ग्रामीण भारत के प्रतिनिधि रचनाकार
अब वे दिन सपने हुए हैं कि जब सुबह पहर दिन चढे तक किनारे पर बैठ निश्चिंत भाव से घरों की औरतें मोटी मोटी दातून करती और गाँव भर की बातें करती। उनसे कभी कभी हूं-टूं होते होते गरजा गरजी, गोत्रोच्चार और फिर उघटा-पुरान होने लगता। नदी तीर की राजनीति, गाँव की राजनीति। लडकियां घर के सारे बर्तन-भांडे कपार पर लादकर लातीं और रच-रचकर माँजती। उनका तेलउंस करिखा पानी में तैरता रहता। काम से अधिक कचहरी । छन भर का काम, पहर-भर में। कैसा मयगर मंगई नदी का यह छोटा तट है, जो आता है, वो इस तट से सट जाता है।
ये लाईनें हैं श्री विवेकी राय जी के एक लेख की जो उन्होंने एक नदी मंगई के बारे में लिखी हैं।
(श्री सतीश पंचम जी के पोस्ट से साभार)
डॉ. विवेकी राय हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार हैं। वे ग्रामीण भारत के प्रतिनिधि रचनाकार हैं। श्री राय उनका जन्म 19 नवम्बर सन् 1924 को भरौली (बलिया) नामक ग्राम में हुआ है। इनकी आरमिभिक शिक्षा इनके पैतृक गाँव सोनवानी (गाजीपुर) में हुई। स्नातकोत्तर परीक्षा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन् 1970 ई. में स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कथा साहित्य और ग्राम जीवन विषय पर काशी विद्यापीठ, वाराणसी से आपको पी. एच. डी. की उपाधि मिली।
डॉ. विवेकी राय जी के अध्यापकीय जीवन की जो शुरूआत ‘सोनवानी’ के लोअर प्राइमरी स्कूल शुरू हुई वह हाई स्कूल नरहीं (बलिया), श्री सर्वोदय इण्टर कॉलेज खरडीहां (गाज़ीपुर) होते हुए स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाज़ीपुर में सन् 1988 ई. तक चली। यह अपने आप में शैक्षिक मूल्यों की प्राप्ति और प्रदेय का अनूठा उदाहरण है।
जब 7वीं कक्षा में अध्यन कर रहे थे उसी समय से डॉ.विवेकी राय जी ने लिखना शुरू किया। सन् 1945 ई. में आपकी प्रथम कहानी ‘पाकिस्तानी’ दैनिक ‘आज’ में प्रकाशित हुई। इसके बाद इनकी लेखनी हर विधा पर चलने लगी जो कभी थमनें का नाम ही नहीं ले सकी। इनका रचना कार्य कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, डायरी, समीक्षा, सम्पादन एवं पत्रकारिता आदि विविध विधाओं से जुड़ा रहा। अब तक इन सभी विधाओं से सम्बन्धित लगभग 60 कृतियाँ आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं और लगभग 10 प्रकाशनाधीन हैं।
प्रकाशित कृतियाँ निम्न हैं-
काव्य संग्रह : अर्गला,राजनीगंधा, गायत्री, दीक्षा, लौटकर देखना आदि।
कहानी संग्रह : जीवन परिधि, नई कोयल, गूंगा जहाज बेटे की बिक्री, कालातीत, चित्रकूट के घाट पर, विवेकी राय की श्रेष्ठ कहानियाँ , श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ, अतिथि, विवेकी राय की तेरह कहानियाँ आदि।
उपन्यास : बबूल,पूरुष पुराण, लोक ऋण, बनगंगी मुक्त है, श्वेत पत्र, सोनामाटी, समर शेष है, मंगल भवन, नमामि ग्रामम्, अमंगल हारी, देहरी के पार आदि।
फिर बैतलवा डाल पर, जुलूस रुका है, मन बोध मास्टर की डायरी, नया गाँवनाम, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ ,जगत तपोवन सो कियो, आम रास्ता नहीं है, जावन अज्ञात की गणित है, चली फगुनाहट, बौरे आम आदि अन्य रचनाओं का प्रणयन भी डॉ. विवेकी राय ने किया है। इसके अलावा डॉ. विवेकी राय ने 5 भोजपुरी ग्रन्थों का सम्पादन भी किया है। सर्वप्रथम इन्होंने अपना लेखन कार्य कविता से शुरू किया। इसीलिए उन्हें आज भी ‘कविजी’ उपनाम से जाना जाता है।
