अंक-3
हिन्दी के पाणिनि – आचार्य किशोरीदास वाजपेयी
आचार्य परशुराम राय
पिछले अंक में चर्चा हुई थी कि आचार्यजी का मन अध्यापन के बखेड़े से ऊब चुका था और सम्पादकों के बीच बैठकर लेखन-कार्य करना चाहते थे। इसके लिए वे प्रयागराज पहुँचे, जहाँ चन्द्रलोक नामक मकान में चाँद कार्यालय था।
चाँद के संचालक श्री रामरख सिंह सहगल की आचार्यजी ने काफी प्रशंसा की है। लखनऊ में सुधा कार्यालय के दफ्तरी व्यवहार से अपने अनुभव के आधार पर आचार्यजी अपने परिवार (पत्नी और बच्चे) को स्टेशन पर छोड़कर वहाँ अकेले गये थे कि बात तय हो जाने पर कहीं रहने की व्यवस्था करके तब परिवार लेकर जाएँगे। लेकिन सहगल जी की आत्मीयता से वे काफी प्रभावित हुए। आचार्यजी के आने के पहले ही वहाँ उनके ठहरने की निःशुल्क व्यवस्था की जा चुकी थी। उस दिन खाने की व्यवस्था भी सहगलजी के यहाँ हुई। आचार्यजी को चाँद कार्यालय के पुस्तक विभाग में कार्यभार दिया गया।
चाँद में कार्य करते हुए अभी एक ही सप्ताह हुआ था। चाँद का अछूत अंक निकालने की तैयारी चल रही थी। वहाँ पहले से कार्यरत श्री नन्दकिशोर तिवारी ने आचार्यजी से उस अंक के लिए अछूत वर्ग के साधु-सन्तों पर एक लेख लिखने के लिए कहा। इस कार्य को करने के लिए आचार्यजी ने भक्तमाल पुस्तक की माँग की। आचार्यजी लिखते हैं कि चाँद कार्यालय की प्रबन्धन-व्यवस्था एकदम योरोपीय ढंग की थी। वैसी व्यवस्था किसी अन्य हिन्दी पत्र-पत्रिका कार्यालय में उन्हें देखने को न मिली। आधे घंटे के अन्दर उक्त पुस्तक आचार्यजी के सामने थी और दो-ढाई घंटे के अन्दर कुछ अछूत संत और भक्त शीर्षक लेख तिवारीजी के सामने था। आचार्यजी की इस कार्यशैली की काफी प्रशंसा हुई और दूसरे दिन उन्हें रु. 10/- प्रति माह की बढ़ोत्तरी का कागज उनके हाथ में था।
आचार्यजी ने सहगलजी के विषय में लिखा है कि वे किसी से दबते न थे। उन्होंने उस समय भारत में अंग्रेजी राज और चाँद का फाँसी अंक निकाला था। वे इतने स्पष्टवादी थे कि गाँधी जी के ब्रह्मचर्य और संयम द्वारा परिवार नियोजन की नीति का विरोध करते हुए सम्पादकीय में उन्होंने लिखा था कि बारह बच्चे पैदा करने के बाद महात्मा गाँधी लिखते हैं ......। वास्तव में उन दिनों चाँद परिवार-नियोजन के लिए कृत्रिम उपायों का भी पक्षधर था। गाँधीजी का कहना था कि इन कृत्रिम उपायों से विलासिता को बढ़ावा मिलेगा और इसलिए वे इसके विरुद्ध थे। आचार्यजी ने परिवार-नियोजन के लिए सन्तति-नियमन शब्द का प्रयोग किया है। सम्भवतः उस समय यही शब्द प्रचलन में रहा होगा।
