मनोज कुमार
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर समकालीन कविता तक की विकास यात्रा विभिन्न चरणों से गुज़री है। नवजागरण, छायावदी, छायावादोत्तर, प्रगतिशील, नयी कविता के दौर से गुज़रते हुए हिन्दी कविता ने परिपक्वता की कई मंज़िलें तय की है। हर युग, हिन्दी कविता के बदलते मिजाज़, सम्प्रेषण की नयी-नयी विधियां, भाव-भाषा-संरचना के नये-नये प्रयोग के साथ, अपनी विशिष्ट पहचान और लक्षणों को लिए थे।
नवजागरण काव्य आधुनिक हिन्दी काव्य का शुरुआती दौर था, जिसके प्रमुख कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और मैथिलीशरण गुप्त थे। प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी वर्मा का काल छायावादी काव्य का काल रहा जबकि राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा के प्रमुख कवि रामधारी सिंह दिनकर छायावादोत्तर काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। नागार्जुन, गजानन माधव मुक्तिबोध और सुदामा प्रसाद पाण्डेय ‘धुमिल’ को हिन्दी कविता के प्रगतिशील काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय तथा श्रीकांत वर्मा का दौर नयी कविता का दौर रहा।
भारतेन्दु युग से पहले हिन्दी की जिस कविता से हमारा परिचय होता है, उसे रीति काव्य के नाम से जाना जाता है। इस युग का काव्य अपने स्वरूप और संरचना की दृष्टि से रुढिबद्ध, श्रृंगारपरक और सामंत वर्ग का अनुरंजन (दिल-बहलाव) करने वाला काव्य था। इस काल की कविताओं का सृजन, अधिकांशतः दरबारियों, राजाओं और मनसबदारों की चाटुकारिता, स्तुति गायन और उन्हें प्रसन्न करने के लिए वीरता की झूठी प्रशंसा हेतु
किया गया। काव्य का सृजन हंसाने, चमत्कृत करने और उनकी रंगरेलियों को और अधिक मधुर बनाने के लिए काव्य के परंपरागत लक्षणों के आधार पर होता रहा। समाज के व्यापक भावबोध से ये कविताएं कटी हुयी थीं। सीधे शब्दों में कहें तो साहित्य का संबंध समाज से नहीं था। इसलिए इनका ऐतिहासिक महत्त्व भले हो, किंतु इनमें सामाजिक और सांस्कृतिक चिंताओं के न होने से इनका महत्त्व कम जाता है। हालाकि भक्ति, वीर और नीति काव्य की रचनाएं भी इस दौर में हुईं, पर मुख्य धारा रीति बद्धता की रही।
आधुनिक हिन्दी कविता का आरंभ 19वीं शती के उत्तरार्द्ध में हुआ था। यह वह समय था जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सक्रिय थे। इस समय बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब में सामाजिक-सांस्कृतिक सुधार आन्दोलन की गूंज चारों दिशाओं में फैल रही थी। इस धर्म-समाज सुधारक आन्दोलन की गतिविधियों से हिन्दी साहित्य भी काफ़ी प्रभावित हुआ। कविताओं के माध्यम से नवजागरण यानी फिर से सजग होने की अवस्था या भाव, की अभिव्यक्ति हुई। भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग की रचनाएं नवजागरण का स्रोत और माध्यम रही हैं। यह युग हिन्दी के मध्य से सर्वथा भिन्न था और आधुनिक युग के रूप में अपनी नयी पहचान बना सका। हिन्दी की आधुनिक कविता की प्रक्रिया इसी युग से शुरु होती है।