विवेकी राय स्वभावतः गम्भीर एवं खुश-मिज़ाज़ रचनाकार हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, सीधे, सच्चे, उदार एवं कर्मठ व्यक्ति हैं। ललाट पर एक बड़ा सा तिल, सादगी, सौमनस्य, गंगा की तरह पवित्रता, ठहाका मारकर हँसना, निर्मल आचार-विचार आपकी विशेषताएँ हैं। सदा खादी के घवल वस्त्रों में दिखने वाले, अतिथियों का ठठाकर आतिथ्य सत्कार करने वाले साहित्य सृजन हेतु नवयुवकों को प्रेरित करने वाले आप भारतीय संस्कृति की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं।
डॉ. विवेकी राय का जीवन सादगी पूर्ण है। गम्भीरता उनका आभूषण है। दूसरों के प्रति अपार स्नेह एवं सम्मान का भाव सदा वे रखते हैं। सबसे खुलकर गम्भीर विषय की निष्पत्ति एवं चर्चा करना उनका स्वभाव है। अपने इन्हीं गुणों के कारण पहुतों के लिए वे परम पूज्य एवं आदरणीय बने हुए हैं। कुल मिलाकर वे संत प्रकृति के सज्जन हैं। विशुद्ध भोजपुरी अंचल के महान् साहित्यकार हैं।
सत्पथ पर दृढ़ निश्चय के साथ बढ़ते रहने का सतत् प्रेरणा देने वाले डॉ. विवेकी राय मूलतः गँवई सरोकार के रचनाकार हैं। बदलते समय के साथ गाँवों में होने वाले परिवर्तनों एवं आँचलिक चेतना विवेकी राय के कथा साहित्य की एव विशेषता है। इन्होंने अपने उपन्यासों एवं कहानियों में किसानों, मज़दूरों, स्त्रियों तथा उपेक्षितों की पीड़ा को अभिव्यक्ति प्रदान की है। अपनी रचनाधार्मिता के कारण इन्हें हम प्रेमचन्द और फणीश्वर नाथ रेणु के बीच का स्थान दे सकते हैं। स्वातंत्र्योत्तर भारतीय ग्रामीण जीवन में परिलक्षित परिवर्तनों को इन्होंने अपने उपन्यासों एवं कहानियों में सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया है। इनके कथा साहित्य में गाँव की खूबियाँ एवं अन्तर्विरोध हमें स्वष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
उनकी सृजन यात्रा अर्धशती से आगे निकली है। जीवन के साकारात्मक पहलुओं की ओर, लोक मंगल की ओर इन्होंने अब तक विशेष ध्यान दिया है।
डॉ. विवेकी राय को अनेकों पुरस्कारों एवं मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी संस्थान (उ.प्र.) द्वारा ‘सोनामाटी’ उपन्यास पर दिया गया प्रेमचन्द पुरस्कार , हिन्दी संस्थान लखनऊ (उ.प्र. ) द्वारा दिया गया साहित्य भूषण पुस्स्कार, बिहार सरकार द्वारा प्रदान किया गया आचार्य शिवपूजन सहाय सम्मान; ‘आचार्य शिवपूजन सहाय’ पुरस्कार मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत्त ‘शरद चन्द जोशी ; सम्मान केन्द्रीय हिन्दी संस्थान एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में दिया गया ‘पंडित राहुल सांकृत्यायन’ सम्मान तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की ओर से प्रदत्त ‘साहित्य वाचस्पति’ उपाधि जैसे अनेकों सम्मान इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं। डॉ. विवेकी राय के उपन्यासों, कहानियों, ललित निबन्धों; उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व, उनकी सम्पूर्ण साहित्य साधना पर पंजाब वि.