शमशेर बहादुर सिंह - जन्मशती के मौके पर
मनोज कुमार
13 जनवरी 1911 को मुजफ्फरनगर के एलम ग्राम में जन्मे शमशेर बहादुर सिंह की आज सौंवी वर्षगांठ है। हम उनके जन्म दिन पर उनको याद करते विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। १२ मई १९९३ को उनकी मृत्यु हुई।
कुछ प्रमुख कृतियाँ
कुछ कविताएं (1959), कुछ और कविताएं (1961), चुका भी हूँ मैं नहीं (1975), इतने पास अपने (1980), उदिता: अभिव्यक्ति का संघर्ष (1980), बात बोलेगी (1981), काल तुझसे होड़ है मेरी (1988)
1977 में "चुका भी हूँ मैं नहीं " के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के "तुलसी" पुरस्कार से सम्मानित। सन् 1987 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा "मैथिलीशरण गुप्त" पुरस्कार से सम्मानित।
शमशेर को आधुनिक दौर का सबसे जटिल कवि माना गया है। मतलब यह कि शमशेर की कविताओं को समझने में आलोचकों को मुश्किल होती रही है। इसका एक प्रमुख कारण तो यह है कि वे आलोचकों द्वारा बनाए गए सांचे में फिट नहीं बैठते। उन्हें समझने के लिए साहित्य-कला-जीवन के बारे में उनकी मान्यताओं को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है।
यह सही है कि उनकी काव्य संवेदना सरल नहीं है। उन्होंने १९४९ में अपना पहला कविता-संग्रह ‘उदिता’ तैयार कर लिया लिया था, पर अह उस साल छप नहीं सका। उन दिनों वे अत्यंत निजी-भाव की कविताएं लिख रहे थे। ‘उदिता’ में उन्होंने कहा भी है कि वे उस पाठक का ख़्याल रखकर लिखते हैं, जो उनकी हंसी-ख़ुशी और दुख-दर्द की आवाज़ सुनता और समझता है। उनकी आरंभिक कविताएं छायावादी और उत्तर-छायावादी काव्य संस्कारों से निर्मित हुई।
रह जाते हैं सिहर-सिहर
मृदु कलिका के विस्मित गात:
बहका फिरता मधुप अधीर,
तितली अस्थिर गति अवदात।
कोई अपने सुख-दुख भूल
सूने पथ पर राग-विहीन,
विस्मृति के बिखराता फूल
फिर आया है मूक-मलीन।
अपने ऊपर निराला और पंत के गहरे प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने यह कहा भी है कि हिन्दी की ओर उनका खिंचाव भी इन्हीं दोनों कवियों के कारण हुआ। अपने प्रिय कवि निराला को याद करते हुए शमशेर ने लिखा था-
भूल कर जब राह- जब-जब राह.. भटका मैं
तुम्हीं झलके हे महाकवि,
सघन तम की आंख बन मेरे लिए।
घने अंधेरे में शमशेर के लिए आंख बन निराला इसलिए झलके कि दोनों का जीवन साम्य लिये हुए था। एक जैसा आर्थिक और भावात्मक अभाव। बचपन में मां की मृत्यु, युवाकाल में पत्नी की मृत्यु, अनियमित रोजगार और अकेलापन। पत्नी की मृत्यु के बाद जीवन में गहरे हो गए अकेलेपन में हिन्दी कविता शमशेर से छूट-सी गई थी। ऐसे में बच्चन से उनकी मुलाक़ात हुई। बच्चन उनको इलाहाबाद ले आए। ‘निशानिमंत्रण’ की कविताओं ने उनपर प्रभाव डाला और उन्होंने ‘निशानिमंत्रण के कवि से’ कविता में कहा,
यह खंडहर की सांस
तुम जिसे भर रहे वंशी में -
है तंग घुटी-सी सुबह
लाल सफेद सिहाह!
मत गाओ यह गीत
मैं बिखर पड़ूंगा पागलपन में
ओ देर अजान मुसाफ़िर
यह हंसी मरुस्थल की है।
वे बहुत ही एकांत-प्रिय थे। उनका यह निजीपन उनकी कविताओं को एक अलग स्वर और स्वरूप प्रदान करता है। एकाकीपन उनके लिए उतनी ही ठोस हक़ीक़त था, जितनी उनके लिए मौत। उनके सम्पूर्ण काव्य में जिस गहन वेदना की अंतर्धारा प्रवहमान है वह उनकी वास्तविक जीवन-परिस्थितोयों से उत्पन्न हैं। अपने अकेलेपन को अपने युग के साथ जोड़कर एक बहुत ही जटिल एकाकीपन की रचना उन्होंने अपने लिए की थी। ‘आधी रात’ कविता में कहते हैं,
बहुत धीरे-धीरे
बजे हैं बा .. sरा s …
गिना है रुक रुक कर मैंने
बा र ह बा र
सुनो!
