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बुधवार, 24 नवंबर 2010

इतिहास :: "ये फसल इसलिए उगाता हूँ कि क्‍योंकि इन्‍हें खा नहीं सकता"-४

015मनोज कुमार

इतिहास :: "ये फसल इसलिए उगाता हूँ कि क्‍योंकि इन्‍हें खा नहीं सकता" –१

इतिहास :: "ये फसल इसलिए उगाता हूँ कि क्‍योंकि इन्‍हें खा नहीं सकता" –२
इतिहास :: "ये फसल इसलिए उगाता हूँ कि क्‍योंकि इन्‍हें खा नहीं सकता"-३

इस कृत्रिम व्‍यवस्‍था में जो चालाक व्‍यापारी थे या कर्ज देने वाले थे वे तो लाभ कमा ही लेते थे। क्‍योंकि बाजार में जिस भाव में बिकता था, वे चीजों को उससे कम मूल्‍य पर खरीदते थे। पर कमर तो टूटती थी असल में पैदा करने वाले की। फिर इस क्षेत्र में कोई निवेश करना चाहता नहीं था। थोड़ी बहुत जो भी निवेश होता था वह उत्‍पादकता बढ़ाने में पर्याप्‍त होता था। अक्‍सरहाँ ऐसा देखने में मिलता था कि यदि किसी कृषक ने थोड़ा बहुत धन संचय कर लिया तो वह व्‍यापारी, सूदखोरी या बड़े हद तक किसी दूसरे कृषकों के लगान पर बटाईदारी पर दे देना बेहतर समझता था बनिस्‍बत की खुद के द्वारा खेती करने को। परजीवियों की तरह अपने पूरे जोखिम को दूसरे के मत्थे मढ़ने में अपनी भलाई समझता था। वस्‍तुतः कैपिटलिस्‍ट फार्मिंग करना सबसे बड़ी मूर्खता थी उसके लिए।

कृषि का वाणिज्‍यीकरण अकसरहाँ एक वलात् प्रक्रिया हुआ करती थी। अधिकांश कृषक गरीब थे। उन्‍हें पैसों की आवश्‍यकता पड़ती थी। क्‍योंकि राजस्‍व की वसूली तो जमींदार छोड़ने से रहे। फिर लगान तो नकद ही देना होता था। लगान नकद चुकाने की व्‍यवस्‍था के कारण किसानों को अपना अनाज एवं कच्‍चा माल मंडियों में बेचना पड़ता था, जिसे कम्‍पनी के अधिकारी बिचौलियों के माध्‍यम से खरीद कर उनका निर्यात करते थे। इन दो बढ़ती हुई समस्‍याओं के बोझ के नीचे दबा कृषक समुदाय आह भी नहीं भर पाता था। मजबूर था वह कैश क्रॉप उगाने को!

एक ब्रिटिश कलक्‍टर एक बार कोयम्‍बतूर के इलाके से जा रहा था। उसने देखा कि पूरे कृषि क्षेत्र में कपास की पैदावार की बहुतायत है। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। चावल आदि की जगह ये फसल? उसने कारण जानना चाहा। तो एक कृषक सामने आया और उसने जो कहा वह कृषि के वाणिज्‍यीकरण का कटु यथार्थ था। उसने कहा,

हम कपास की खेती सिर्फ इसलिए करते हैं, क्‍योंकि इन्‍हें हम खा नहीं सकते।

इस कथन में उनकी वेदना निहित है। अपने और अपने परिवार की उदरपूर्ति कर या न कर पाए, पर कैसे लगान चुकाई जाए उसकी चिंता उसे सालती रहती थी। लगान तो कैश में ही चुकेगी। और कैश आएगा सिर्फ कैश क्रॉप की बिक्री से। अगर वह अन्‍न उगाता तो हो सकता था कि भूख से बिलबिलाते अपने परिवार एवं खुद की विवशता के आगे उन्‍हें बेचने के वजाए खा ही जाता। पर अब वे अपना पेट काट कर ऐसी फसल बो रहे थे जिससे राजस्‍व की मांग की पूर्ति तो कर सकते थे।

अतः वाणिज्यिक फसलों की तरफ़ उनका झुकाव अपनी इच्‍छा से नहीं था बल्कि राजस्‍व एवं लगान के दवाब के तहत था। ये शिफ्ट गरीबों के अनाज जवार, बाजड़ा या दाल से अलग था, कृत्रिम था, एवं विवशता से था। जहाँ एक ओर इन फसलों से व्‍यापारी वर्ग व कंपनी को लाभ हुआ, वहीं इसने किसान की गरीबी को और बढ़ाया। क्‍योंकि व्‍यापारी वर्ग खड़ी फसलों को सस्‍ते दामों पर खरीद लेते थे और किसान, अपनी तत्‍कालीन आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए, अपनी फसल मंडी में न ले जाकर कटाई के समय खेत में ही बेच देते थे। हालांकि कुछ महीनों बाद, बेचारा वही फसल अपनी बिक्री की कीमत से अधिक कीमत देकर खरीदता था। यह उसकी तबाही को बढ़ाती ही थी। अगर किसान के पास धन होता तो वे थोड़ी देर प्रतीक्षा कर सकने की स्थिति में होते जिससे उन्‍हें अपनी फसल का अधिक मूल्‍य प्राप्‍त हो सकता था। लेकिन विवशता के जाल में फँसा कृषक फसल के समय ही सौदा करने को मजबूर था और फलतः उसे अपनी उपज से बहुत कम राशि प्राप्‍त होती थी। फिर इस शोषण के चक्रव्‍यूह में फँसा कृषक साहूकारों के चंगुल में बुरी तरह से फँसा ही रहता था। क्‍योंकि इन पैदावारों के लिए अधिक लागत की जरूरत पड़ती थी, यानी अधिक अग्रिम राशि, अधिक शोषण।

