एक दिन
उसने मुझसे कहा कि
मुझे तुमसे
बहुत घृणा है ।
यह सुन मैं
स्तंभित रह गई
ऐसी कटु अभिव्यक्ति
हमारे बीच कब आ गई ?
मैं सोचती रही
रात औ दिन
सुबह- शाम
आठों पहर
चलता रहा
मन में मंथन
पर कोई
हल नही निकला
न तो कोई रत्न मिला
और न ही विष ।
वक्त गुज़रता रहा
अचानक यूँ ही
एक दिन
मन और मस्तिष्क के
कपाट खुल गए
और मेरे सारे प्रश्नों के
सब हल मिल गए ।
तब मैं यह जान गई कि -
जहाँ अधिक घनिष्ठता होती है
वहीँ घृणा जन्म लेती है
तब से मैं
घनिष्ठता से डरती हूँ
क्यों कि मैं कभी भी
किसी की घृणा नही सह सकती हूँ .
यही सही है सर जी, चलिए मैं भी आज से धनिष्टता से डरता हूं
जवाब देंहटाएंआह -एक नग्न सत्य !
जवाब देंहटाएंईर्ष्या या घृणा के विचार मन में प्रवेश होते ही खुशी गायब हो जाती है। प्रेम व शुभ भावनायुक्त विचारों से उदासी दूर हो जाती है। घनिष्ठता बढ़ जाती है।
जवाब देंहटाएंजब आप स्वयं से प्रेम करना सीख लेंगे तो दूसरे आपसे घृणा करना छोड़ देंगे।
सत्य है।
जवाब देंहटाएंगहन सोच से निकली सुंदर अभिव्यक्ति ...प्रेम का मार्ग दिखाती हुई ...!!
जवाब देंहटाएंघृणा से दूर ........ले जाती हुई .
कष्टकारक स्थिति ...शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंso true !...very well written Sangeeta ji .
जवाब देंहटाएंआपके गद्य-कविता में कोई न कोई विचार रहता है। मैं भी अक्सर यही कहती हूँ कि अत्यधिक घनिष्ठता से कभी दूरियां भी बढ़ने का अंदेशा रहता है। घनिष्ठता से हम एक दूसरों को अच्छी प्रकार से समझ पाते हैं और कभी मन मिलने से मित्रता घनिष्ठ हो जाती है और कभी मन नहीं मिलने से दूरियां बन जाती हैं। लेकिन आपने घृणा शब्द का प्रयोग किया है, यह मुझे उचित नहीं लगता। घृणा बहुत ही कम प्रतिशत लोगों में पायी जाती है ओर हम भी बिरले लोगों से ही घृणा करते हैं बल्कि मैं ऐसा कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कभी अपने दुश्मन से भी हम घृणा नहीं कर पाते। इसलिए यह शब्द कुछ ज्यादा ही कठोर हो गया है, ऐसा मुझे लगता है।
जवाब देंहटाएंउफ़ ..क्या कह दिया आपने...कितना बड़ा कड़वा सच.
जवाब देंहटाएंजहाँ अधिक घनिष्ठता होती है
जवाब देंहटाएंवहीँ घृणा जन्म लेती है
तब से मैं
घनिष्ठता से डरती हूँ
बिलकुल सही कहा जितने करीब आते जाओ उतनी ही दूरी बनने लगती है। अच्छी रचना। बधाई।
क्या कहूँ ………………शायद अति हर चीज़ की बुरी होती है ये कहावत इसीलिये बनी हो……………बेहद उम्दा रचना कडवी सच्चाई को व्यक्त करती हुई।
जवाब देंहटाएंघनिष्ठता मुझे भी भयभीत करती है,क्योंकि सम्बन्ध विच्छेद मैं सह नहीं पाती...
जवाब देंहटाएंसुन्दर व प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए आभार.....
अजित गुप्ता जी की बात सही लग रही है।
जवाब देंहटाएंye to bilkul mere hi man ki baat kah din.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंघृणा से डर लगता है क्योंकि ये तो किसी से की ही नहीं हैं. फिर भी अपने से घृणा करने वाले मिल ही जाते हैं.
जवाब देंहटाएंकठोर सत्य है....लेकिन संगीता जी, कभी कभी पता ही नहीं चल पाता कि हम कब घनिष्ठ हो गए...
जवाब देंहटाएंबड़े बुजुर्ग मध्यमार्ग की सलाह यों ही नहीं दे गए!
जवाब देंहटाएंसंगीता दी!
जवाब देंहटाएंबिलकुल यही अभिव्यक्ति मैंने भी अपनी एक विज्ञान कविता में प्रस्तुत की थी.. बहुत सुन्दर!!