अब भी वैसे ही हवा में
बा रा बज रहे हैं …
(बादल घिरे हुए हैं दिन भर।)
एक का ए क्
श्वान भूकने लगे!
गा उठा बिरहा कोई दूsर जाता पथ
पर …
नीम के सन्नाटे में एकाएक जोड़ा
ओल्लुओं का चीख उठा
प्री ई अ, प्री ई अ, ! प्रईअ!
उन्होंने अर्थ को ज़्यादा से ज़्यादा छोड़कर कविता लिखी। इसके चलते उनकी कविताओं की दुरूहता बढती ही चली गई।
एक आदमी दो पहाड़ों को कोहनियों से ठेलता
पूरब से पच्छिम को एक कदम से नापता
बढ़ रहा है
कितनी ऊंची घासें चांद-तारों को छूने-छूने को हैं
जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है
अपनी शाम को सुबह से मिलाता हुआ
फिर क्यों
दो बादलों के तार
उसे महज उलझा रहे हैं?
अशोक वाजपेयी ने ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ की भूमिका में कहा है,
“शमशेर की कविताओं का आप किसी अन्य अभिप्राय के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। वह अपने अत्यंतिक अर्थ में परम नैतिक कविता है, प्रार्थना की तरह पवित्र …।”
वाह जी वाह!
हमको बुद्धू ही निरा समझा है!
हम समझते ही नहीं जैसे कि
आपको बीमारी है :
आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि
बढ़ते ही चले जाते हैं-
दम नहीं लेते हैं जब तक बि ल कु ल ही
गोल न हो जाएं,
बिलकुल गोल ।
वे कविओं के कवि थे। चित्रात्मकता, ऐंद्रियता, मितकथन, कविता में मौन की जगह आदि उनकी कविता की विशेषता है। वे आत्मविलोपन और आत्म-अवमूल्यन के कवि हैं। यह एक आध्यात्मिक विनय है। उन्हें सौंदर्य का कवि माना गया है। कविता लिखने के साथ वे चित्र भी बनाते थे। उनका मानना था कि कलाकार का नज़रिया सौंदर्यात्मक ही हो सकता है और कुछ नहीं, भले ही वह राजनीतिक विषय पर लिख रहा हो। कलाकार किसी जाहिरी रूप को अभिव्यक्त नहीं करता, वह उसके कलात्मक रूप को अभिव्यक्त करता है।
मोटी, धुली लॉन की दूब,
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- साफ़ मखमल की कालीन।
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ठंडी धुली सुनहरी धूप।
हलकी मीठी चा-सा दिन,
मीठी चुस्की-सी बातें,
मुलायम बाहों-सा अपनाव।
पलकों पर हौले-हौले
तुम्हारे फूल से पाँव
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- मानो भूलकर पड़तेहृदय के सपनों पर मेरे!
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अकेला हूँ आओ!
‘प्रम की भावुकता’ को उन्होंने महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। न प्रेम सीमित है, न ही उनकी भावुकता का दायरा तंग है। प्रेम की भावुकता उन्हें कमज़ोर करने की जगह इन्सानों के साथ सही रिश्ते क़ायम करने में मदद करती है।
द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मैं करता हूं प्यार
शक्ति न यौवन पर अभिमान
फिर भी मैं करता हूं प्यार
कुशल कलाविद् हूं न प्रवीण
फिर भी मैं करता हूं प्यार
केवल भावुक दीन मलीन
फिर भी मैं करता हूं प्यार ।
मैंने कितने किए उपाय
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
सब विधि था जीवन असहाय
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
सब कुछ साधा, जप, तप, मौन
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
कितना घूमा देश-विदेश
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम
तरह-तरह के बदले वेष
किन्तु न मुझ से छूटा प्रेम ।
नम्रता और दृढता, फाकामस्ती और आत्मविश्वास से बना शमशेर का कवि-व्यक्तित्व अपनी पूरी गरिमा के साथ हमारे बीच मौजूद है। जन्मशती के मौके पर उनके इन गुणों को पहचानना, याद करना, और हो सके तो अपनाना, सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
100वे जन्मदिवल पर शमशेर बहादुर सिंह को याद करना हर साहित्यकार का धर्म है!आपने इस परम्राक को बाखूबी निभाया है!
