शनिवार, 7 मई 2011

कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के जन्म दिन पर …

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बंग्ला साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर व महान विभूति विश्व-कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, एक व्यक्ति का नहीं एक युग का नाम है।

टैगोर बीसवीं शताब्दी के शुरुआती चार दशकों तक भारतीय संस्कृति के आकाश में ध्रुवतारे की तरह चमकते रहे। वे कवि भी थे, उपन्यासकार भी, चित्रकार भी थे, संगीतकार भी।

कोलकाता के जोड़ासांको के प्रिन्स द्वारकानाथ ठाकुर के तीन पुत्र थे – देवेन्द्रनाथ, गिरिन्द्रनाथ और नगेन्द्रनाथ। महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर और शारदादेवी के समृद्ध, शिक्षित और धर्म-परायण परिवार में 7 मई 1861, मंगलवार को प्रातः तीन बजे रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म हुआ। ‘मेरे बचपन के दिन’ नामक पुस्तक में उन्होंने अपने बाल्यकाल की घटनाओं का बड़ा मनोरंजक वृत्तांत लिखा है। वे अपने सात भाइयों में सबसे छोटे थे। उनकी आरंभिक शिक्षा ‘बंगाल एकेडमी’ में हुई पर वहां का वातावरण रास नहीं आने के कारण स्कूल जाने से मना कर दिया। आगे की पढ़ाई घर पर ही हुई। 13 वर्ष की अवस्था में 8 मार्च, 1874 को उनके सिर से मां का साया हट गया। अंग्रेज़ी की पढ़ाई के लिए 1878 में इंगलैंड भेजे गए। वहां से लौटे तो 9 दिसम्बर 1883 को कुमारी मृणालिनी के साथ उनका विवाह हुआ। दुर्भाग्य कि 1902 से 1907 के बीच पत्नी (नवम्बर, 1902), पुत्री (1903), पुत्र एवं पिता (1905) एक-एक कर संसार से विदा हो गए। इस विकट दुख ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी और वे पूरे संसार को ही अपना परिवार समझने लगे।

पराधीन भारत को स्वतंत्र कराने में जुट गए और गांधी जी के सत्य-अहिंसा आन्दोलन को सहयोग प्रदान किया।

साहित्य की विभिन्न विधाओं, संगीत और चित्रकला में सतत सृजनरत रहते हुए उन्होंने अंतिम सांस तक सरस्वती की साधना की और भारतवासियों के लिए ‘गुरुदेव’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

मृत्यु : 7 अगस्त 1941 को दिन के बारह बजकर सात मिनट पर वे बैकुण्ठवासी हो गए।

वे संस्कृत, बंगाली और अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं के विद्वान्‌ थे। 1876 में ‘ज्ञानाकुंर’ में इनका पहला लेख, जो भुवनमुहनी नामक एक पुस्तक की आलोचना थी, छपा। इसके बाद ‘वनफूल’ नामक एक कविता भी इसमें छपी। इसके बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1877 से ‘भारती’ में लिखना शुरु किया।

उन्होंने जनजागरण और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और शांतिनिकेतन जैसी शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की। बोलपुर से दो मील की दूरी पर महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने ‘शान्ति निकेतन आश्रम’ की स्थापना की थी। 1901 में कविगुरु ने अपने शैक्षणिक सिद्धान्तों के प्रयोग स्वरूप वहीं पर ‘शान्तिनिकेतन’ विद्यालय की स्थापना की। 22 दिसम्बर 1918 को अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय विश्वभारती की स्थापना की। इसमें पूरी दुनिया के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने और विभिन्न विषयों पर शोध करने आते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को प्रकृति-प्रेम, मानवतावाद और विश्वसमन्वय की शिक्षा प्रदान करना है।

1911 में भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मण’ लिखा और उसी साल उन्होंने ब्रह्मसमाज की पत्रिका ‘तत्वबोध प्रकाशिका’ में इसे ‘भारत विधाता’ शीर्षक से प्रकाशित किया था। इस पत्रिका का सम्पादन गुरुदेव ही करते थे।

1911में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 27 दिसंबर को इसे गाया गया।

शुरु में इस पर आरोप लगाया जाता रहा कि यह जार्ज पंचम की अभ्यर्थना में लिखा गया है। कहा तो यहां तक गया कि गीत में जार्ज पंचम को ही भारत भाग्य विधाता कहा गया है।

यह संयोग ही था कि जिस अधिवेशन में यह गाया गया उसी अधिवेशन में जार्ज पंचम का अभिनंदन करने का निर्णय लिया गया था। अभिनंदन करने का कारण था कि उन्होंने बंगभंग के फैसले को रद्द करने का ऐलान किया था।

