प्रदूषण की समस्या पर सरकार कितना हल्ला मचा रही है लाउडस्पीकर पर चिल्ला चिल्ला कर ध्वनि प्रदूषण बढा रही है . प्रदूषण दूर करने के लिए जनता कितनी जागरूक है कि जनसंख्या पर रोक लगाने के बजाये उपज अधिक करने के लिए भूमि प्रदूषण बढ़ाती जा रही है . गंगा सफाई अभियान में करोड़ों रुपया खर्च कर दिया सफाई करनी है जल की इसलिए सारे शहर का कचरा नदी में प्रवाहित कर दिया . यातायात के साधन आज देश में इतने उपलब्ध हैं कि यातायात करने वालों के इस ज़हरीली हवा में दम घुट गए हैं . आज चारों ओर प्रदूषण कि समस्या पर चर्चा हो रही है इस समस्या से उभरने के लिए विशेषज्ञों की गोष्ठी हो रही है पर प्रश्न है ... क्या मात्र गोष्ठियों से प्रदूषण दूर हो पाएगा या ये बस एक नारा है जिसमें आम आदमी यूँ ही मारा जायेगा | संगीता स्वरुप |
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प्रश्न गंभीर है. सबको अपनी-अपनी भूमिका तय रिना जरूरी है.
जवाब देंहटाएंप्रदूषण की समस्या पर
जवाब देंहटाएंसरकार कितना हल्ला मचा रही है
लाउडस्पीकर पर चिल्ला चिल्ला कर
ध्वनि प्रदूषण बढा रही है .
....
अभियान बचाने का है ही नहीं
बस भाषण है, शोर है !
कटाक्ष सही है.....
करारा वार करती रचना।
जवाब देंहटाएंएकदम सामयिक और सटीक मुद्दे पर रचना पोस्ट की है आपने ! प्रदूषण की समस्या वास्तव में आजकल विकराल रूप धारण करती जा रही है और इसके निदान के लिए कोई ठोस योजना या उपाय नहीं अपनाए जा रहे हैं केवल गोष्ठियां आयोजित कर जाप्ते की खानापूरी की जा रही है ! इतनी विचारोत्तेजक पोस्ट के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne!...aisa hi ho raha hai!..damdaar rachana!
जवाब देंहटाएंएक महत्वपूर्ण समस्या पर सवाल उठाती रचना ..सार्थक ,गहरा कटाक्ष.
जवाब देंहटाएंये बस एक नारा है
जवाब देंहटाएंजिसमें आम आदमी
यूँ ही मारा जायेगा |
shayad yun hi mara jayega
aapka chintan or aapka kavy
ni:shabd kar diya
vaise mai man se poori tarah sajag or pryasrat hu ..kahte hai hum sudhrenge to yug sudhrega
प्रदूषण या पर्यावरण के नष्ट करने वाले प्रदूषण मीडिया के द्वारा बड़े बड़े अक्षरों में छपने से या चिल्लाने से दूर नहीं होने वाला है. इसके लिए तो आपको भी खुद को संवारना होगा. इतने वहाँ बढ़ चुके हैं कि अब कोई भी साईकिल से नहींन बल्कि अगर १० कदम पर भी जाना होगा तो बाइक उठा कर ही जायेगे और उससे होने वाले वायु प्रदूषण से किसी को मतलब नहीं होता है. प्रदूषण ने हमारी सामान्य जीवन को नष्ट कर दिया है. आज छोटे छोटे बच्चे भी स्वस्थ नहीं रहते हैं. क्यों ? इसलिए कि वे जहाँ सांस ले रहे हैं उसमें शुद्धता बची ही नहीं है और फिर फेफड़ों में कार्बन डाई आक्साइड जमा हो रही है और उसके रहते वे स्वस्थ कैसे हो सकते हैं. इसके लिए कुछ चीजों पर ध्यान देना होगा तभी इसको बचाया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंएकदम सही कहा, संगीता दी, आपने... जीतनी ऊर्जा भाषणों पर नष्ट होती है उसका अल्पांश भी कार्य निष्पादन में लगाया होता तो समस्याएं समाप्त हो जातीं..
जवाब देंहटाएंबस नारेबाज़ी ही है। सार्थक कोई प्रयास तो दिख नहीं रहा।
जवाब देंहटाएंआपकी यह सशक्त और सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच पर सुशोभित की गई है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html
पर्यावरण प्रदूषण एक ज्वलंत समस्या है. सामयिक और सुन्दर लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंजनसंख्या पर तो कोई सोचता ही नहीं /
जवाब देंहटाएंसारे प्रदुषण की जड़ शायद यही है /
प्रदूषण की जड़ जनसंख्या नहीं है,बेहतर प्रबंधन से यह समस्या दूर हो सकती है, लेकिन करे कौन ? इसमें अकेले सरकार की नहीं , एक समाज के रूप में हम सबकी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं बहरहाल, एक गम्भीर विषय पर सार्थक रचना के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंप्रदुषण पर आपकी लिखी रचना बेहद सटीक है.. और सही में बाते सिर्फ गोष्ठियो तक रहती है... इसका हल तो यही है की आम आदमी अपने दिल से इसको समझे और तदनुरूप कार्य करे .. घर घर से शुरू हो प्रयावरण की शुद्धता के लिए सफाई.. सुन्दर रचना के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंसटीक कटाक्ष करती रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... सोचने को मजबूर करती है आपकी पोस्ट ... तरक्की के नाम पर हम क्या क्या करेंगे ...
जवाब देंहटाएं... bahut sundar .... prasanshaneey post !!!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी सचमुच प्रश्न बहुत गंभीर है - आम आदमी का मन भी बड़ा अधीर है । "खबरों की दुनियाँ"
जवाब देंहटाएंपर प्रश्न है
जवाब देंहटाएंक्या मात्र गोष्ठियों से
प्रदूषण दूर हो पाएगा
या ये बस एक नारा है
जिसमें आम आदमी
यूँ ही मारा जायेगा ।
सरकारी कार्यप्रणाली पर अच्छा प्रहार किया है आपने..
इस अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर आखि़र किससे पूछें।
...एक सार्थक कविता।