अनुकूल वातावरण के होते हुए भी आचार्य किशोरीदास वाजपेयी चाँद कार्यालय में लम्बे समय तक टिक नहीं पाए। लगभग डेढ़ माह होते-होते उन्हें यह स्थान छोड़ना पड़ा। हुआ यों कि एक दिन सहगलजी ने महामना पं. मदनमोहन मालवीय के लिए कोई अपशब्द प्रयोग कर दिया, केवल इसलिए कि उन्होंने विधवाओं के लिए न कुछ किया, न कुछ लिखा। यह आचार्यजी को अच्छा न लगा और उन्होंने कहा कि केवल इस बात के लिए उनके द्वारा की गयी महान सेवाओं को नगण्य समझा जाएगा या ऐसा न करने से वे इस अपशब्द के हकदार हैं, जो आपने प्रयोग किया है। कृपया मेरे सामने महर्षि मालवीय के लिए ऐसे शब्द न प्रयोग करें। दोनों के अपने-अपने पक्ष थे। आचार्यजी ने लिखा है कि सहगलजी को इस रूप में कोई जबाब देने का साहस उससे पहले कभी किसी ने नहीं किया था।
आचार्यजी के मन में आया कि जब मालिक से विवाद हो जाय, तो वहाँ रुकना उचित नहीं और उन्होंने अपना त्यागपत्र एक माह की नोटिस के साथ दिया, लेकिन उसी दिन दो घंटे में हिसाब-किताब कर उन्हें कार्यमुक्त कर दिया गया। आचार्यजी ने भी तुरन्त शहर में जाकर एक कमरा लिया और अपने परिवार को शिफ्ट कर दिया।
आचार्यजी लिखते हैं कि पता नहीं कैसे यह बात इलाहाबाद के साहित्यकारों में फैल गयी और दूसरे दिन प्रातः काल ही अभ्युदय के सम्पादन विभाग में कार्यरत श्री मंगलदेव शर्माजी आ गए और उपर्युक्त कार्यालय में काम करने का आग्रह किए। अभ्युदय की भी उन दिनों धूम थी। वेतन भी चाँद पत्रिका के बराबर देने की बात थी, किन्तु इस पत्रिका के संचालक-सम्पादक पं. मदन मोहन मालवीय के भतीजे पं. कृष्णकान्त मालवीय थे। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि अभ्युदय का प्रारम्भ पं. मदन मोहन मालवीयजी ने ही किया था। चूँकि मालवीयजी के कारण ही आचार्यजी को चाँद पत्रिका छोड़नी पड़ी थी, अतएव वे उनकी पत्रिका में काम करना उचित न समझे और शर्माजी को धन्यवाद देकर विदा कर दिए।
इसके बाद आचार्यजी नवल किशोर प्रेस, लखनऊ आ गए, जहाँ से माधुरी पत्रिका निकलती थी और उन दिनों इसका सम्पादन पं.कृष्ण बिहारी मिश्र तथा श्री प्रेमचन्द जी कर रहे थे। यहाँ भी आचार्यजी जल्दी ही ऊब गए और अपना हिसाब-किताब करके पुनः अध्यापन की ओर उन्मुख हुए तथा इसके लिए वे गुरुकुल काँगड़ी पहुँचे। कुछ दिन तक अध्यापन करने के बाद कुछ धार्मिक मतभेद के चलते गुरुकुल छोड़कर वे बीकानेर आ गए। यहाँ वे सेठ भैरोंदास सेठिया जी की जैनी संस्थाएँ विद्यालय भी चलाती थीं। उसी में आचार्यजी अध्यापन करने लगे। यहीं आचार्यजी के पहले बेटे की मृत्यु हो गयी। आचार्यजी लिखते हैं कि इस घटना का उनके ऊपर इतना मर्मान्तक प्रभाव पड़ा कि वे बीकानेर की नौकरी छोड़ दिए और पत्नी को मायके भेजकर इधर-उधर निरुद्देश्य भटकते रहे। इसी बीच वे प्रयाग पहुँचे और वहाँ हिन्दी विद्यापीठ में आचार्य के रूप में कार्यरत अपने मित्र श्री रामाज्ञा द्विवेदी के यहाँ पहुँचे और वहीं विद्यापीठ में कुछ दिन तक ठहरे।
इस अंक में बस इतना ही।
आचार्य किशोरीदास वाजपेयी जी के बारे में थोड़ी जानकारी थी लेकिन इस पोस्ट के पढ़ने के बाद उनके बारे में जो जानकरी मिली उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ .।
जवाब देंहटाएंसादर ।
ओह कितना दुखद -इस महा मनीषी ने कितना संघर्ष किया ...