एक ध्‍यान देने वाली प्रमुख बात यह है कि भारत में कृषि के व्‍यवसायीकरण की प्रक्रिया, इंगलैंड की प्रक्रिया से सर्वथा भिन्‍न थी। इंगलैंड में बाजार के मूल्‍यों की वृद्धि के साथ साथ कृषि उत्‍पादन के मूल्‍यों की भी वृद्धि होती थी। इससे किसान की समृद्धि हुई, कृषि का विकास हुआ। कृषि क्षेत्र के अतिरेक ने जहाँ एक ओर औद्योगिक क्रांति को प्रोत्‍साहित किया, वहीं नई तकनीकों एवं वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग से कृषि क्षेत्र को भी प्रोत्‍साहन मिला। परंतु ऐसी स्थिति भारत में नहीं थी। भारत में तो कृषि का व्‍यवसायीकरण सम्राज्‍यवादी आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए जबरदस्‍ती थोपा गया था। फलतः व्‍यवसायीकरण की इस प्रक्रिया ने कृषि अर्थव्‍यवस्‍था के अन्‍तरविरोधों को न सिर्फ दूर किया, बल्कि उसमें और तीव्रता ही लाई।

santhalsanthalkaiiलेकिन क्‍या कृषक वर्ग सदा चुप चाप इन शोषणों को सहन करते रहे? क्‍या वे इसे नीयति मान कर सदा चुप रहने वाले थे? ऐसी बात नहीं थी। इन दुःखों के बावजूद, यातायात में सुधार एवं एक नई अर्थव्‍यवस्‍था के विकास के कारण गांव और गांव, तथा शहर और गांव एक दूसरे के करीब आए। उनमें आपसी सहयोग की भावना का विकास हुआ। एक नई चेतना का प्रादुर्भाव हुआ। इस चेतना ने उन्‍हें शोषणकारियों के विरूद्ध अपने अधिकारों के लिए विद्रोह को उकसाया। कई इलाकों में किसानों ने, बटाइदारों ने, आर्थिक संकट बढ़ने के कारण लगान देने से इंकार कर दिया। इतिहास में कई उदाहरण हैं – बंगाल का बटाईदार विद्रोह, संथाल विद्रोह, मराठा किसानों का साहूकारों के खिलाफ बगावत, चंपारण में नील की खेतिहरों का विद्रोह, मोपला विद्रोह आदि। ये सभी विद्रोह प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्‍वतंत्रता आंदोलन को मदद पहुँचा रहे थे। ब्रिटिश शोषणकारी नीति ने किसान को भाग्यवादिता से उबार कर उनमें परिस्थितियों का सामना करने की भावना पैदा की।

कृषि के क्षेत्र में ब्रिटिशों द्वारा व्‍यवसायीकरण की जो नीति अपनाई गई थी उसके कारण जो प्रतिविकास या घातक्रिया हुई उसमें यह महत्त्‍वूपर्ण नहीं है कि कृषकों को काफी संकटों या दुःखों का सामना करना पड़ा, बल्कि ध्‍यान देने वाली बात ये है कि उन्‍हें ये दुःख असत्‍व (कुछ भी नहीं) के लिए अकारण ही झेलना पड़ा। इन वाणिज्‍यीक फसलों की पैदरावार बढ़ाने के कारण खाद्यान्‍नों में कमी आना स्‍वाभाविक था। जिससे आए दिन अकाल पड़ने लगे। इन अकालों का दंश उन्‍हें भी झेलना पड़ा। कृषि के क्षेत्र में नाम मात्र का सुधार किया गया, जो अपर्याप्‍त था। अतः जब गहरे विश्‍लेषण में हम पैठते हैं तो पाते हैं कि यह वाणिज्‍यीकरण एक कृत्रिम ही नहीं बल्कि वलात् प्रक्रिया थी जिससे कृषि में बिना किसी वास्‍तविक विकास के विभेदीकरण हुआ। अंगरेजों ने भारतीय समाज के ढाँचे को तोड़ डाला और बिना किसी पुननिर्माण के पुरानी व्‍यवस्‍था को नष्‍ट-भ्रष्‍ट कर डाला। साथ ही अपनी पश्चिमी दुनियाँ के अनुरूप भौतिकवाद की नींव रखनी चाही।

----बस----

9 टिप्‍पणियां:

  1. कृषि विशेशज्ञ होते जा रहे हैं आप और यह एक बहुमूल्य दस्तावेज़!!

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  2. आपने बड़ी गंभीरता से विश्लेषण किया है ...शुक्रिया

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  3. अंग्रेजों ने जो किया सो किया ..उसमें उनका स्वार्थ निहित था ...पर किसानों कि दशा अभी भी शोचनीय है ...अब तो भारतीय सरकार को इनके हित में कुछ करना चाहिए ...

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  4. ये लेख तो बहुत ही बढ़िया है ...लगता है. सम्बंधित लेख भी पढने पड़ेंगे.
    इस लेख के लिए आपको धन्यवाद.

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  5. aapki mehnat ko salaam karti hui bahut aabhari hun aapki is prastuti par...bahut hi maarmik aur kadvi sacchaiyon ki jaankari di.

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  6. इस आलेख शृंखला को प्ढकर आपकी इतिहास की समझ और लेखन शैली को नमन।

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