गुरुदेव ने इन विवादों का ज़ोरदार विरोध किया और कहा कि ‘भारत भाग्य विधाता’ और ‘जय हे’ का भारत के जनगण के लिए ही व्यवहार किया गया है। यह गीत देश के जनगण के लिए समर्पित है।

गुरुदेव ने स्वयं 1905 में बंगभंग के ख़िलाफ़ कलकत्ता में निकले ऐतिहासिक जुलूस का नेतृत्व किया था। उसी दौरान उन्होंने ‘बंगलार माटि बंगलार जल’ शीर्षक गीत लिखा था।

  • प्रमुख रचनाएं :
    • कहानियां : लगभग 42 कहानियों के सृजन का इन्हें श्रेय प्राप्त है। ‘घाटेर कथा’, ‘पोस्टमास्टर’, ‘एक रात्रि’, ‘खाता’, ‘त्याग’, ‘छुट्टी’, ‘काबुलीवाला’, ‘सुभा’, ‘दुराशा’, ‘नामंज़ूर गल्प’, ‘प्रगति-संहार’ (अंतिम कहानी) आदि उनकी महत्वपूर्ण कहानियां हैं।
    • कहानी संग्रह : छोटा गल्प, कल्पचारिती, गल्पदशक, गल्पगुच्छ (5 भागों में) और गल्पसप्तक।
    • गीत-संग्रह / काव्य-संग्रह : भानुसिंह ठाकुर की पदावली (छद्मनाम भानुसिंह से 16 वर्ष की अवस्था में लिखा) , वनफूल, कविकाहिनी, रुद्रचंड, भग्नहृदय, शैशवसंगीत, `संध्या संगीत’, ‘कालमृगया’, ‘प्रभातसंगीत’, ‘छवि ओ गान (1884), ‘कड़ि ओ कोमल’ (1886), ‘मानसी’ (1890), ‘सोनारतरी’, ‘चित्रा’(1896), ‘चैताली’(1896), ‘कथा’ (1900), ‘काहिनी’, ‘कणिका’, ‘शक्तेर क्षमा’, ‘आकांक्षा’, ‘क्षणिका’, ‘कल्पना’, ‘स्वप्न’, ‘नैवेद्य’ (1901), ‘स्मरण’ (1902), ‘शिशु’ (1902), ‘खेया’ (1905), ‘गीतांजलि (1910), ‘गीतिमाल्य’(1914), ‘गीतालि’ (1914), ‘वलाका’ (1916), ‘पलातक (1918), ‘लिपिका’ (1919), `पूरबी’ (1924),
    • गीति-नाटिका / नाटक : वाल्मीकि प्रतिभा, प्रकृतिर प्रतिशोध (प्रथम नाट्य प्रयास), ‘मायार खेला’, ‘राजा ओ रानी’, ‘विसर्जन’ (1890), ‘चित्रांगदा’ (1891), ‘विदाय अभिशाप’(1894), `गांधारीर-आवेदन’, ‘नरकवास’, ‘कर्ण-कुन्ती संवाद’ (1897), `सती’, ‘चिरकुमार सभा’, ‘मालिनी’, ‘शरदोत्सव’ (1908), ‘प्रायश्चित’ (1909), ‘राजा’ (1910), अचलयातन (1911), ‘डाकघर’ (1912), ‘गुरु’ (1917), ‘फाल्गुनी’ (1915), ‘मुक्तधारा’ (1922), ‘वसन्तोत्सव’ (1922), ‘वर्षामंगल’ (1922), ‘शेषवर्षण’ (1925), ‘शोध-बोध’ (1925), ‘नटीर पूजा’ (1925), ‘रक्त-करवी’ (1926) ‘नटराज’ (1927), ‘नवीन’ (1927), ‘सुन्दर’ (1927),
    • उपन्यास : ‘बहू ठाकुरानीर हाट (1881, पहला उपन्यास), ‘राजर्षि’ (1887), ‘चोखेर बाली’, ‘नौका डूबी’ (1905), ‘गोरा’(1910), ‘चतुरंग’ (1915), ‘घरे-बाहिरे’ (1915), योगायोग (1927), `शेषेर कविता’ (1927) ।
    • निबन्ध व विचार, संस्मरण : 1883 से 1887 के बीच विविध प्रसंग, आलोचना, समालोचना, चिट्ठी-पत्री, ‘योरोप यात्रीर डायरी’ (1891), ‘छिन्नपत्र’ (1912), ‘जीवनस्मृति’ (1911), ‘साधना’ (1914), ‘नेशनलिज़्म’ (1917), ‘परसनालिटी’ (1917), ‘क्रियेटिव यूनिटी’ (1922),

