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शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

"काव्‍य आत्‍मा की संकल्‍पनात्‍मक अनुभूति है”

"काव्‍य आत्‍मा की संकल्‍पनात्‍मक अनुभूति है”

हिंदी की चिंतन परंपरा में काव्‍य लक्षण

भाग 4 ::  छायावाद काल

हिंदी साहित्‍य में यह वह काल था जब निराला, प्रसाद, पंत और महादेवी सक्रिय थे। छायावादी कवियों ने काव्‍य लक्षण पर नए ढंग से विचार किया।

जिस प्रकार पाश्‍चात्‍य साहित्‍य के स्‍वच्‍छंदतावादी कवि ने काव्‍य की परिभाषा देते हुए कहा कि "कविता बलवती भावनाओं का सहज उच्‍छलन है" उसी तरह से सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" ने कहा कविता विमल हृदय का उच्‍छ्वास है –

"तुम विमल हृदय उच्‍छ्वास और मैं कान्‍तकामिनी कविता"

प्रसाद, पंत और महादेवी भी यह अवधारणा व्‍यक्‍त करते रहे कि "काव्‍य अभिव्‍यक्ति है "। जयशंकर प्रसाद छायावाद के एक प्रमुख स्‍तंभों में से एक थे। वे सामाजिक-सांस्‍कृतिक परंपरा की जड़ से जोड़कर कविता को देखते थे। उन्‍होंने “काव्‍य और कला तथा अन्‍य निबंध” में काव्‍य को आत्‍मा की "संकल्‍पनात्‍मक अनुभूति" कहा। उनका कहना था -

"काव्‍य आत्‍मा की संकल्‍पनात्‍मक अनुभूति है जिसका संबंध विश्‍लेषण, विकल्‍प या विज्ञान से नहीं है। वह एक श्रेयमयी प्रेय रचनात्‍मक ज्ञान धारा है.... आत्‍मा की मनन शक्ति की आसाधारण अवस्‍था, जो श्रेय सत्‍य को उसके मूल चारूत्‍व में सहसा ग्रहण कर लेती है, काव्‍य में संकल्‍पनात्‍मक मूल अनुभूति कही जा सकती है।”

इस परिभाषा में सौंदर्य और सत्‍य के सामंजस्‍य के लिए प्रतिभा से उपजी (प्रातिभ) अनुभूति पर विशेष बल दिया गया है। इस परिभाषा में हमें आचार्य शुक्‍ल की परिभाषा की झलक दीखती है।

आचार्य शुक्‍ल का कविता को भाव-योग कहना (यहां देखें) और प्रसाद का अनुभूति-योग मानना सहमति ही तो दर्शाता है। इन दोनों की परिभाषा में पश्चिम के स्‍वच्‍छंदतावादियों का प्रभाव कम या न के बराबर था। ये दोनों कवि अपनी काव्‍य-चिंतन भूमि पर खड़े रहकर पश्चिम के काव्‍य-चिंतन का अर्थ ग्रहण कर रहे थे।

कई बार छायावाद को स्‍वचंछंदतावाद का पर्याय मान लिया जाता है। शायद भ्रमवश। दोनों वाद अलग-अलग देशों में उपजे। इनका काल भी अलग-अलग था और ये अलग-अलग संस्‍कृति के काव्‍य-आंदोलन रहे। हां ऐसा प्रतीत होता है कि छायावाद के कवि-आलोचकों ने पश्चिम के विचारों को पढ़ा और समझा तो पर उसकी नकल नहीं की। इसे हम संयोग मान सकते हैं कि छायावादियों द्वारा कहा गया "मुक्ति की आकांक्षा " और "स्‍वानुभूति का विस्‍तार", स्‍वच्‍छंदतावादियों का भी केंद्रीय तत्‍व रहा।

हमने वर्डसवर्थ की काव्‍य परिभाषा (यहां देखें) और कॉलरिंग की परिभाषा (यहां देखे) की चर्चा करते हुए देखा था कि इसका मूल आधार "भावना", “कल्‍पना” के योग से निकला काव्‍य है।

वहीं दूसरी ओर छायावाद आत्‍माभिव्‍यक्ति का सिद्धांत प्रतिपादित करता है। इसमें वैयक्तिक अनुभूति पर अधिक बल दिया गया है। इस लिए हम कह सकते हैं कि छायावादियों की दृष्टि कवि-केंद्रित है, काव्‍य-केंद्रित नहीं।

इस मत का आगे चलकर विरोध भी हुआ, जब प्रगतिवाद और नई कविता का काल आया।

17 टिप्‍पणियां:

  1. मनोज जी आपका बहुत बहुत आभार कि आप लगातार मेरे ब्‍लाग पर आते रहते हैं। अन्‍यथा न लें एक सुझाव है। हिन्‍दी के प्रचार प्रसार के लिए आपकी मुहिम अच्‍छी है। पर अगर आप कम से कम हर हफ्ते एक नए वाक्‍य को या विचार को जो हिन्‍दी के संबंध में हो अपनी टिप्‍पणी के साथ अलग अलग ब्‍लाग पर दर्ज करें,तो बेहतर होगा।

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  2. आज पहली बार मैंने आपका कार्य समझाने का प्रयत्न किया है , आप वास्तव में हिंदी के विकास में शायद उन चंद लोगों में से एक हैं, जो ब्लाग जगत में सिर्फ इसीलिये कार्यरत हैं ! आपके कार्य के प्रति आदर सहित हार्दिक शुभकामनायें !

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  5. मगर सततः एक ही बात को लगातार लोगों के चिढने के बाद भी दुहराते रहने का स्थायी प्रभाव अधिक होता है Nice ! का उदाहरण सामने है !

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  6. कविताओं को किस किस रूप में कहा गया है ..कवियों ने इस विषय पर कब क्या क्या कहा ..इसकी जानकारी बहुत अच्छी लगी...आभार

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  7. सभी विचारों को हम तक पहुँचाने के लिये आपके शुक्रगुजार हैं……………सभी कवियों का अपना अपना मत है और शायद वक्त के साथ कविता का स्वरूप भी बदला है इसीलिये ये बदलाव भी आये हैं।

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  8. @ राजेश उत्‍साही
    आपका विचार प्रेरक है।
    इस पर निश्चय ही अमल करूंगा।

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  9. @ सतीश सक्सेना
    आपका, स्नेह, और प्रोत्साहन के लिए आभार!

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  10. आपका प्रयास प्रशंसनीय है ......शुभकामनाएँ !!

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  11. dhanyvaad sir,itani achhi prastuti
    ke liye.
    inmen se jyaadatarkaviyo ke baare me to hamne padha hai.par itni jyaada jaankaaari nahi thi,jo aapke lekh ke jariye mili.
    han! jo vichaar aapne lekh ke pahle dala hai vo sach me padh kar bahut achha laga.
    poonam

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  12. बहुत ही प्रशंसनीय प्रस्तुति .

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  13. सभी विचारों को हम तक पहुँचाने के लिये आपके शुक्रगुजार हैं…

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