बुधवार, 9 मार्च 2011

तुम्हारे रंग भींज रहे

तुम्हारे रंग भींज रहे

Sn Mishraश्यामनारायण मिश्र

झरे अबीरन बादली

बरस रहे रंग मेह,

           तुम्हारे रंग भींज रहे।

भींज   रहे मन - देह

          तुम्हारे रंग भींज रहे।

 

नैनन बरसे बादली

अंतर   बरसे   मेह

अमृत बरसे बादली

मेहन   बरसे   नेह

भींज रहे घर-गेह

           तुम्हारे रंग भींज रहे।

 

अनुदिन बरसे बादली

युग-युग बरसे मेह

यौवन सींचे बादली

चेतन   सींचे   मेह

बरसे सुधा –सनेह

           तुम्हारे रंग भींज रहे।


9 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे रंग भींज रहे। रचना से होली के आने का एहसास हुया। सुन्दर गीत के लिये बधाई।

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  2. Manoj bhai,bahut sunder hori ras sey bheega geet.sunder likh rahe ho aap.hardik shubhkamnayen /aatey rahiyega mere blog par bhi kabhi kabhi jab samay mile.sasneh
    dr.bhoopendra
    rewa
    mp

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (10-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. होली में भीगने के लिए कुछ ही दिन शेष हैं

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  5. मनोज जी!
    सर्वप्रथम वागर्थ पत्रिका में आपकेऔर करण जी के द्वारा आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के साक्षात्कार के प्रकाशन की बधाई स्वीकार करें. जिस प्रकार आपने वह काम किया, वैसे ही स्व.श्यामनारायण मिश्र जी के नवगीत से हमारा परिचय करवाकर एक पुण्य कार्य किया है. इनके नवगीतों में जीवन के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं. नमन है ऐसे कवि को और आभार आपका!!

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  6. जो कुछ घट रहा है आसपास,उसे देखकर भीतर का उत्साह जाता रहा है,पर माहौल तो बना दिया है आपने।

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