इस युग की कविताओं में भारतीय नवजागरण के प्रमुख तत्त्व – प्राचीन संस्कृति पर निर्भरता, ईश्वर की जगह मानव केन्द्रीयता और जातीय राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी खड़ी बोली की स्वीकृति, मिलते हैं। नवजागरण की दृष्टि से यह युग नवजागरण का काल था। इस काल में नये-पुराने के बीच संघर्ष की स्थिति थी। जहां एक ओर प्राचीन के प्रति बरकरार मोह और नये का तिरस्कार था, वहीं दूसरी ओर नये के प्रति आकर्षण और पुराने के तिरस्कार वाली स्थिति भी थी।
इस युग का हिन्दी साहित्य में काफ़ी महत्त्व रहा है। भारतेन्दु और द्विवेदी युग प्रकारान्तर से हिन्दी खड़ी बोली के काव्य भाषा में विकसित होने का युग रहा है। यह रास्ता आसान नहीं रहा। ब्रजभाषा के स्थान पर हिन्दी खड़ी बोली को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित कराने में काफ़ी संघर्ष का सामना करना पड़ा।
भारतेन्दु और द्विवेदी युग प्रकारान्तर से हिन्दी खड़ी बोली के काव्य भाषा में विकसित होने का युग रहा है।
जवाब देंहटाएं--
आज के दौर में तो लोगों ने प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य के युगों पर दृष्टिपात करना ही बन्द कर दिया है! ऐसे समय में आपका यह आलेख निश्चितरूप से ऊर्जा प्रदान करेगा!
बहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंजानकारीपरक सुन्दर आलेख.
जवाब देंहटाएंआपकी साहित्यिक सूझ-बूझ और व्यापक सोच-समझ से हम साहित्य प्रेमियों को बहुत कुछ सीखने और जानने को मिलता रहता है,मनोज जी.
आपको जितना धन्यवाद दूँ,कम है.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (3/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
एक और ज्ञानवर्धक आलेख ..बहुत कुछ जाना..आभार.
जवाब देंहटाएंसोचती हूँ आज से सौ वर्ष बाद जब आज के साहित्य के विषय में लिखा विचारा जाएगा,तब इस काल को कैसे संबोधित किया जायेगा...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख...
आभार..
आधुनिक हिन्दी काव्य के बारे में इस महत्वपुर्ण लेख के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और ज्ञानवर्द्धक लेख ..
जवाब देंहटाएंआधुनिक कविता की नीव भारतेंदु जी द्वारा रखी गई थी... उनकी तुलना अंग्रेजी के रेनासा के कवियों से तुलना की जा सकती है... बहुत सारगर्भित आलेख..
जवाब देंहटाएंkuchh purani ,bhuli - bisari yaade taja ho gayi.very good prastuti.
जवाब देंहटाएंजानकारीपूर्ण आलेख!!
जवाब देंहटाएंआप हिंदी साहित्य की मन से सेवा कर रहे हैं।हिदी के प्रति आपकी समर्पित अनुरागिता वास्तव में हिंदी प्रेमियों के मन में थोड़ी सी जगह पाने में सफल सिद्ध हो रही है।धन्यवाद
जवाब देंहटाएंगहन और विस्तृत जानकारी पूर्ण आलेख के लिए आभार . आप जैसे हिंदी साहित्य प्रेमी की हिंदी सेवा प्रशंसनीय है .
जवाब देंहटाएं2011/2/3 Vani Sharma
जवाब देंहटाएंhttp://anilpusadkar.blogspot.com/2011/02/12.html
2011/2/3 Vani Sharma
http://svatantravichar.blogspot.com/2011/02/blog-post_02.html
मनोज जी,
ज्ञानवर्धक लेख क्योंकि हिंदी साहित्य और उसके इतिहास के बारे में सभी लोगों को इतनी गहन जानकारी नहीं है. हर लेख कुछ न कुछ देकर ही जाता है.
बहुत ज्ञानवर्धक आलेख..आभार
जवाब देंहटाएंगठी हुई भाषा में सारगर्वित जानकारी
जवाब देंहटाएंआधुनिक हिंदी काव्य कोर्स
जवाब देंहटाएंhttps://sarkarifocus.com/courses/adhunik-hindi-kavya/