आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की कविताएं-2
कुपथ रथ दौड़ाता जो
कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
पथ निर्देशक वह है,
लाज लजाती जिसकी कृति से
धृति उपदेश वह है।
मूर्त दंभ गढ़ने उठता है
शील विनय परिभाषा,
मृत्यु रक्तमुख से देता
जन को जीवन की आशा।
जनता धरती पर बैठी है
नभ में मंच खड़ा है,
जो जितना है दूर मही से
उतना वही बड़ा है।
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी को नमन.....
जवाब देंहटाएंआचार्य जी की गहन रचना पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना पढ़वाई आपने
जवाब देंहटाएंआचार्य जी के बारे में सुन तो रखा था पर आपके माध्यम से उन्हें पढ़ भी लिया,आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना पढ़वाई, शास्त्री जी को नमन...
जवाब देंहटाएंये सार्वकालिक बातें हैं। हर युग में प्रासंगिक रहेंगी।
जवाब देंहटाएंआचार्य जी को नमन.
जवाब देंहटाएंगुरु जी को मेरा हृदय से नमन!
जवाब देंहटाएंअद्भुत कविता यथार्थवादी कवि भोगा हुआ यथार्थ
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना है आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी को शत शत नमन
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