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बुधवार, 15 सितंबर 2010

काव्य प्रयोजन (भाग-८) कला कला के लिए

काव्य प्रयोजन (भाग-८)

कला जीवन के लिए

पिछली सात पोस्टों मे हमने (१) काव्य-सृजन का उद्देश्य, (लिंक) (२) संस्कृत के आचार्यों के विचार (लिंक), (३) पाश्‍चात्य विद्वानों के विचार (लिंक), (४) नवजागरणकाल और काव्य प्रयोजन (५) नव अभिजात्‍यवाद और काव्य प्रयोजन (लिंक) (६) स्‍वच्‍छंदतावाद और काव्‍य प्रयोजन (लिंक) और (७) कला कला के लिए की चर्चा की थी। जहां एक ओर संस्कृत के आचार्यों ने कहा था कि लोकमंगल और आनंद, ही कविता का “सकल प्रयोजन मौलिभूत” है, वहीं दूसरी ओर पाश्‍चात्य विचारकों ने लोकमंगलवादी (शिक्षा और ज्ञान) काव्यशास्त्र का समर्थन किया। नवजागरणकाल के साहित्य का प्रयोजन था मानव की संवेदनात्मक ज्ञानात्मक चेतना का विकास और परिष्कार। जबकि नव अभिजात्‍यवादियों का यह मानना था कि साहित्य प्रयोजन में आनंद और नैतिक आदर्शों की शिक्षा को महत्‍व दिया जाना चाहिए। स्वछंदतावादी मानते थे कि कविता हमें आनंद प्रदान करती है। कलावादी का मानना था कि कलात्मक सौंदर्य, स्वाभाविक या प्राकृतिक सौंदर्य से श्रेष्ठ होता है। आइए अब पाश्‍चात्य विद्वानों की चर्चा को आगे बढाएं।

कलावादियों का मानना था कि “कला कला के लिए” है। इस सिद्धांत का कुछ विद्वानों ने खंडन किया। इनका कहना था कि कलावाद कुछ नहीं बल्कि पलायनवाद है। ऐसे विचारकों का मानना था कि जिस सिद्धांत का एकमात्र प्रयोजन आनंद की सृष्टि हो वह घटिया भोगवाद का समर्थक सिद्धांत ही माना जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया कि यह तो बिल्कुल ही व्यक्तिवाद है या सौंदर्यवाद है। मार्क्सवादियों ने तो कलावाद को “विकृत रूपवाद” तक कह दिया।

अरस्तू से लेकर सर फिलिप सिडनी तक के विचारों में “कला जीवन के लिए” सिद्धान्त की झलक मिलती है। किन्तु मैथ्यू आर्नल्ड (1822-1888) का इस क्षेत्र में विशेष योगदान है। जब रोमान्टिक युग समाप्त हो रहा था उस समय मैथ्यू आर्नल्ड का उदय हुआ। इनका समय विक्टोरियन युग के समकक्ष है। इस समय एक तरफ़ डार्विन अपने सिद्धांत प्रतिपादित कर रहे थे, तो दूसरी तरफ़ मार्क्स के विचार भी लोगों के सामने आ रहे थे। इंगलैंड में बड़ी तेज़ी से औद्योगिक विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा था। इसके साथ ही विज्ञानवाद का भी तेज़ी से प्रसार हो रहा था और उसके प्रभाव से सांस्कृतिक मूल्यों में पतन साफ़ दिख रहा था।

इस पृष्ठभूमि में आर्नल्ड ने धर्म की जगह संस्कृति को प्राथमिकता दी। उनकी चिंता सही भी थी। अपनी बात स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा,

“कविता का प्रयोजन जीवन की आलोचना (criticism of life) है।”

जीवन की आलोचना को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा,

कविता में नैतिक विचारों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। ऐसी कविता जिसमें नैतिक विचारों की उपेक्षा होती है, न सिर्फ़ जीवन-द्रोही है, बल्कि समाज द्रोही भी है।

“जीवन-सौंदर्य के गहन से गहनतर सत्य या यथार्थ का साक्षात्कार ही जीवन की आलोचना है, अर्थात्‌ भीतरी-बाहरी जीवन का समग्रता में अंकन।”

मैथ्यू आर्नल्ड का कहना था कि यह अंकन “काव्य-सत्य” और “काव्य-सौंदर्य” के नियमों के अधीन होना चाहिए। “काव्य-सत्य” से आर्नल्ड का तात्पर्य ‘विषय-वस्तु की मूल्यवत्ता’ से था। वहीं “काव्य-सौंदर्य” का मतलब उनके अनुसार था ‘अभिव्यंजनागत सौंदर्य’।

मैथ्यू आर्नल्ड का कहना था कि जीवन में नैतिक विचारों का महत्व सर्वोपरि है। कविता में नैतिक विचारों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। ऐसी कविता जिसमें नैतिक विचारों की उपेक्षा होती है, न सिर्फ़ जीवन-द्रोही है, बल्कि समाज द्रोही भी है।

मैथ्यू आर्नल्ड के विचार पूरी तरह से बौद्धिकता और विवेक पर आधारित है। उस समय की ज़रूरत के अनुसार उनकी विचार-दृष्टि उपदेशक की भांति लोगों के सामने आई। वो एक समाज-सुधारक की भूमिका निभाते प्रतीत होते हैं।

हिंदी साहित्य में भी इस तरह के विचारोंवाले कवि-साहित्यकार हुए। बालकृष्ण भट्ट, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिली शरण गुप्त, आदि का साहित्य इसी दृष्टीकोण का समर्थन करता है। गुप्तजी ने कहा था,

केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए।

उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए॥

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति ..गुप्त जी की बात से सहमत

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  2. सुन्दर सारगर्भित आलेख!
    ofcouse, art definitely has a purpose that's divine in itself!!!!

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  3. बहुत खूब ! अंत में मैथिल्शरण गुप्त जी की पंक्ति काव्य का प्रयोजन पुर्णतः स्पष्ट कर देती है ! बहुत ही अच्छा आलेख !!

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  4. मैथिली शरण गुप्त जी ने तो बस दू लाइन में पूरा ब्याख्या उतार दिया है.. उनके कहने के बाद हमरा कुछो कहना धृष्टता होगा...

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  5. @-
    केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए।

    उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए॥

    बहुत सुन्दर विचार रखे आपने। पूरी तरह सहमत हूँ आपसे। कवी की पंक्तियाँ बहुत कुछ मांग रही हैं हमसे।

    इस सुन्दर पोस्ट के लिए आपका आभार।

    .

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति

    hindi-divas ki bahut bahut badhai

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  7. Saargarbhit aalekh padhwane ke liye dhanyawad.... mahatvapurn jaankari bhi prapta hui... badhai....

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  8. bilkul shi bat hai ki kvita me naitik mulyo ki upeksha nhi ki ja skti hai .mai is bat se puri trh ettefak rkhti hu .
    ye lekh hme bhut kuchh sikhata hai . dhnywaad .

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