“कविता हृदय की मुक्तावस्था है”हिंदी की चिंतन परंपरा में काव्य लक्षणभाग – 3 :: नवजागरण काल – आचार्य रामचंद्र शुक्लआचार्य रामचंद्र शुक्ल ने पुस्तक चिंतामणि में “कविता क्या है” निबंध लिखा इस निबंध को आचार्य शुक्ल जीवन भर लिखते परिस्कृत करते रहे। नवजागरण कालीन (भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग) मानसिकता का सबसे प्रबल विस्फोट इस निबंध में देखने को मिलता है। इस निबंध के माध्यम से उन्होंने कविता के संबंध में अपना मत देते हुए कहा –
आचार्य शुक्ल यह भी कहते हैं कि इस साधना को हम भावायोग कहते हैं और कर्मयोग और ज्ञानयोग का समकक्ष मानते हैं। इस परिभाषा में जो विशेष बात है वह है रसदशा। रसदशा, उनके अनुसार हृदय की मुक्त अवस्था है। मुक्त हृदय को अधिक स्पष्ट करते हुए आचार्य शुक्ल कहते हैं,
ऐसा मुक्त हृदय प्राणी जब अपने हृदय को लोक-हृदय से मिला देता है तो यह दशा ही रसदशा है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि व्यापक अर्थ में रस दशा “हृदय की मुक्तावस्था” ही है। आचार्य शुक्ल ने कविता को “शब्द-विधान” की शक्ति माना। हमने पहले पाशचात्य काव्य शास्त्र की चर्चा करते हुए (लिंक यहां है) कहा था कि “नई समीक्षा” (न्यू क्रिटिसिज्म) स्कूल के विद्वानों ने काव्य लक्षण पर निष्कर्षतः कहा कि “कविता एक शाब्दिक निर्मित है” अर्थात कविता शब्द है और अंत में भी यही बात बचती है कि कविता शब्द है। कहीं न कहीं इस उक्ति में भी भारतीय चिंतन-परंपरा की ध्वनि मौजूद है। |
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बहुत अच्छी प्रस्तुति ....कविता शब्द है ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति और सत्य वचन।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआप इसी प्रकार हमे ज्ञान वर्धक आलेखों का रस्सावदन कराते रहेगे , ये कामना है ,
जवाब देंहटाएंसादर !
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“जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्तावस्था के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है उसे कविता कहते हैं ।”
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा ……………मुक्तावस्था ही तो है कविता जहाँ रस का समावेश हो जाता है या कहिये रस ही रस तो बच जाता है जिस अवस्था मे वास्तव मे वहीं तो कविता की पूर्णता होती है………………बेशक शब्द है कविता मगर बिना रस के अपूर्ण है जब तक भावों का समावेश ना हो और वो भी रसमय होने के बाद तब तक कविता सिर्फ़ शब्द ही रहती है कविता नही बन पाती उसकी पूर्णता के लिये तो भावों का होना उतना ही जरूरी है जितना की जीवन के लिये सांसों का होना।
अगर गलत कहा हो तो माफ़ी चाहती हूँ मगर मुझे तो यही महसूस होता है …………बताइयेगा जरूर्।
@ वन्दना जी
जवाब देंहटाएंये तो विद्वानों के अलग-अलग समय में दिए गए विचार है। रसवादी भी हुए हैं, खास कर संस्कृत के आचार्य।
बहुत अच्छा संकलन और सुन्दर समायोजन. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आलेख.
जवाब देंहटाएंHindi Sahitya ke baare men padhkar mujhe achha lag raha. Likhne ke liye aapko dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंयह आचार्यवर के प्रति मेरा सम्मान है या मैं भी कहीं न कहीं ऐसे ही विचार रखती हूँ....आचार्यवर की सभी बातें मुझे सदैव ही सत्य और सिद्ध लगती हैं...
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार इस समीक्षा को पढवाने के लिए...