दुष्यंत कुमार त्यागी - 4
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
किसी जन-आंदोलन के लिए दुष्यंत की गज़लें Anthem की तरह जानी जाती हैं!! यह उनमें से एक है!!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक .. जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंएक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों,
जवाब देंहटाएंइस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
गजल की दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने वाले दुष्यंत कुमार त्यागी के गजल किसी भी परिस्थितियों के साथ तादाम्य स्थापित करने में सफल सिद्ध होते हैं । उनके गजल हमारे मन को एक असीम आनंद की अनुभूति से आंदोलित कर जाते हैं । गजल अच्छा लगा।
धन्यवाद ।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
जवाब देंहटाएंऔर कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
bahut sunder prastuti...
abhar.
दुष्यंत जी की सशक्त रचना पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआज 23 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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कुछ हो न हो , खुला और बड़ा हृदय बहुत है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
बहुत सुन्दर...बधाई
जवाब देंहटाएंbhaut hi sarthak rachna....
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंएक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
जवाब देंहटाएंयह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
वाह दुष्यंत जी को पढना हमेशा सुखद रहा है।
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है sakaratmak soch...
जवाब देंहटाएंshukriya is chingari bhari rachna ko hame padhane k liye.
जवाब देंहटाएंसही समय पर पोस्ट की आपने प्यारी गज़़ल।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह दुष्यंत की दुष्यंतता।
जवाब देंहटाएंये आदरणिये दुष्यंत जी त्यागी वही है क्या ? जो संसद मे दक्षिण के किसी सांसद के द्वारा हिंदी का विरोध करने पर संसद की दर्शक दीर्घा से कूद गये उसे पीटने को इस घटना मे इनके हाथ की उंगलिया टूट गयी
जवाब देंहटाएंजीवन साहित्य
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