संचार में भाषा की भूमिका
प्रयोजनमूलक हिंदी में शामिल घटकों में प्रमुख हैं, पत्रकारिता, भाषा-विज्ञान, (linguistics & philology) अनुवाद और सृजनात्मक लेखन।
दरअसल प्रयोजनमूलक हिंदी की संकल्पना पत्रकारिता से ही ली गयी है और व्यवहारिक तौर पर यह हिंदी पत्रकारिता का पर्याय माना जाता है। जन-संपर्क और विज्ञापन भी लगभग इसी की परिधि में आ जाते हैं। अतः हिंदी की पत्रकारिता की भाषा, शैली, इतिहास और व्यापार का अध्ययन, प्रयोजनमूलक हिंदी के दायरे में आ जाता है। आज जिस प्रकार हिंदी मीडिया बूम पर है और इसमें जिस रफ़्तार से देशी और विदेशी निवेश हो रहे हैं, उसे देखते हुए इसमें व्यवहृत भाषा, प्रयोजनमूलक हिंदी का वर्तमान तो सुदृढ़ है ही भविष्य भी उज्जवल नज़र आता है।
संचार में भाषा की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण है। जनसंचार का काम भाषा के बिना असंभव है। जनसंचार का काम हिंदी पत्र पत्रिकाएं देश की आज़ादी के पहले से ही करती आ रहीं हैं। हिंदी को जानने व समझने वालों का एक बहुत बड़ा वर्ग है भारत में। हिंदी के विकास की यात्रा में हिंदीतर भाषी प्रदेशों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। 1857 में कलकत्ता विश्व विद्यालय में हिंदी विभाग की स्थापना की गई थी। एक हिंदीतर भाषी नलिन मोहन सांन्याल सबसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदी में एम.ए. किया। भूदेव मुखोपाध्याय ने 1887 में आज के हिंदीभाषी प्रदेश बिहार में हिंदी का पाठ्यक्रम तैयार करवाया था। हिंदी के पहले समाचार पत्र उदंत मार्तंड का प्रकाशन जुगल किशोर शुक्ल द्वारा कोलकाता में हुआ था। यह एक हिंदीतर भाषी प्रदेश है। आज के दिनों में भी हिंदीतर भाषी प्रदेशों में हिंदी के पत्र काफी लोकप्रिय हैं। हिंदी दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका का बैंगलुरु से पिछले 13-14 वर्षों से लगातार प्रकाशन हो रहा है। बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका चंदामामा का प्रकाशन चेन्नई से हुआ। इसके संपादक हिंदीतर भाषी शौरि रेड्डी थे। हैदराबाद से कभी कल्पना निकलती थी। आज वहां हिंदी मिलाप चल रहा है। कोलकाता देश को सन्मार्ग देता है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से भी सरकारी अख़बार द्वीप समाचार हिंदी में निकलता है। आज हिंदी के अख़बारों की प्रसार संख्या सर्वाधिक है। इन पत्र-पत्रिकाओं ने हिंदी की लोकप्रियता बढ़ाने के अलावा समाज में सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा करने में सराहनीय योगदान किया है।
----- अभी ज़ारी है ....
लगे रहो ।आने वाला समय हमारा है।
जवाब देंहटाएंराजभाषा का प्रचार प्रसार अवश्य हागा। लेख अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंआपका आलेख अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंmargadarshee aalekh !
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