रोटी समझ चाँद को बच्चा मन ही मन ललचाए आशा भरकर वो यह देखे माँ कब रोटी लाए दशा देखकर उस बच्चे की कैसे मन मुस्काए | घर के बाहर
चलना दूभर
साँस सभी की
नीचे ऊपर काँप रहा उसका दिल थर-थर मन बेहद घबराये ऐसे आतंकी साये में कैसे मन मुस्काए |
हुआ धमाका
बम का जब - जब
बढ़ी वेदना
मन में तब - तब
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाये
इन दृश्यों को देख भला
फिर कैसे मन मुस्काए ?
संगीता स्वरुप |
जब मन स्थिर रहता है तो दुनिया की हर चीज अच्छी लगती है । आज दहशत भरी जिंदगी में जब कभी कोई व्यक्ति घर से बाहर निकलता है इसके मन में आशंका सी बनी रहती है कि घर सही सलामत आ जाए । आतंकवाद के बढते रूप को देख कर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का मन कुंठित सा हो जाना स्वभाविक है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवातावरण प्रधान मार्मिक पोस्ट .
जवाब देंहटाएंmasumiyat bhi stabdh hai...
जवाब देंहटाएंkaise man muskaaye ? sahi prashan hai aaj ke pariprekshya me .........in halaton me hansi bhi udhar ki lagti hai.......satik aur sarthak abhivyakti.
जवाब देंहटाएंऐसे दहशत भरे माहौल मे कोइ कैसे मुस्कुराए !!
जवाब देंहटाएंसच मे !
वास्तव में दहशत के इस वातावरण ने सभी के चेहरों की मुस्कान छीन ली है ! ऐसे माहौल में क्षुब्ध मन की दुश्चिंताओं को बहुत संजीदगी से आपने उकेरा है ! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआतंकवाद के बढते रूप को देख कर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का मन कुंठित सा हो जाना स्वभाविक है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसच में मुस्कान छीन गई है . उदासी ने डेरा जमा लिया .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीताजी! आज के माहौल का आपने बहुत ही सही शब्द-चित्रण किया है!...दहशद के साए में कोई कैसे मुस्कुराएँ!
जवाब देंहटाएंजिन परिस्थितियों का आपने वर्णन किया है उनके कंट्रास्ट इस प्राश्न में ही सिर्फ़ निहित नहीं हैं कि कैसे मन मुस्काए, बल्कि रोटी, चांद, बच्चा, जीवन, सांस, दिल, मन में भी है।
जवाब देंहटाएंयह कविता अपने लय से भी आकर्षित करती है।
सच ही है.माहोल दहशत का है मुस्कान कैसे आएगी.
जवाब देंहटाएंमन की गहराई तक छूती रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर कविता। आभार।
जवाब देंहटाएंdono ghatnao ka bahut vastvik chitran kiya hai. vicharneey prastuti.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता. निराशा से आशा की ओर ले जा रही है...
जवाब देंहटाएंसही कहा....
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ढंग से ज्वलंत समस्या को रेखांकित किया आपने...
आज -कल स्थिति ऐसी हो गई है की इन्सान खुलकर हँस भी नहीं पता है....
जवाब देंहटाएंaise aatanki saye me kaise mn muskaye
जवाब देंहटाएंbhut khub.
bahut khoobsurat kavita...aabhar
जवाब देंहटाएंहिंदी की जय बोल |
जवाब देंहटाएंमन की गांठे खोल ||
विश्व-हाट में शीघ्र-
बाजे बम-बम ढोल |
सरस-सरलतम-मधुरिम
जैसे चाहे तोल |
जो भी सीखे हिंदी-
घूमे वो भू-गोल |
उन्नति गर चाहे बन्दा-
ले जाये बिन मोल ||
हिंदी की जय बोल |
हिंदी की जय बोल |
बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता,
जवाब देंहटाएंरोटी समझ चाँद को बच्चा मन ही मन ललचाए
आशा भरकर वो यह देखे माँ कब रोटी लाए
दशा देखकर उस बच्चे की कैसे मन मुस्काए | ....सच जब देश का हाल ही ऐसा है इन दहश्त गारदों की वजह से तो मुस्कान कहाँ से आएगी
अति सुंदर भावमई प्रस्तुति के लिए आभार ....
har pal yahi aashanka pata nahih kaun sa pal kisaki maut kee amanat ho. ek pal bhi bharosa nahin raha. ye aam aadami hai na isa liye nahin to VIP kab isake shikar hote hain. man muskarana bhool chuka hai bas aman aur chain ke liye sashankit man se dua kiya karta hai ki dua bhari rahegi ya manavata ke dushmanon ke mansoobe aur karname.
जवाब देंहटाएंभारत तो खतरों का खिलाड़ी है। आतंक को तो हमने आत्मसात कर लिया है। प्रवास पर रहने के कारण देर से टिप्पणी दे पा रही हूँ। क्षमा करें।
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