सोच , सर्फ़ के झाग की तरह कुछ देर फेनिल झागों के समान उभरी और ख़त्म हो गई दूध में उफान की तरह विचार उफनते हैं और कुछ समय बाद ठंडे हो जाते हैं उन झागों की तरह जो स्वयं नीचे बैठ गए हों । और फ़िर - वही बेरौनक सी ज़िन्दगी कैसे , कब और कहाँ शुरू हुई एहसास नही रहता कल आज और कल बीतते जाते हैं पर उनका हिसाब नही रहता इस बेहिसाबी दुनिया में तुम बीता कल ढूँढते हो पर यहाँ तो अब आज का हिसाब नही मिलता वक्त नही है अब सोचने का कल का क्या सोचें कर्म किए जाओ फ़िर - वक्त कहीं का कहीं पहुंचे. |
सचमुच बीते कल को याद करने का वक्त नहीं है अब , वक्त के साथ आगे बढ़ते जाना ही जिंदगी है . सुन्दर अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंइस बेहिसाबी दुनिया में
जवाब देंहटाएंतुम बीता कल ढूँढते हो
पर यहाँ तो अब
आज का हिसाब नही मिलता
वक्त नही है...
तभी तो ये जलजला है
और सब मिटता जा रहा है ....
बिलकुल सही बात है कल का सोचते हुये वर्तमान भी जीने से रह जाता है। अच्छी रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंअबिनव सन्देश देती हुई सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रभावशाली रचना ! आज की व्यस्ततम और तनावग्रस्त ज़िंदगी में ना तो बीते हुए कल का किसीको ख़याल है, ना आज के पल छिन का कुछ हिसाब किताब और ना ही आने वाले कल की चिंता ! सब बस दौड़े जा रहे हैं ! कहाँ, क्यों, किसलिए शायद यह भी नहीं जानते ! बस जैसे यह भी एक रवायत है ! बहुत शानदार प्रस्तुति ! मेरी बधाई एवं नव वर्ष की मंगलकामनाएं स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंबीत गया सो रीत गया।
वर्तमान भी तो अगले क्षण ही अतित बन जाता है।
भविष्य को सार्थक करने का प्रयास ही सत्य है।
सर्फ के झाग जब बनते हैं
जवाब देंहटाएंमैंल धुल जाता है
दूध में झाग जब बनते हैं
मलाई बन घी निथर आता है
आज के चिन्तन से
कल सँवर जाता है
विचार मन को सँवारते हैं
कल को बुहारते हैं
कर्म करने को पुकारते हैं।
संगीता जी, यह भी एक विचार है। जितने विचार होंगे उतना ही अधिक श्रेष्ठ जीवन होगा।
बडी गहरी रचना लिखी है और आज तो ये लगा जैसे मुझ पर ही लिखी है क्योंकि पिछले दिनो ऐसी सोच से गुज़र रही थी एक मानसिक या आन्तरिक अन्तर्द्वंद से……………बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंविम्बो के माध्यम से गंभीर बात कहती रचना अच्छी है...एक प्रव्हाव्शाली कविता के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंविम्बो के माध्यम से गंभीर बात कहती रचना अच्छी है...एक प्रव्हाव्शाली कविता के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंSangeeta ji...bahut khoob!
जवाब देंहटाएंगहरी बात!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
जय श्री कृष्ण...आपका लेखन वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं....नव वर्ष आपके व आपके परिवार जनों, शुभ चिंतकों तथा मित्रों के जीवन को प्रगति पथ पर सफलता का सौपान करायें .....मेरी कविताओ पर टिप्पणी के लिए आपका आभार ...आगे भी इसी प्रकार प्रोत्साहित करते रहिएगा ..!!
जवाब देंहटाएंपीछे मुड कर न देख प्यारे आगे चल.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
वक्त नही है
जवाब देंहटाएंअब सोचने का
कल का क्या सोचें
कर्म किए जाओ
फ़िर -
वक्त कहीं का कहीं पहुंचे.
सुन्दर अभिव्यक्ति .
संगीता दी!
जवाब देंहटाएंअच्छा संदेश देती नज़्म... हम एक बड़ी ख़ुशी के इंतज़ार में रोज़ाना की छोटी छोटी खुशियों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं... आपकी नज़्म उसी आज को जीने की प्रेरणा देती है!!
bhut sundar rachna....
जवाब देंहटाएं... shaandaar-shaandaar !!
जवाब देंहटाएंsangeeta di
जवाब देंहटाएंvaise to aapki sari prastutiyan hi hridangam karne wali haoti hain,
par jo aaj aapne likha bikul alag aur sateek.
वही बेरौनक सी ज़िन्दगी
कैसे , कब और कहाँ शुरू हुई
एहसास नही रहता
कल आज और कल
बीतते जाते हैं
पर उनका हिसाब नही रहता
इस बेहिसाबी दुनिया में
तुम बीता कल ढूँढते हो
पर यहाँ तो अब
आज का हिसाब न मिलता
nav-varshh par aapko hardik abhinandan
poonam
सुन्दर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंआप की कविता बहुत अच्छी लगी
बहुत बहुत आभार
वक्त नही है
जवाब देंहटाएंअब सोचने का
कल का क्या सोचें
कर्म किए जाओ
फ़िर -
वक्त कहीं का कहीं पहुंचे
कर्म प्रधान सुन्दर कविता
वास्तविकता के दर्शन करवाती उत्तम रचना.
जवाब देंहटाएंकल का क्या सोचें
जवाब देंहटाएंकर्म किए जाओ
फ़िर -
वक्त कहीं का कहीं पहुंचे.
aapne to geeta ka sandesh de diya. shubhkamna .
जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम जीवन का एक और सत्य
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