डा० साहब ने मेरी एक पोस्ट पर यह टिप्पणी की थी ---संगीता जी आपने अनुनासिक और अनुस्वार के बारे में भ्रम को दूर करने का अच्छा प्रयास किया है। आप विदुषी हैं और भाषा पर अच्छी पकड़ भी रखती हैं परंतु आपके इस लेख में कुछ भ्रम हैं। यह व्याकरण का विषय है इसलिए नियमों का प्रतिपादन स्पष्ट और निर्दोष होना चाहिए। इन पर टिप्पणी लिखी जाएगी तो शायद न्याय न हो सके। यदि आप अनुमति दें तो एक लेख लिखकर मेल से भेज देता हूं आप उसे पोस्ट कर लें। थोड़ा समय लगेगा। और यह मौका मैं चूकना नहीं चाहती थी …आज मैं उनके द्वारा भेजा हुआ लेख प्रकाशित कर रही हूँ …इससे हमें हिंदी की शुद्धता के बारे में विशेष जानकारी मिलेगी और हम सभी लाभान्वित होंगे …आभार |
वर्तनी आयोग द्वारा मानकीकृत देवनागरी की नवीनतम वर्णमाला व लेखन विधि-- भाषा की मुख्य इकाई वाक्य है। वाक्य पदों से बनता है और पद प्रायः ध्वनि प्रतीकों से बनते हैं। पर भाषा में कुछ मूल ध्वनियाँ होती हैं जिनके स्वतंत्र प्रयोग द्वारा या उनके संयोजनों द्वारा पदों और फिर अंततः सार्थक पूर्ण इकाई – वाक्य की रचना की जाती है तथा वाक्य दर वाक्य आलेख की रचना की जाती है। भाषा के इन तीनों पहलुओं का ज्ञान व्याकरण कराता है। अतः व्याकरण में इन्हें क्रमशः वर्ण विचार, शब्द विचार और वाक्य विचार कहा जाता है। हम यहाँ हिंदी भाषा व्याकरण के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसकी लिपि देवनागरी है। देवनागरी मूलतः संस्कृत भाषा की लिपि है और अब इसे अनेक भाषाओं ने अपनाया है। हम इस लिपि की वर्णमाला के आधारभूत पक्ष, अर्थात्, मूल स्वर, संयुक्त स्वर, दीर्घ स्वरों, अनुस्वार, विसर्ग, स्पर्श व्यंजन, नासिक्य व्यंजन, अंतःस्थ व्यंजन और ऊष्म व्यंजनों का परिचय देंगे तथा इनके लेखन के मानक तरीकों पर चर्चा करेंगे। 1. मूल स्वर अ इ उ ऋ 2. संयुक्त स्वर अ + इ = ए अ + उ = ओ 3. दीर्घ स्वर आ ई ऐ औ 4. अनुस्वार अं 5. विसर्ग अः 6. नया जुड़ा स्वर ऑ 7. नुक़्ता उत्क्षिप्त और अरबी फ़ारसी अंग्रेज़ी मूल की ध्वनियों के लिए व्यंजन क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म 8. अंतःस्थ य र ल व 9. ऊष्म श ष स ह 10. उत्क्षिप्त ध्वनियाँ ड़ ढ़ 11. विशेष संयुक्त व्यंजन क्ष त्र ज्ञ 12. नासिक्य व्यंजन (व्यंजनों वर्गों के पंचम वर्ण) ङ ञ ण न म चूंकि हिंदी राजभाषा है और इसकी लिपि देवनागरी है तथा देश विदेश में व्यापक रूप से प्रयुक्त हो रही है इसलिए इसका मानकीकृत रूप में शिक्षण और लेखन न किया जाए तो अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 1961 में वर्तनी आयोग का गठन किया गया था यद्यपि इससे पहले देवनागरी के मानकीकरण का सझाव लेने के लिए अनेक गैर सरकारी प्रयास (काका कालेलकर समिति 1941, नागरी प्रचारिणी सभा समिति 1945, आचार्य नरेंद्र देव समिति 1947) किए गए थे। परंतु समन्वय के अभाव में एकरूपता नहीं लाई सकी थी। अतः केंद्र सरकार से तत्ववधान में यह कार्य हुआ और 1980 में अंतिम सुझाव के साथ ही देवनागरी लिपि का मानकीकृत रूप जारी किया गया और सिफ़ारिश की गई की एकरूपता के दृष्टिकोण से इनका