जवाब देंहटाएंमैं अपनी श्रद्धांजलि कवि शमशेर बहादुर सिंह को समर्पित करता हूँ!
शमशेर बहादुर सिंह जी हिंदी कविता के पुरोधा माने जाते हैं ..उनका व्यक्तिव और लेखन दोनों एक दुसरे से जुदा नहीं ...आपने बहुत संजीदा तरीके से प्रकाश डाला है उनके रचनात्मक वैशिष्ट्य पर ..आपकी समीक्षा उत्तम है ..शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंराष्ट्र-भाषा हिन्दी के जाने-माने दिवंगत कवियों और लेखकों की जीवन-गाथा आपके ब्लॉग के माध्यम से देश-विदेश में लोगों तक पहुँच रही है. आपका यह प्रयास स्वागत योग्य है. शमशेर जी पर आज की प्रस्तुति के लिए भी बधाई और आभार.
जवाब देंहटाएं... laajawaab ... behatreen ... prasanshaneey lekhan !!
जवाब देंहटाएंशमशेर बहादुर सिंह जी के जन्मदिवस पर एक बेहतरीन प्रस्तुति ...उनसे और उनकी कविताओं से परिचय अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक प्रस्तुति आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने...
जवाब देंहटाएंशमशेर बहादुर सिंह जी के जन्मदिवस पर एक प्रश्नास्नीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंउनके और उनकी कविताओं की जानकारी बहुत अच्छी लगी.
शमशेर बहादुर सिंह जी की जन्मशती पर सुन्दर प्रस्तुति...उनकी रचनाओं की विस्तृत जानकारी मिली...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंशमशेर बहादुर सिंह जिस कविता के लिए जाने जाते हैं... श्रध्नाजली स्वरुप !
जवाब देंहटाएंकाल, तुझसे होड़ है मेरी
काल,
तुझसे होड़ है मेरी : अपराजित तू-
तुझमें अपराजित मैं वास करूं ।
इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूं
सीधा तीर-सा, जो रुका हुआ लगता हो-
कि जैसा ध्रुव नक्षत्र भी न लगे,
एक एकनिष्ठ, स्थिर, कालोपरि
भाव, भावोपरि
सुख, आनंदोपरि
सत्य, सत्यासत्योपरि
मैं- तेरे भी, ओ' 'काल' ऊपर!
सौंदर्य यही तो है, जो तू नहीं है, ओ काल !
जो मैं हूं-
मैं कि जिसमें सब कुछ है...
क्रांतियां, कम्यून,
कम्यूनिस्ट समाज के
नाना कला विज्ञान और दर्शन के
जीवंत वैभव से समन्वित
व्यक्ति मैं ।
मैं, जो वह हरेक हूं
जो, तुझसे, ओ काल, परे है
शमशेर बहादुर सिंह जी के जन्मदिवस पर एक बेहतरीन प्रस्तुति ....आपकी समीक्षा उत्तम है ..शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंएक महान सहित्य विभूति की जन्मशती पर आपकी सार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंसमशेर बहादुर जी की जन्मशताब्दी पर उनकी जीवनी कविताओं पर सुन्दर लेख लिखा है मनोज जी ने.. आज यह लेख चर्चामंच पर शेयर कर रही हूँ..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रशंशनीय प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंहमारी श्रद्धांजलि कवि शमशेर बहादुर सिंह को समर्पित !! इस प्रस्तुति के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंउतरायण :मकर सक्रांति,लोहड़ी और पोंगल की शुभकामनायें!! धान्य समृद्धि अविरत रहे।
शमशेर बहादुर सिंह जी के जन्मदिवस के अवसर पर उनकी कविताओं से परिचय बहुत अच्छा लगा .... .. इसके लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंआपको मकर सक्रांति की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
शमशेर बहादुर सिंह के बारे में जानना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंशमशेर बहादुर सिंह के जन्म दिवस पर मेरा भी एक पोस्ट आपका इंतजार कर रहा है।शमशेर बहादुर सिंह को मेरा शत-शत नमन।
जवाब देंहटाएंशमशेर बहादुर सिंह जी के बारे में इस विस्तृत जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं