छोटी-छोटी बातों का महत्व
प्रस्तुतकर्ता : मनोज कुमार
सेवाग्राम आश्रम के खाने के कमरे में एक बोर्ड लगा रहता था, जिस पर बापू ने लिखवाया था,
“मुझे आशा है कि आश्रम की सम्पत्ति को लोग अपनी ही सम्पत्ति समझेंगे। नमक तक आवश्यकता से अधिक नहीं परोसा जाना चाहिए।”
बापू तो इस कहावत में विश्वास करते थे, “बूंद-बूंद से घट भरे।”
वे एक काग़ज़ के टुकड़े तक को नष्ट नहीं करते थे। एक ओर लिखे काग़ज़ को फेंकते न थे। वे उसकी दूसरी तरफ़ लिखते थे। चिट्ठियों से वे ख़ाली काग़ज़ फाड़ लेते थे। काग़ज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों को भी नोट लिखने के लिए काम में लाते थे। इस्तेमाल किए हुए लिफाफों को भी खोलकर उसके अन्दर के भाग को लिखने के काम में लाते थे।
एक दिन बापू बहुत परेशान होकर जिसी चीज़ की तलाश कर रहे थे। काका साहब ने यह देख कर पूछा, “बापू आप क्या ढूंढ़ रहे हैं?”
बापू ने उत्तर दिया, “पैंसिल का एक टुकड़ा।”
काका साहब ने अपनी पेटी से एक पैंसिल निकाली और बापू को दे दी।
बापू ने कहा, “नहीं, नहीं, मुझे यह नहीं चाहिए। मुझे वही पैंसिल का टुकड़ा चाहिए जिसे मैं ढूंढ़ रहा हूं।”
काका साहब ने कहा, “इस समय इसे ही इस्तेमाल कर लीजिए बापू, आपकी पैंसिल को मैं बाद में खोज दूंगा।”
बापू ने सिर हिलाया और कहा, “तुम नहीं समझते काका! वह मेरे छोटे लड़के के परम मित्र ने मुझे दी थी। जिस प्रेम से उसने दौड़कर मुझे यह पैंसिल दी थी उसे मैं कैसे भूल सकता हूं। वह पैंसिल कैसे खो सकता हूं?”
उन दोनों ने वह पैंसिल की तलाश की और वह मिल गई।
यह पैंसिल का एक छोटा-सा टुकड़ा था, लेकिन बापू को तभी शांति मिली जब उन्होंने उसे खोज लिया। उनके लिए कोई भी चीज़ छोटी नहीं थी।
(स्रोत : ऐसे थे बापू, यू.आर. राव)
धन्य-धन्य यह मंच है, धन्य टिप्पणीकार |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आप की, चर्चा में इस बार |
सोमवार चर्चा-मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
बापू के लिए प्रेम से दी हुई वस्तु का महत्त्व अधिक था ..बहुत प्रेरक प्रसंग
जवाब देंहटाएंछोटी कथा,बड़ा सन्देश !
जवाब देंहटाएंहम सबके जीवन में भी बहुत सी बातें बहुत छोटी एवं नगण्य होती हैं एवं जब आवश्यकता पड़ती है तो यही बातें बड़े ही महत्व की हो जाती हैं ।. हम सबको बापू के विचारों को अपने आम जीवन में भी व्यवहारिक रूप में प्रयुक्त करनी चाहिए । आपके द्वारा प्रस्तुत प्रेरक प्रसंग अच्छा लगा । धन्यवाद ।.
जवाब देंहटाएंसही कहा छोटी छोटी बातो का भी अपना ही महत्व होता है।
जवाब देंहटाएंउस जमाने में किसी भी वस्तु को बर्बाद नहीं किया जाता था। वेस्ट पैदा करना आज की आधुनिकता है।
जवाब देंहटाएंJivan ki gadi ko aage badhane ke liye prena ki aawshyakata hoti hai. Aasha hai aapka blog logon ko prena dene mein saphal hoga.
जवाब देंहटाएंसुंदर सन्देश!
जवाब देंहटाएंकाश ! हम भी ऐसा कर पाते ....प्रेरक प्रसंग
जवाब देंहटाएंस्मृतियाँ छोटी से छोटी वस्तुओं में भी सन्निहित होती हैं... यह बापू ने इस प्रसंग से सिखाया है.. यह तो ऐसी सीख है जिसे अपनाना कोई दुरूह कार्य नहीं है!!
जवाब देंहटाएंपढ़ने को मिला था भी लेकिन काम का है…
जवाब देंहटाएंबेहद प्रेरणादायी आलेख। धन्यवाद मनोज जी।
जवाब देंहटाएंACHHA PRERAK PRASANG.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा ये प्रसंग... हमें भी इससे शिक्षा मिलती है ...आभार...
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबापू जैसा कौन .....
छोटी दिखने वाली बातें,जीवन में बडा महत्व रखती हैं.शिक्षाप्रद लेख.
जवाब देंहटाएंछोटी दिखने वाली बातें,जीवन में बडा महत्व रखती हैं.शिक्षाप्रद लेख.
जवाब देंहटाएंbahut achhaa laga. hamey apney jewan me har choti choti bato ka khayal rakhna chahiay. gandhiji ki har ek baatey hamey sahi rah dikhati hai..........
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Aaj dusri bar aapko ek kavi gosthi me suna. dil ko chuu gaya. man tarse ek aangan ko.... dil ko sakun hua. pagli, pappu painter aadi ki sambednaoo ko sabdo me bayakt kiya to ehsas hua ki hum har roj aise logo ko dekhtey hai. painter jo logo ke gharo me indradhanushi rang bhartey hai lekin unke gharo me kitna andhkar hai. rajmistri jo logo ke sapno ke mahal ka nirman karta hai lekin o khud jhuggioo me rahtey hai.............