ही अनुसरण किया जाए। उच्चारण लिखित वर्ण या प्रतीक ध्वनियों के उच्चारण को प्रतिबिंबित करते हैं। अतः इनके लेखन नियम निर्धारित किए गए हैं जिनका परिचय हम यहाँ देने जा रहे हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि उच्चारण स्वरों का ही होता है, व्यंजनों का नहीं। इसीलिए स्वर को अक्षर कहा गया है। व्यंजनों का उपयोग रूप परिवर्तन दिखाने के लिए किया जाता है जिससे विभिन्न शब्दों का निर्माण होता है। इसीलिए 'अक्षर' की परिभाषा, 'ऋग्वेद प्रातिशाख्यम्' के अनुसार इस प्रकार की गई है – सव्यंजनः (व्यंजन से युक्त) सानुस्वारः (अनुस्वार से सहित) शुद्धो (अनुस्वार रहित) वापि स्वरोçक्षरम् (स्वयं स्वर) अक्षर कहलाता है (18.32)। अनुस्वार और हिंदी भाषा में इसका महत्व तथा लेखन नियम वर्णमाला में केवल अनुस्वार और अनुनासिक का उल्लेख है। अनुस्वार स्वर है और अनुनासिक व्यंजन। अनुस्वार स्वर के उच्चारण का नासिक्यीकरण है तथा अनुनासिक पंचम वर्णों के उच्चारण में मुंह और नासिका का उपयोग दर्शाता है। संस्कृत में अंतःस्थ और ऊष्म वर्णों के साथ सर्वत्र अनुस्वार , अर्थात्, उच्चारण के स्थान के पूर्ववर्ती वर्ण के ऊपर केवल बिंदु का प्रयोग किया जाना था, जैसे, संयम, संशय, संहार, संश्लेषण, हंस, वंश। इन शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग है। चंद्रबिंदु वाले अनुस्वार का रूप पहले नहीं था क्योंकि संस्कृत में ऊष्म और अंतःस्थ वर्णों के साथ ही अनुस्वार का प्रयोग होता था। स्वर रहित नासिक्य वर्णों (स्वर रहित पंचम वर्णों के साथ) का उपयोग ही सही माना जाता था, मात्र बिंदु का नहीं। साँस, हँस, आँगन, नँद-नंदन, हैँ, मैँ इन शब्दों में नासिक्य व्यंजनों का उपयोग नहीं बल्कि व्यंजन ध्वनियों में स्वरों का नासिक्यीकरण है। शब्दों के अंत में, चाहे वे क्रिया हों या किसी शब्द का बहुवचनी रूप, उनमें नियमानुसार स्वर की ही नासिक्यीकृत उच्चारण होता है, जैसे, मैँ, हैँ, हूँ, सकूँ, गिरूँ, उठूँ आदि। एन.सी.आर.टी. की, प्रारंभिक शिक्षा की भाषा पुस्तकों में इसी प्रकार सिखाया जाता है ताकि बच्चों के मस्तिष्क में संकल्पना घर कर जाए कि स्वरों के नासिक्यीकरण तथा नासिक्य व्यंजनों के स्वर रहित प्रयोग में क्या अंतर है। बाद में चलकर ऊंची कक्षाओं की पाठ्य पुस्तकों में स्वरों के नासिक्यीकरण तथा नासिक्य व्यंजनों के स्वर रहित प्रयोग के लेखन में कोई अंतर नहीं रखा जाता है और दोनों के ही लिए अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाता है। हंस और हँस जैसे शब्दों में अंतर एवं अर्थांतर का ज्ञान संदर्भ के अनुसार होता रहता है। नासिक्य व्यंजनों के स्वर रहित प्रयोग केवल वहीं करने की सिफ़ारिश की गई है जहाँ आवश्यक हो, जैसे, कन्या, संन्यासी, सम्मत आदि। नुक़्ता का महत्व व उपयोग अंग्रेज़ों ने देवनागरी पर आरोप लगाया था कि इसमें एफ़ और ज़ेड ध्वनियों को शुद्ध रूप में व्यक्त करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। अतः देवनागरी सुधार समिति ने सुझाव दिया कि हमारे पास, उत्क्षिप्त ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए ड और ढ के नीचे बिंदु लगाने की व्यवस्था है। अतः हम इसका उपयोग करने का नियम बना सकते हैं। इस प्रकार यह निर्णय किया गया कि अंग्रेज़ी के एफ़ और ज़ेड की ध्वनि उत्पन्न करने के लिए ज तथा फ के नीचे बिंदु लगाने का नियम नियत किया जा सकता है। इस प्रकार यह व्यवस्था की गई कि अंग्रेज़ी के एफ़ और ज़ेड की ध्वनि उत्पन्न करने के लिए ज तथा फ के नीचे बिंदु लगाया जाए, अर्थात्, इन्हें फ़ और ज़ (ज़ाल, ज़े, झ़े, ज़्वाद, ज़ोय) लिखा जाए। इसी प्रकार अरबी एवं फ़ारसी के शब्दों में तालव्य-दंत्य तथा कंठ्य (हल़की) ध्वनियाँ उत्पन्न करने के लिए नुक़्ता का उपयोग किया जाए, जैसे, जहाज़, सफ़र, क़ाग़ज़, ख़ानदान आदि। सभी भारतीय भाषाओं की ध्वनियों के लिए मानक वर्धित देवनारी लिपि अतः इसी प्रकार देवनागरी को सभी भाषाओं की सभी संभावित ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए भी, जैसे, कश्मीरी, सिंधी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ विस्तारित औ समृद्ध किया गया है। ( ए बेसिक ग्रामर ऑफ़ मॉडर्न हिंदी; 1975; पृष्ठ 209-212; केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली, देखें।) इस प्रकार देवनागरी वैज्ञानिक, सरल तथा स्वयं पूर्ण लिपि बन गई है। देवनागरी के बजाय रोमन लिपि – ख़तरनाक प्रयोग आजकल कुछ लोग रोमन वर्णमाला और रोमन लिपि का उपयोग करके हिंदी में ब्लॉगिंग कर रहे हैं। यह ख़तरनाक प्रयोग है। रोमन लिपि अत्यंत दोषपूर्ण है जिसके लिए जॉर्ज बर्नार्ड शॉ जैसे विद्वान ने कहा है कि "English spelling is an international calamity." । जिन ध्वनियों का हम उपयोग कर सकते हैं उन्हें लिखने में नितांत असमर्थ है। जो लोग रोमन लिपि का इस्तेमाल करके हिंदी लिख रहे हैं या हिंदी लिखने के लिए रोमन प्रणाली का उपयोग करने की सलाह देते हैं वे जाने अनजाने हिंदी भाषा व संस्कृति का अहित कर रहे हैं। मुझे तो बड़ा आश्चर्य होता है जब हिंदी अधिकारी भी ट्रांसलिटरेशन पद्धति द्वारा हिंदी टाइप करने की सलाह देते हैं। मैं इसके सख्त ख़िलाफ़ हूं और अपने हर कार्यक्रम में हिंदी लिपि और लेखन पद्धति पर ही बल देता हूं। इस विषय पर व्यापक और गंभीरता से वैज्ञानिक चर्चा की ज़रूरत है। -- |
हिंदी लिखने के लिए रोमन प्रणाली का उपयोग करने की सलाह देते हैं वे जाने अनजाने हिंदी भाषा व संस्कृति का अहित कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है ...हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है इसे जिस तरह बोला जाता है उसी तरह लिखा जाता है और यह देवनागरी लिपि की यह विशेषता है कि इस में उच्चारित किये गए शब्दों से भाव बोध भी एक दम सरलता से होता है ..जो अन्य भाषाओँ में कम ही देखने को मिलता है ..आपका आभार
संगीता जी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद। आपने मेरे लेख को महत्व दिया। इसी प्रकार कीबोर्ड की एकरूपता और वैज्ञानिकता पर चर्चा और मनन एवं कार्य करने की ज़रूरत है। एक नया कीबोर्ड बना दिया है। इसे अपने ब्लॉग पर शीघ्र ही देने वाला हूं।
आदरणीय दलसिंगार जी यादव,
हटाएंसादर नमस्ते !
