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मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

सांध्यतारा क्यों निहारा जायेगा

IMG_0601आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की कविताएं-5

सांध्यतारा क्यों निहारा जायेगा


सांध्यतारा क्यों  निहारा जायेगा ।
और मुझसे मन न मारा जायेगा ॥

विकल पीर निकल पड़ी उर चीर कर,
चाहती  रुकना  नहीं इस  तीर पर,
भेद,  यों,  मालूम है पर पार का
धार  से  कटता  किनारा जायेगा ।

चाँदनी छिटके,  घिरे तम-तोम या
श्वेत-श्याम वितान यह कोई नया ?
लोल  लहरों  से ठने  न बदाबदी,
पवन पर जमकर विचारा जायेगा ।

मैं न  आत्मा का हनन कर हूँ जिया
औ, न मैंने अमृत कहकर विष पिया,
प्राण-गान  अभी चढ़े  भी तो गगन
फिर गगन  भू पर  उतारा जायेगा ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. मैं न आत्मा का हनन कर हूँ जिया
    औ, न मैंने अमृत कहकर विष पिया,

    क्या कहने !

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  2. आहा..!
    इस प्रस्तुति के लिए कोटिशः आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. कितने आत्मविश्वास का परिचायक और आत्माभिमान का प्रतिनिधित्व करता है अंतिम छंद.. बिलकुल शास्त्री जी के जीवन जैसा!! प्रेरक!!

    जवाब देंहटाएं
  4. खूबसूरत प्रस्तुति ||
    बहुत बहुत बधाई ||

    terahsatrah.blogspot.com

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  5. कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति है. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. आभार इस प्रस्तुति के लिए ...!!

    जवाब देंहटाएं

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