जवाब देंहटाएंसंतति निरोध के बजाय संतति नियमन ज्यादा उपयुक्त और यह वाजपेयी जी की देन है !
उन्होंने उस समय भारत में अंग्रेजी राज और चाँद का फाँसी अंक निकाले थे।
कुछ वाक्य खटक रहा है ..निकाले या निकाला ?
बढ़िया। धन्यवाद कि ऐसे लेख पढ़ने को मिल रहे हैं…निकाले थे…सही तो लग रहा है…हाँ चाँद का की जगह चाँद के फाँसी अंक…शायद ठीक होता…अन्तर्जाल पर शानदार काम कर रहे हैं आप। फिर से आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआचार्य किशोरीदास वाजपेयी जी के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंश्री अरविन्द जी व चन्दन कुमार जी,
जवाब देंहटाएंजब मैं लिख रहा था तो कुछ वैसा ही लिख गया था जैसा आपने कहा है। पर दुबारा पढ़ने लगा तो पाया कि गलत प्रयोग हो गया है। कर्ता के साथ ने आ जाने पर क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष का अनुकरण करती है, बशर्ते कि कर्म पद के साथ कर्म कारक का चिह्न न प्रयोग किया हो। यहाँ कर्ता के साथ ने आ गया है और दो कर्म हैं जिनके साथ कर्म कारक का चिह्न नहीं लगा है, अतएव जो प्रयोग हुआ है, सही है।
चन्दन जी की शंका भी निर्मूल है क्योंकि चाँद पत्रिका का "फाँसी अंक" नाम से एक ही अंक निकला था, जैसा कि आचार्य वाजपेयी जी ने दिया है।
Excellent writing! Thank you for this wonderful source of information.
जवाब देंहटाएंIndia is a land of many festivals, known global for its traditions, rituals, fairs and festivals. A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!.
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बहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक पोस्ट ......पढ़वाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
aachary ji ke baare me bahut aacchhi jaankari mil rahi hai...aage ke ank ka intzar rahega.
जवाब देंहटाएंaabhar.
बहुत ही ज्ञानवर्धक श्रृंखला है यह। इनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। संग्रहणीय श्रृंखला बन पड़ी है। आभार राय जी।
जवाब देंहटाएंअब न पत्रकारों में वह स्वाभिमान है,न पत्नियों में इतनी सहनशीलता कि निरूद्देश्य भटकते को बर्दाश्त करें!
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंमुझे व्याकरण का ज्ञान तो नहीं के बराबर है। बस ऐसा लगा, इसलिए कह दिया था। बस मुझे लगा कि 'और' से जुड़ने के कारण हमें क्रिया का बहुवचन रूप प्रयोग ही करना चाहिए। शायद मैं गलत था।
'उन्होंने उस समय भारत में अंग्रेजी राज और चाँद का फाँसी अंक निकाला था।'
आपका धन्यवाद।
जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रिय चन्दन जी,
जवाब देंहटाएंबिलकुल आप सही कह रहे हैं। अभी मैंने देखा निकाले थे के स्थान पर निकाला था टाइप हो गया है। यही बात मैंने अरविन्द जी और आपके शंका के उत्तर में भी लिखा है। आपलोगों ने ठीक प्रश्न उठाया है। आभार।
चन्दन जी मैं आपकी बात अब समझा। वास्तव में चाँद का फाँसी-अंक (एक विशेषांक) निकला था, जबकि "भारत में अंग्रेजी राज" नाम का या तो लम्बा लेख रहा होगा या कोई धारावाहिक, विशेषांक नहीं। अतएव "का अंक" लिखा गया है, "के अंक नहीं"। आभार।
जवाब देंहटाएंअद्भुत!
जवाब देंहटाएंआचार्य किशोरीदास वाजपेयी आचार्य परशुराम राय पर बढ़िया प्रस्तुति के लिए आभार.....
विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।