मैं एक तुच्छ सा पाठक हूँ, सम्भव है कि मेरे द्वारा आगे कही जाने वाली बात मेरे अज्ञान का प्रतीक हो।
आपके द्वारा संगीता जी को भेजे गए लेख में "नया जुड़ा स्वर ऑ" व "नुक्ता" के विषय में जानकारी दी गई है। आपकी जानकारी तथ्यों से परिपूर्ण है किन्तु कहीं आज हम यह तो सिद्ध नहीं कर रहे हैं कि, हमारी "भाषा हिन्दी" व "लिपि देवनागरी" इन सुधारों के पूर्व अवैज्ञानिक थी।
अंग्रेजी व अन्य भाषाओं के हित साधन के लिए इसप्रकार के बदलाव हमारी हजारों-करोड़ों वर्ष पूर्व से समृद्ध, वैज्ञानिक भाषा व लिपि के साथ मजाक मात्र नहीं है। यह भाषाएँ हिन्दी से ही विकसित होकर आज हिन्दी व देवनागरी को आरोपित कर रही हैं और हम उनकी सुविधा के अनुरूप सहर्ष स्वीकार कर रहे हैं।
अन्य सभी भाषा हिन्दी के समान ही आदर की पात्र हैं लेकिन उच्चारण की सुविधा के लिए हिन्दी जैसी वैज्ञानिक भाषा में बदलाव से सहमत होना वर्तमान में असहज प्रतीत हो रहा है। जबकि अन्य भाषाओं को हिन्दी से प्रेरणा लेकर बदलाव की आवश्यकता ज्यादा प्रतीत होती है।
-भारत सिंह परमार
वर्ण का आधारभूत ज्ञान बढ़ाने के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंवाह बेहद ज्ञानपरक और उपयोगी आलेख.आभार संगीता जी का और दलसिंगार जी का.
जवाब देंहटाएंएक ज्ञानवर्धक पोस्ट। काफ़ी जानकारी मिली। संगीता जी और डॉ. दलसिंगार जी का आभार जिन्होंने ‘राजभाषा हिन्दी’ के लिए यह पोस्ट दिया।
जवाब देंहटाएंवाह... ! आया था 'महादेवी जी पर आलेख' की खोज में. शीर्ष पर मिल गया यह अमूल्य नगीना. संगीताजी को कोटिशः धन्यवाद. अभिनन्दन एवं आभार डॉ. दलसिंगारजी का. महोदय, आप जैसे सुहृद विद्वानों का इस ब्लॉग से जुड़ना बहुत बड़ी सुखानुभूति है. मैं भविष्य में भी आपके महती रचनात्मक सहयोग के प्रति आशावान हूँ. बहुत अच्छा लग रहा है. सच कहूँ तो आज मुझे इस ब्लॉग की उपादेयता का भान हो रहा है. आपसब का बहुत-बहुत धन्यवाद. अब चलूँ जरा पिछला आलेख भी पढ़ लूं.
जवाब देंहटाएंसंगीता दी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी. किन्तु एक पोस्ट तो इस विषय पर भी बनती है कि जब हिन्दी में प्रादेशिक और आंग्ल भाषाओं के शब्दों का प्रयोग हो रहा है, तो देवनागरी में उनको ऐसे लिखा जाए जिससे उच्चारण की निकटता स्थापित की जा सके.