वि, गोरखपुर विश्वविद्यालय, रुहेल खण्ड विश्वाद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, मगध विश्वविद्यालय,दिल्ली विश्वविद्यालय, मुम्बई विश्वविद्यालय, उस्मानिया विश्वविद्यालय, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सबा मद्रास, श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, डॉ. भीमराव अमबेडकर विश्वविद्यालय, पंडित दीन दयाल विश्वविद्यालय, शिवाजी विश्वविद्यालय, माहाराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, वीर बहादुर सिंह पर्वांचल विश्वविद्यालय,बेंगलोर विश्वविद्यालय, जेयोति बाई विश्वविद्यालय, जम्मू विश्वविद्यालय, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय आदि विश्वविद्यालयों में एम, फिल,/ पी. एच. डी. के 70 शोध प्रबन्ध लिखे जा चुके हैं और कई विश्वविद्यालयों में छात्रों द्वारा इन पर शोध कार्य किया जा रहा है।
नोट : इस आलेख के लिए श्री आशीष राय ने जो योगदान दिया है, मैं उसके लिए उनका आभार प्रकट करता हूं। – मनोज कुमार
डॉ. विवेकी राय का सम्पूर्ण जीवन परिचय और उनके साहित्य के बारे में बेहद गंभीर और संग्रहणीय जानकारी देने के लिए आपका आभार ...!
जवाब देंहटाएंड़ा.विवेकी राय जी के बारे में सुना था लेकिन उनके बारे में इतनी गहन जानकारी नही थी। आज आपके द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण भारत के प्रतिनिधि रचनाकार विवेकी राय जी के बारे में उनकी साहित्यक उपलब्धियों के बारे में वृहद रूप से जानकर ऐसा लगा कि हिंदी साहित्य के व्यापक जगत में हम कितने बौने हैं। इस पोस्ट के लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।धन्यवाद सहित ।
जवाब देंहटाएंviveki ray ke vishay men achchhi jankari dene ke liye kritgya hun .
जवाब देंहटाएंडाक्टर विवेकी रॉय जी के बारे में जानकारी ही नहीं थी किन्तु आपके द्वरा हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण जानकारियां मिल रही है जारी रखे .
जवाब देंहटाएंड़ा.विवेकी राय जी की लेखन यात्रा और परिचय को विस्तार से जाना ...
जवाब देंहटाएंआभार !
डॉ विवेकी राय जी से मुलाकात होती रहती है . हिंदी के प्रति आपकी अनन्य लगन , प्रभावित करती है .
जवाब देंहटाएंडॉ. विवेकी राय का सम्पूर्ण जीवन परिचय और उनके साहित्य के बारे में साधा हुआ लेख है यह. उनके बारे में पढ़ कर अच्छा लगा...शानदार लेख पोस्ट करने के लिए आपका आभार ...!
जवाब देंहटाएंआश्चर्य है कि कई लोगों ने कहा है कि विवेकी राय को नहीं जानते....वह इस बात का द्योतक है कि आम जीवन में साहित्य कितना कम हो गया है...पहले अख़बारों के माध्यम से लोग रचनाकारों को जान लेते थे... लेकिन आज...कभी रामवृक्ष वेनीपुरी के बारे में लिखिए... शायद उन्हें भी वाज़िब्स्थान नहीं मिला है हिंदी साहित्य में....
जवाब देंहटाएंAanchalik saaahitya -kaar se ru -baa -ru karvaane ke lie manoj ji aabhaar .ab n vo daant hain na daantoon .
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंडॉ. विवेकी राय का सम्पूर्ण जीवन परिचय और उनके साहित्य के बारे में साधा हुआ लेख है यह उनके विषय में इतना कुछ जानकर बहुत अच्छा लगा...आभार
जवाब देंहटाएंMai lilu kumari rajak nehu university shillong se ....mai yeh kahankahana chahti hu ki plzz inke kathettar sahity ke bare me jo v jankari ho use yaha veje.... ..
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