आम आदमी की हिंदी
प्रयोजनमूलक हिंदी के ज़रिए (भाग-२)
मनोज कुमार
आइये, सबसे पहले देखते हैं कि हिन्दी को प्रयोजनमूलक कहने की आवश्यकता क्यों पड़ी। दरअसल हिन्दी का साहित्य बहुत पुराना है। यह देव-भाषा संस्कृत के बहुत समीप है। आज भी संस्कृत के मूल शब्द हिन्दी में तत्सम और उनके विकृत रूप तद्भव नाम से उपयोग में है। अतः इसका इतिहास भी उसी अनुपात में पुराना होना स्वाभाविक ही है। नब्बे के दशक में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पहल पर हिंदी के पौराणिक पाठ्यक्रम से आम तौर पर अप्रसांगिक हो चले अंशों को काट कर और वर्तमान परिदृश्य में उपयोगी तत्वों को ज़ोर कर एक ऐसा पाठ्यक्रम विकसित किया गया जो आम-ज़रूरतों को पूरा कर सके। बेशक, मशीनी युग के भाग-दौड़ में वही चीज स्वागतेय है जिसका सीधा और तीव्र प्रभाव पड़ता हो। परिवर्तन ही एक मात्र शाश्वत है। फलस्वरूप हिंदी को भी पौरानिकता की चारदीवारी से निकलकर आधुनिकता का आवरण ओढ़ना पड़ा। दैनिक जीवन की छोटी-बड़ी तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाज़ार के मान-दंड पर खड़ा होना पड़ा। और हिन्दी जैसी समर्थ, उदार और लोचदार भाषा तो ऐसे परिवर्तनों के लिए तैयार ही थी, अंततः बन गई प्रयोजनमूलक। प्रयोजनमूलक बोले तो बाज़ारू। मतलब बिना लाग-लपेट उतनी ही और वैसी ही हिन्दी जो निर्दिष्ट आवश्यकता को संतुष्ट कर सके। आज हिंदी केवल शास्त्रीय लेखन की भाषा नहीं अपितू बाज़ार की भाषा है। विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मीडिया उद्योग अंग्रेज़ी के बाद हिन्दी उद्योग पर आधारित है।
प्रयोजनमूलक हिंदी में लालित्य, अलंकार और सौंदर्य कतई आवश्यक नहीं बल्कि प्रभावोत्पादकता और सम्प्रेषनीयता ही वरेन्य है। अभिप्राय यह है कि अकादमिक हिन्दी के अलावे प्रयोजनमूलक हिंदी के रूप में एक ऐसी भाषा का विकास हुआ है जो जन-संचार अर्थात मास-कम्युनिकेशन की भाषा है। जिस भाषा में रोमांच है, जिसमें ट्विस्ट है, जिसमें टेस्ट है और जिसे हिन्दी भाषियों के अतिरिक्त हिन्दीतरभाषी भी आसानी से समझ सकते हैं। प्रयोजनमूलक हिन्दी वह है जो लालित्य के बोझ से न दब कर खरी-खरी कहता है। ऐसा नहीं कि इसमें सौन्दर्य नहीं है। किंतु इसका सौन्दर्य अलंकारों से नहीं साधारनीकरण से है। सफल संवाद-अदायगी, हमेशा की तरह आज भी इसकी मूलभूत विशेषता है। आज हिन्दी केवल “स्वान्तः सुखाय या रसिक समाज हर्षाय” ग्रंथों की भाषा नहीं है। वरन लाखों हाथों को काम और करोड़ो लोगों के पेट की आग बुझाने की भाषा है और यही है प्रयोजनमूलक हिंदी।
विज्ञान की चरम उन्नति से हिंदी को भी नए आयाम मिले हैं। वर्तमान युग आई. टी. युग है। और सूचना प्रोद्यौगिकी के क्षेत्र में भारत दुनिया भर में अपनी धाक मनवा चुका है। विज्ञान की इस शाखा में पूरा विश्व भारतीय मस्तिस्क का कायल है। दूसरी बात कि सूचना प्रोद्यौगिकी के विकास ने पूरी दुनिया को एक सूत्र में पिरो दिया है। यहीं से तकनीक के एक नए व्यवसाय का उदय होता है, जिसका नाम है आउटसोर्सिंग। अर्थात तकनीक हस्तांतरण या दुनिया के किसी कोने में बैठ कर दूसरे कोने को तकनिकी समाधान देना। आज आउटसोर्सिंग बिजिनेस में भारत का कोई सानी नहीं है। पश्चिमी देशों में तो आउटसोर्सिंग के लिए टर्म ही बन गया है, “It’s been Bangalored”. क्योंकि पश्चिमी देशों के मुक़ाबले भारतीय अभियंता किसी तकनीक को काफी कम लागत और कम समय में कुशलता के साथ विकसित कर देते हैं। यह भी कारण है कि बहुत बड़ी संख्या में विदेशी दृष्टि भारत की ओर लगी हुई है।
ज़ाहिर है, कहीं भी व्यवसाय करने के लिए वहाँ की भाषा समझना अनिवार्य है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस कार्य के लिए बिहारीलाल की सतसई या विद्यापति की पदावली को तो काम में लाया नहीं जा सकता। अतः भारत में जो भाषा यह काम बड़े पैमाने पर कर सकती है, वही प्रयोजनमूलक हिंदी है। बात चाहे सॉफ्टवेयर की हो या अन्य उपभोक्ता उत्पादों की, विश्व की बड़ी से बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनी की नज़र आज भारतीय बाज़ार पर टिकी हुई है। और बिना हिंदी के भारतीय बाजार पर क़ब्ज़ा करना अगर असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रूर है। और जो भाषा इस बाज़ार को चलाने में उपयुक्त है वही प्रयोजनमूलक हिंदी है। यही वजह है कि अभियंत्रण जैसी तकनीकी विधा के बाद अब हिंदी जैसे शास्त्रीय विधा के शिक्षकों की पश्चिमी देशों में भारी मांग हो रही है। हाल ही में प्रतिष्ठित अन्तरराष्ट्रीय पत्रिका “फोर्ब्स” में कहा गया था कि आगामी दो वर्षों में यूरोप और अमेरिका के देश लगभग पचास हज़ार हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति के बारे में सोच रहे हैं।
----- अभी ज़ारी है ....
ज्ञानवर्धक जानकारी ।
जवाब देंहटाएंएक प्रयोजनमूलक आलेख !
जवाब देंहटाएंएक उम्दा प्रस्तुति....शुभकामनायें....आप का ये प्रयास बहुत ही अच्छा है....आप इसे जारी रखियेगा....
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख ।
जवाब देंहटाएंमहोदय
जवाब देंहटाएंनमस्कार
आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया बताएं क्या जनसंचार और जनसम्प्रेषण समानार्थी शब्द है ?
क्या ये शब्द एक दूसरे के पर्याय है ? Mass Communication को हिंदी में क्या लिखना चाहिए ?
धन्यवाद
can any1 tell me five good characteristics of Hindi language?
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