उदाहरण के लिए, दक्षिण भारतीय भाषाओं के एक अक्षर को हम देवनागरी में “ष” के नीचे बिंदी लगाकर लिखते हैं. इसका उच्चारण स्पष्ट नहीं किया गया है. द्रविड़ “मुनेत्र कषगम” में “ष” उसी द्रविड़ भाषा के अक्षर का स्थानापन्न है. अंग्रेज़ी में अर्थात रोमन लिपि में इसको zha लिखते हैं. परिणामतः अंग्रेज़ी से हिंदी लिप्यांतर करते समय लोग इसको “कज़गम” लिख जाते हैं, जो भूल है. अन्य उदाहरण है कनिमोजी! कनिमोषि!!
अब देखिए ट्रांस्लिटरेशन को. अंग्रेज़ी के दो शब्द हैं GET और GATE. इन दोनों शब्दों को देवनागरी लिपि में लिखा जाएगा “गेट”. जबकि उच्चारण के आधार पर कहा जा सकता है कि ये दोनों दो अलग शब्द हैं. दक्षिण भारतीय वर्णमाला में “ए” और “ओ” में ह्रस्वा और दीर्घ के बीच एक और स्वर है, जिसके द्वारा आप ऊपर के दोनों अंगरेजी शब्दों को देवनागरी में अलग अलग लिखा जा सकता है. मराठी में इनके लिए ए की मात्रा और अर्ध चंद्र विन्दु का प्रयोग करते हैं.
जवाब देंहटाएंवैसे ही मराठी और दक्षिण भारतीय भाषा में “ल” और “ळ” का भेद उच्चारण क आधार पर स्पष्ट होता है.
ये सब मेरी टुकड़ा टुकड़ा जानकारी है, उन भाषाओं के बारे में जिन्हें मैंने समझाने की चेष्टा बार की है. राजभाषा पर इस विषय पर एक पोस्ट का अनुरोध है मेरा.
बंधु!
जवाब देंहटाएंसचमुच आपकी टिप्पणी जायज़ और प्रेरक है। संगीती जी के माध्यम से यह कहना चाहूंगा कि यह आलेख पूर्णतः देवनागरी और हिंदी के संदर्भ में लिखा गया है। सभी भारतीय भाषाओं और वर्धित वर्ण माला के बारे में इसमें उल्लेख किया गया है। फिर भी आपने स्वयं ही सुझाया है कि इस विषय पर एक और लेख की आवश्यकता है। कंप्यूटर पर देवनागरी में अन्य भाषाओं के लेखन की समस्या टाइपिंग कीबोर्ड से जुड़ी है। कीबोर्ड और आलेख लेकर शीघ्र ही सेवा में उपस्थित होऊंगा।
धन्यवाद डॉक्टर साहब!
जवाब देंहटाएंआपके अगले आलेख के प्रतीक्षा रहेगी. और अवश्य ही वह आलेख हिन्दी और देवनागरी को विस्तार ही प्रदान करेगा!!
पुनः आभार आपका!
यह एक विचित्र बात है कि केंद्रीय हिंदी निदेशालय को व्याकरण की पुस्तक अंग्रेज़ी में प्रकाशित करनी पड़ी है!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी। मैं तो एक स्टेनोग्राफर हूँ और इसीलिये रेमिंगटन कीबोर्ड से भली भांति परिचित हूँ। यह देवनागरी लिपि के अनुरूप सबसे पुराना की बोर्ड है और मेरे विचार से सर्वोत्तम भी। पर अधिकांश ब्लॉगर रोमन प्रणाली का प्रयोग करते हैं क्योंकि वे रेमिंगटन कीबोड सीखने में वक्त जाया नहीं करना चाहते। मेरा अनुभव यह है कि यदि हम रेमिंगटन कीबोर्ड के अभ्यस्त हो जायें तो रोमन प्रणाली की तुलना में कहीं अधिक तीव्र गति से हिन्दी टाइपिंग कर सकते हैं।
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बहुत से लेख पढ़ने के लिए मिलते हैं लेकिन कोई भी एक दूसरे से मेल नही खाता सब के सब की अपनी अपनी वर्णों की संख्या है कोई भी मानक संख्या का रूप निर्धारित नही करता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सरल तरीके से स्पष्टीकरण दिया है।
जवाब देंहटाएंनमस्ते सर जी इस लेख को पढ़ने के बाद मेरा भ्रम दूर हो गया है ।
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