शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

पुस्तक परिचय-5 : अकथ कहानी प्रेम की

 

अकथ कहानी प्रेम की :

कबीर की कविता और उनका समय

IMG_0130_thumb[1]मनोज कुमार

अकथ कहानी प्रेम कीइन दिनों एक पुस्तक पढ़ी। रचनात्मक प्रतिभा और आलोचनात्मक विवेक के धनी डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल रचित “अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय”। इस पुस्तक द्वारा डॉ. अग्रवाल संत कबीरदास के समय को, जबदी हुई मनोवृत्ति का ‘मध्य-काल’ नहीं, देशज आधुनिकता का समय बताते हुए प्रामाणिक और विचारोत्तेजक ढंग से कबीर और उनके समय, जीवन, इतिहास, किंवदंती और कविता के हर पहलू के बारे में एक नया आख्यान रचते हैं। पुस्तक में अपने से पहले की अवधारणाओं के विरुद्ध उन्होंने न सिर्फ़ तर्कपूर्ण दलीलें दी हैं, बल्कि उन्हें अस्वीकार करने का साहस भी दिखाया है।

कबीर को ‘नारी-निंदक’ कहा गया। डॉ. अग्रवाल कहते हैं प्रेम के पलों में कबीर नारी का ही रूप धारण करते हैं। अब यह तो पाठक ही सोचे और समझे कि वह सम्बन्ध नारी-निन्दा के संस्कार से बनता है, या नारी रूप धारण करती कवि-संवेदना से। लेखक कहते हैं ‘‘किताब कबीर के साथ ही नहीं, प्रेम के साथ भी मेरे संवाद की कहानी है। कहानी जो अकथ तो है ही, सतत भी है।’’ उनका मानना है, ‘‘कबीर की कविता में प्रखर सामाजिकता और नितान्त निजी प्रेमानुभूति तेल और पानी की तरह नहीं, जल और बूंद की तरह दीख पड़ती है। … कबीर की काव्य-संवेदना रामभावना, कामभावना और समाजभावना को एक साथ धारण करती है।”

यह किताब भक्ति-संवेदना के इतिहास पर पुनर्विचार की दिशा भी देती है। इसके लिए लेखक ने काव्योक्त और शास्त्रोक्त भक्ति की धाराणाओं को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। उन्होंने भक्ति की नई व्याख्या की है। उनका कहना है कि भावना के स्तर पर भक्ति भक्त और भगवान के बीच भागीदारी है। भागीदारी बराबरी के लोगों के बीच होती है। कबीर किसी नए धर्म की स्थापना का प्रयास नहीं कर रहे थे। वे तो अध्यात्म को धर्म की क़ैद से मुक्त करने का प्रयत्न कर रहे थे। धर्मेतर अध्यात्म की यह अवधारणा देशज आधुनिकता का हिस्सा ही तो थी। कबीर सामाजिक व्यवस्था, परम्परा और मान्यताओं के रूपान्तरण का प्रस्ताव करते हुए अपनी वैयक्तिक सत्ता को लगातार रेखांकित करते हैं – इसलिए वे ‘आधुनिक मनुष्य को अपने चित्त के अधिक निकट लगते हैं।’

कबीर की एक नई पहचान कराती और आधुनिक भारत की मानवतावादी परंपरा में पगी हुई इस पुस्तक में लेखक ने एक अभूतपूर्व अवधारणा प्रस्तुत किया है, वह है व्यापारियों और दस्तकारों द्वारा रचे जा रहे भक्ति-लोकवृत्त की अवधारणा। इस अवधारणा के द्वारा उन्होंने यह बताया है कि कबीर की आवाज़ को हाशिए की आवाज़ देशज आधुनिकता में रचे गये भक्ति के लोकवृत्त ने नहीं, औपनिवेशिक ज्ञानकांड ने बनाया है। देशज आधुनिकता की बात करती यह किताब यह साबित करती है कि कोई आधुनिकता परंपरा-बोध के बिना संभव नहीं होती, और हर परंपरा में अपनी आधुनिकता होती है। औपनिवेशिक आधुनिकता आने के पहले व्यापार के विस्तार के कारण नई पैदा हो रही जातियां साबित करती है कि भारतीय समाज, समाजिक वरीयता का निर्धारण वास्त्वविक, व्यावहारिक ताकत के आधार पर करता था, कोरी कर्मकांडपरक उच्चता के आधार मे नहीं। देशभाषा स्रोतों में अन्तर्निहित लोक-चेतना को गम्भीरता से लिये बिना, सारी की सारी परम्परा को साजिश मानने की बीमारी से पिंड छुड़ाए बिना भारतीय परम्परा के आत्मानुसन्धान को समझना असम्भव है।

धर्मगुरु और उपदेशक के रूप में देखे जाते रहे कबीर को डॉ. अग्रवाल ने कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया है। उनका कहना है, ‘कबीर को मूलतः कवि की तरह पढ़ा जाए।’ यह काम न तो आ. रामचन्द्र शुक्ल ने किया था और न ही आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ही। कबीर को कवि-हृदय मिला था। उनकी कविताएं उच्च कोटि की हैं। किसी भी स्तर पर उनकी साधना से कम नही हैं। लेखक का कहना है, “कविता को बतौर कविता के, संवेदनशीलता और सम्मान के साथ पढ़ा जाए। सामाजिक गतिशीलता के बारे में जानने-समझने के लिए भी कविता को पढ़ना चाहिए। पहले से तय कर लिए निष्कर्षों को सिद्ध करने भर के लिए कविता को पढ़ना व्यर्थ है।”

डॉ. अग्रवाल ने यह बताया है कि भारत में आधुनिकता अंग्रेज़ों के साथ नहीं, उनके आने के बहुत पहले आ चुकी थी। कबीर जैसे संतों की आवाज़ इसी आधुनिकता की आवाज़ थी। इस पुस्तक के द्वारा डॉ. अग्रवाल ने यह स्थापित किया है कि औपनिवेशिक आधुनिकता ने ग़ैर-यूरोपीय समाजों में ‘मध्यकालीन जड़ता को तोड़नेवाली प्रगतिशील भूमिका’ नहीं देशज आधुनिकता को अवरुद्ध करने की भूमिका निभाई है। इस अवरोध ने अब तक चला आ रहा जो सांस्कृतिक संवेदना-विच्छेद उत्पन्न किया है, उसे दूर किए बिना हम न तो अपने अतीत का प्रामाणिक आख्यान रच सकते हैं, और न भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकते हैं। वे मानते हैं भारतीय समाज पर ब्राह्मणों के निरन्तर वर्चस्व की तस्वीर वास्तविक जीवन के अध्ययन पर नहीं, निराधार फॉर्मूलों पर आधारित है।

इस पुस्तक के द्वारा हमें न सिर्फ़ कबीर और उनके समय के बारे में नए सिरे से सोचने का मौक़ा मिलता है बल्कि आज के समय की समस्याओं, विसंगतियों और बेचैनी को समझने-सोचने के लिए एक नई दिशा मिलती है। लेखक ने एक मायने में कबीर का पुनराविष्कार किया है। ज्यों-ज्यों हम किताब पढ़ते जाते हैं पहले से कबीर और उनके समय-समाज के बारे में हमारी निर्धारित सोच बदलते जाती है। हमारे सामने एक नया दृष्टिकोण होता है और हम अपने को नए प्रश्नों से जूझते पाते हैं, जूझने के लिए तैयार पाते हैं। अंत में हम अपने को खोजते पाते हैं। यह इस किताब की सबसे खास बात है। रोचक और पठनीय होना इसकी दूसरी सबसे बड़ी खासियत है, तभी तो इस किताब का पहला संस्करण मात्र सात महीने में खत्म हो गया।

इस पुस्तक में समालोचकों के लिए भी सीखने को बहुत कुछ है। एक ही किताब में डॉ. अग्रवाल ने न सिर्फ़ समकालीन सरोकारों से सामना किया है बल्कि इतने सारे गंभीर प्रश्नों और कुछ ऐसे पक्षों, जो अभी तक के आधुनिक विमर्श में पूर्णतया उपेक्षित थे, पर इतने सार्थक और संवेदनशील ढंग से विचार किया है कि मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाहूंगा कि कबीर की कविता समझने वाले पाठकों और भारतीय इतिहास के विद्यार्थियों के लिए यह एक अनिवार्य पठनीय पुस्तक है।

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पुस्तक का नाम : अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय

लेखक/संपादक : डॉ. पुरुषोत्त अग्रवाल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रा.लि., नई दिल्ली- 110002

पहला संस्करण : 2009

दूसरा संस्करण : 2010

मूल्य: 500 रु.

पृष्ठ : 456

8 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के सही संदर्भों में कबीरदास जी कहानी अकथ है एवं अकथ ही रहेगी । जीवन के अनुभव सत्य से सरोकार ऱखते हैं । अत: उनकी प्रासांगिता सदैव अक्षुण्ण रहती है । पोस्ट अच्छा लगा । धन्यवाद ।

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  2. कबीर को जानना हमेशा ही कौतूहल-भरा होता है,फिर पुरुषोत्तम अग्रवाल जी तो कबीर पर काफी शोध किये हैं. निश्चय ही उनकी पुस्तक हमें कबीर के बारे में और बताएगी !

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  3. निश्चय ही इस पुस्तक से कबीर के बारे में नयी जानकारी मिलेगी .. वैसे कबीर नारी रूप में आत्मा की बात करते हुए प्रतीत होते हैं ..

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  4. ये तो बहुत उम्दा और नयी जानकारी प्राप्त हुयी…………कबीर बहुत गहरे थे वहाँ तक पहुँचने के लिये पहले वैसा ही बनना पडता है ………आभार्।

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  5. पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक के बारे में चर्चा सुनी थी और पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा भी पढ़ी थी...लेकिन पुस्तक वास्तव में क्या कहती है,इसके बारे में आपने बहुत सुंदर ढ़ग से लिखा है। बधाई स्वीकार हो!

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