स्वागत बसंत
-- करण समस्तीपुरी
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
हे प्रेम पुंज ! हे आस रूप !!
ऋतुपति तेरी सुषुमा अनंत !!!
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
कानन की कांति के क्या कहने !
किसलय कली कुसुम बने गहने !
अवनि शुचि पीत सुमन पहने !
मानो विधि की रचना जीवंत !!
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
आम मंजरी की महक से,
हे प्रेम पुंज ! हे आस रूप !!
ऋतुपति तेरी सुषुमा अनंत !!!
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
कानन की कांति के क्या कहने !
किसलय कली कुसुम बने गहने !
अवनि शुचि पीत सुमन पहने !
मानो विधि की रचना जीवंत !!
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
आम मंजरी की महक से,
और खगकुल की चहक से !
और अलिकुल की भनक से !
गूंजते हैं दिक् दिगंत !
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या,
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
और अलिकुल की भनक से !
गूंजते हैं दिक् दिगंत !
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
मन्मथ की मार बनी असहय !
कोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या,
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
मन्मथ की मार बनी असहय !
जवाब देंहटाएंकोकिल की कूक करुण अतिशय !
सुन विरही उर उपजे संशय !
विरहानल को भड़काने या,
करने आए हो सुखद अंत !
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
सुंदर रचना -विरहिणी का दृष्टिकोण भी सुन्दरता से लिखा है .
अच्छा गीत, पर अंतिम बंद कुछ सुधार चाहता है। दूसरे बंद में भी प्रयुक्त "मंजर" शब्द असंगत सा लग रहा है, वास्तव में मंजरी शब्द अच्छा रहता। शायद गीतकार का भी वही कहना है। हो सकता है टंकणगत अशुद्धि हो। वैसे ये मेरे विचार हैं। इस टिप्पणी के लिए क्षमा याचना के साथ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है, शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्यवर,
जवाब देंहटाएंदूसरे बंद का टंकण दोष सुधार लिया गाया है. तीसरे बंद के मात्रागत संतुलन में आपका सहयोग अपेक्षित है. धन्यवाद.
बहुत ही सुन्दर बसंत का स्वागत गीत है .... आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिए आभार
जवाब देंहटाएंकानन की कांति के क्या कहने !
जवाब देंहटाएंकिसलय मुसकाय बने गहने !
अवनि शुचि पीत सुमन पहने !
मानो विधि की रचना जीवंत !!
स्वागत ! स्वागत !! स्वागत बसंत !!!
करन जी,
वसंत का यह गीत इतना जीवंत है कि पढ़ कर मुरझाया मन भी वसंत वसंत हो गया !
ढेर सारी शुभकामनाएँ !
करन जी आपको तो देसिल बयना के लेखक के रूप में ही जानता था.. लेकिन आज आपका यह वसंत गीत देख कर मन प्रफुल्लित हो गया है... निराला की कविता सी लग रही है यह कविता... ऋतुराज का सुन्दर आह्वान है पूरी कविता में... शुभकामना
जवाब देंहटाएंबड़ा गीतात्मक स्वागत किया है आपने वसंत का! लयबद्धता कमाल की है, शब्द सन्योजन मुग्ध करने वाला है... आपकी प्रतिभा से तो परिचित हैं ही हम, लेकिन यह अवश्य ही नया रंग चढ़ा है आपपर!!
जवाब देंहटाएंबसंत का मनोहारी स्वागत ...बहुत सुन्दर गीत ..
जवाब देंहटाएंसत्य है...आज तक यही लगता था कि करण देसिल बयना जिस अंदाज़ में लिखते हैं,क्या कोई लिख पायेगा...पर आज तो कविता पढ़ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि उसी देसिल बयना वाली की लिखी हुई है यह....
जवाब देंहटाएंकमाल है ..बस कमाल...लाजवाब !!!
प्रशंसा को सटीक शब्द नहीं मिल रहे...
जियो बचवा ....जियो...
मन हरषा दिए.....
माता की कृपा है तुमपर...बस लगे रहो लेखन में...
बसंत के स्वागत में अच्छा और मृदु गीत है।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिंदी केवल गीत कविता नहीं है। इसकी अन्य विधाओं पर भी लेखन आवश्यक है। बहुत लोग रोमन में हिंदी लिख रहे हैं। कोलकाता में ऐसे लोगों की शिक्षा होनी चाहिए। प्रयास करें। शुभकामना और बधाई।