पाँच साल पहले के लिखे कुछ हाइकु यहाँ बाँट रहा हूँ। कैसा लगा बताइएगा।
तुम चाहते
प्रेमचंद बनना,
ले भूखे मर !
पीकर जाम
करे देशवासी माँ
तुझे सलाम ।
देखकर के
उनका अभिनय
है मुझे भय ।
दिन में माला
रात हाथ में भाला
ले डाका डाला ।
तुलसीदास
अदालत में जाओ
रत्ना ने कहा ।
द्वापर में था
पार्थ भ्रमित, अब
कृष्ण का भ्रम ।
आज के कृष्ण
सुदामा का महल
झोंपड़ी बना ।
कोई पांचाली
फिर रच डालेगी
महाभारत ।
विष्णु पुराण
पुरानी परंपरा
विष्णु की स्तुति ।
इंडिया कहो
तब पहचानेंगे
ये इंडियन ।
बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
तुम चाहते
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद बनना,
ले भूखे मर !
छोटे छोटे हाइकू कितनी गहरी बात कहने में सक्षम हैं...बहुत सुंदर!
उत्तम विचार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी भावपूर्ण सुंदर रचना,..
जवाब देंहटाएंभावुक कर देने वाली कविता है यह.
जवाब देंहटाएंgahen haikoo
जवाब देंहटाएंइंडिया कहो
जवाब देंहटाएंतब पहचानेंगे
ये इंडियन ।
बहुत ही सार्थक हाइकू...
एक बार दिल्ली के ह्रदय सेन्ट्रल पार्क में बैठकर घंटों हाइकू के विज्ञान पर चर्चा की थी मैंने और स्वप्निल कुमार आतिश ने.. बहुत कुछ उन्होंने सिखाने की चेष्टा की.. बहुत कम सीख पाने की ललक मैंने दिखाई.. परिणाम कुछ धुंधला सा.. भाई मनोज भारती, ने भी सिखाया था कुछ समय पूर्व और हमने पुनः चेष्टा की.. लेकिन सब समाप्त!!
जवाब देंहटाएंयहाँ प्रस्तुत हाइकू रचनाएं भाव सम्प्रेषण में सफल हैं... संरचना पर मेरी अनभिज्ञता दर्ज़ करें!!
चंदन भाई !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रतिभा से भी परिचय हुआ। रचनाओं को पढ़कर हर्षित हूं।
यह बड़ा ही अद्भुत विधा है, और इस पर एक विस्तृत आलेख करण ने “मनोज” पर लिखा था, तब इसके बारे में कुछ जाना समझा था।
एक बार फिर इन बेहतरीन हाइकु के लिए बधाई।
अत्यंत प्रभावशाली रचना! आपको बधाई!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत हैhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंhttp://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_08.html