हरिवंशराय बच्चन
8. तुम तूफ़ान समझ पाओगे
तुम तूफ़ान समझ पाओगे?
गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
लेकर चलता करता ‘हरहर --- इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफ़ान समझ पाओगे?
गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफ़ान समझ पाओगे?
तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएं,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएं,
जाता है अज्ञात दिशा को! हटो विहंगम, उड़ जाओगे!
तुम तूफ़ान समझ पाओगे?
गहन विचार देती रचना ...
जवाब देंहटाएंआभार इसे पढवाने के लिए ...
गहन रचना पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबच्चन जी की एक दार्शनिक भावों से पूर्ण रचना!!
जवाब देंहटाएंतूफ़ान के अंतर्मन में झाँकती और एक नये दृष्टिकोण से उसे व्याख्यायित करती अनमोल रचना ! आभार इसे हम तक पहुंचाने के लिये !
जवाब देंहटाएंबेहद गहन रचना पढवाने के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंHarek rachana chuninda hai!
हटाएंएक गहन,सुन्दर रचना पढवाने का आभार.
जवाब देंहटाएंगहन,और खूबसूरत रचना यहाँ पढ़वाने के लिए आपका आभार समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंतुम तूफ़ान समझ पाओगे?
जवाब देंहटाएंसिमसिम की तरह अब खुला है भेद बिग बी की दाढ़ी का .
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
एक गहन दार्शनिक चिंतन से उपजी काव्य-माधुरी.
जवाब देंहटाएंहरिवंश जी की रचना !!..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ,हमारे समक्ष प्रस्तुत करने के लिए
kalamdaan.blogspot.com
गहन चिंतनपूर्ण रचना पढवाने के लिये आभार..
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