंदी की विकाश के लिए हम सब अपना अमूल्य समय व्यर्थ करते हैं, उसकी सार्थकता प्रासांगिक सिद्ध होती । आपके सुझाव के अनुसार जो कुछ भी मुझे पसंद आता है उसे बटोर कर प्रस्तुत कर देता हूँ।
    मरे अनुरोध पर विचार कीजिएगा । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें