निष्कर्षकविता के नए सोपान (भाग–7) |
कविता के नए सोपान (भाग-1)कविता के नए सोपान (भाग-2) :: “कविता जटिल संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है।”कविता के नए सोपान (भाग-3) - कविता सिर्फ़ हृदय की मुक्तावस्था नहीं, बल्कि बुद्धि की मुक्तावस्था है।कविता के नए सोपान (भाग-4) आज का कवि परिवेश के साथ द्वंद्वमय स्थिति में है।कविता के नए सोपान (भाग-5) – कविता का निर्वैयक्तिकता सिद्धांतकविता के नए सोपान (भाग-6) काव्य चिंतन में नई समीक्षा |
आज की कविता का आग्रह कठिन काव्यशास्त्र के प्रति नहीं रहा है। आज की कविता की खासियत यही है कि यह अत्यंत मुखर होकर पूरे साहस से अपने पाठकों, अपने श्रोताओं के समक्ष आ रही है। अधिकांश कविता आज एक रस है, तब भी आज भी कविता के संवेदन को, संघर्ष को, विचार को हम स्पष्ट महसूस कर सकते हैं। पिछले छह भागों में प्रस्तुत विचारों पर गौर करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पुराने प्रतिमान आज उतने कारगर नहीं रहे, जितने कि पहले थे। यहां तक कि रस अब कविता के लिए आवश्यक नहीं रह गया है। हालांकि छायावाद के आलोचक डॉ नगेन्द्र ने नए काव्य चिंतन के इस दौर में भी “कविता क्या है?” शीर्षक आलेख में रस सिद्धांत को काव्य का शाश्वत प्रतिमान माना है, किन्तु अज्ञेय ने इस सिद्धांत का खंडन किया। अज्ञेय का कहना था कि रस का आधार था अद्वंद्व और चित्त की समाहिति (शांति), जबकि नई कविता का आधार है तनाव, द्वंद्व। अज्ञेय का मानना था, “जीवन.... सपनों और आकारों का एक रंगीन और विस्मय भरा पुंज है। हम चाहें तो उस रूप से ही उलझे रह सकते हैं। पर रूप का आकर्षण भी वास्तव में जीवन के प्रति हमारे आकर्षण का प्रतिबिंब है। जीवन को सीधे न देखकर हम एक काँच में से देखते हैं। जब ऐसा करते हैं तो हम उन रूपों में ही अटक जाते हैं, जिनके द्वारा जीवन अभिव्यक्ति पाता है”।(अत्मनेपद) इस प्रकार यह तो स्पष्ट है कि नई कविता के संदर्भ में सिर्फ अनुभूति ही पर्याप्त नहीं है। बल्कि यह तो भ्रम पैदा करती है। छायावादी कविता की अनुभूति और नई कविता की अनुभूति में बदलाव है। आज हम निर्वैयक्तिक अनुभूति की बात करते हैं। (यहां देखें) निरंतर प्रयोग में आते रहने से शब्द में बासीपन आ जाता है। इसलिए आज कवि के सामने शब्द में नया अर्थ भरने की चुनौती है। तो नया कवि इस चुनौती को स्वीकार कर शब्दों में नए अर्थ का निरूपण करता है। हम पहले भी इस बात की चर्चा कर आए हैं कि नई कविता “अभिव्यक्ति” नहीं है, निर्मित है। (यहां देखें) अगर विजयदेव नारायण साही के शब्दों में कहें तो नई कविता तरंग के रूप को स्ट्रक्चर में बदल देती है जेसे हीरे का क्रिस्टल हो। कविता निर्मित इसलिए है कि आज हमको कलाकृति कि संरचना पर ध्यान देना पड़ता है। आज कविता को परखने का प्रमाणिक प्रतिमान काव्य भाषा है। क्योंकि काव्य-भाषा ही वह चीज है जिसमें काव्यार्थ की, नए भाव-बोध की निष्पत्ति होती है। इस सारी चर्चा के निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि जहां एक ओर आज कविता का ऊपरी कलेवर बदला है, साथ ही नए प्रतीकों या बिम्बों या शब्दावली की खोज हुई है, वहीं दूसरी ओर गहरे स्तर पर काव्यानुभूति की बनावट में ही फर्क आ गया है। इसका कारण है हमारे रागात्य संबंधें की प्रणालियाँ बदली है। इन रागात्मक प्रणालियों के बदलाव से हमारा बाह्य और आंतरिक वास्तविकता से गहरा रिश्ता निर्धारित होता है। जीवन आज जटिल हुआ है। इस काव्यानुभूति का कवि-कर्म पर गहरा असर पड़ा है। आज कविता हमें रिझाती नहीं, हमारा चैन तोड़ देती है। शब्द और अर्थ का तनाव स्पष्ट दीखता है। सृजन में नए नए अर्थ सौंदर्य की तलाश जारी है। वस्तु और रूप के बीच एक द्वंद्वात्मक रिश्ता है। |
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अच्छा लगा ज्ञान वर्धक लेख अच्छा लगा बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..पसंद आई ..बधाई.
जवाब देंहटाएं______________________
"पाखी की दुनिया' में 'मैंने भी नारियल का फल पेड़ से तोडा ...'
आज कविता हमें रिझाती नहीं, हमारा चैन तोड़ देती है। शब्द और अर्थ का तनाव स्पष्ट दीखता है। सृजन में नए नए अर्थ सौंदर्य की तलाश जारी है। वस्तु और रूप के बीच एक द्वंद्वात्मक रिश्ता है
जवाब देंहटाएंआज की कविता में यही परिलक्षित होता है ...बहुत ज्ञानवर्द्धक लेख
यह शृंखला भी काफ़ी ज्ञानवर्धक रहा!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
:: हंसना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
...बहुत बढिया जानकारी आपने दी है, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंनई कविता मनोरंजन कम करती है. चिंतन को प्रेरित अधिक करती है.. कम शब्दों में अधिक कहने दिखने के लिए नए बिम्ब गढ़े जाने लगे हैं.. साहित्य की ए़क और कक्षा में कविता को समझने का अक और अवसर मिला...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति कर रहे है आप.धन्यवाद और आभार.
जवाब देंहटाएंआपकी इन पोस्टों के माध्यम से कविता को समझने का अवसर मिला!
जवाब देंहटाएंआज कविता हमें रिझाती नहीं, हमारा चैन तोड़ देती है।
जवाब देंहटाएं- कविता भले ही न रिझाए, किन्तु अत्यधिक गूढ़ न हो .
नई कविता की समझ बढाने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंआभार।
ज्ञान वर्धक लेख!
जवाब देंहटाएंGyaanbhardhak post.
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