प्रकृति, प्रेम, ईश्वर के प्रति निष्ठा, आस्था और मानवतावादी मूल्यों के प्रति समर्पण भाव से सम्पन्न ‘गीतांजलि’ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की सर्वाधिक प्रशंसित और पठित पुस्तक है। इसकी रचना उन्होंने 1910 में की थी, जिसका प्रथम प्रकाशन नवम्बर 1912 में हुआ। विश्वविश्रुत कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की इस कालजयी कृति के गीत पिछली एक सदी से भी ज़्यादा से बंग्लाभाषी जनों की आत्मा में बसे हुए हैं। इसी पर उन्हें 13 नवम्बर, 1913 को विश्व का सर्वोच्च नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

14 टिप्‍पणियां:

  1. गुरुदेव को उनके जन्मदिन पर नमन ....!!
    अमूल्य जानकारी के लिए आभार -मनोज जी .

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  2. Manoj ji bahut jankaribhari post hai .gurudev ko shat-shat naman .

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  3. गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर को नमन ... बहुत अच्छी जानकारी मिली ...आभार

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  4. विश्व -कवि रविन्द्रनाथ टैगोर की उनकी जयंती पर उनकी जीवन-गाथा के बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद. ज्ञानवर्धक और मूल्यवान आलेख के लिए आभार.

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  5. जितने बढ़िया कवि.. उतने ही बढ़िया उपन्यासकार.. कथाकार.. संगीतकार... चित्रकार... विश्व में शायद ही कोई दूसरा रविन्द्र नाथ हुआ हो या हो कभी.... कवि गुरु टैगोर को सादर नमन... उनकी एक कविता जो मुझे सबसे प्रिय है और इंस्पायर भी करती है...
    .. वेयर दि माइंड इस विदाउट फीअर.. एंड हेड इज हेल्ड हाई
    वेयर नालेज इज फ्री... इंटो दैट हेवेन आफ फ्रीडम माई फादर
    लेट माई कंट्री अवेक....

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  6. रवीन्द्रनाथ जी का यह जीवन चरित्र संग्रहणीय है और प्रेरक भी.

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  7. कविवर का केवल साहित्य में ही योगदान नहीं है बल्कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी बड़ा योगदान रहा है। उस आंदोलन में असहयोग आंदोलन का बड़ा भारी योगदान रहा और उसमें इनका गांधी जी से मतभेद भी हो गया था। गुरुवर शिक्षा को छोड़कर विद्यार्थियों का आंदोलन में हिस्सा लेने के पक्ष में नहीं थे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि हमारी पीढ़ी पढ़ाई में पिछड़ जाए। कितने दूरदर्शी और शिक्षा के हित चिंतक थे गुरुदेव। उन्होंने हर किसी का आह्वान किया था कि अपनी शक्ति के अनुसार सभी लोग योगदान करें। उनका कहना था कि मृत्तिका का दीप भी अपनी शक्तिभर प्रकाश फैलाता है। अतः हमें प्रकाश फैलाने में न कि अंधकार प्रसरित होने में योगदान करना चाहिए। हमें गुरुवर से प्रेरित होकर देश में व्याप्त भ्रष्टचार उन्मूलन में अपनी शक्ति के अनुसार योगदान करना चाहिए।

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  8. गुरुदेव अद्वितीय कलाकार थे.. आज भी रबीन्द्र संगीत एक परम्परा और संस्कृति का नाम है.. इसका अनुभव वही कर सकते हैं जिन्होंने बंग भूमि की मिट्टी की गंध महसूस की हो!!

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  9. कविगुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन्म दिन पर आपके द्वारा प्रस्तुत आलेख अपनी पूरी समग्रता में ज्ञानपरक लगा। धन्यवाद।

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  10. कवि गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर के जीवन और उनकी कृतियों की विस्तृत जानकारी मिली...
    लेखन के सभी विधाओं पर उनका सामान अधिकार था .
    बहुत ही सार्थक आलेख

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  11. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन्म दिवस पर उनके जीवन-वृत्त का संक्षिप्त रेखाचित्र काफी आकर्षक और प्रेरक है। गुरुदेव को शत-शत नमन। आभार।

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  12. पहले वाली टिप्पणी में लिंक गलत जुड़ गया था:-अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?

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  13. मानवता का अमर संगीत ,हर ह्रदय में बजता गीत से धन्य हुआ मनुज का जीवन . .

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