जब व्यापता है मौन मन में बदरंग हो जाता है हर फूल उपवन में मधुप की गुंजार भी तब श्रव्य होती नहीं कली भी गुलशन में कोई खिलती नहीं । शून्य को बस जैसे ताकते हैं ये नयन अगन सी धधकती है सुलग जाता है मन । चंद्रमा की चांदनी भी शीतलता देती नहीं अश्क की बूंदें भी तब शबनम बनती नहीं । पवन के झोंके आ कर चिंगारी को हवा देते हैं झुलसा झुलसा कर वो मुझे राख कर देते हैं . हो जाती है स्वतः ही ठंडी जब अगन शांत चित्त से फिर होता है कुछ मनन मौन भी हो जाता है फिर से मुखरित फूलों पर छा जाती है इन्द्रधनुषी रंजित अलि की गुंजार से मन गीत गाता है विहग बन गगन में उड़ जाना चाहता है .. संगीता स्वरुप |
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
मुखरित मौन
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प्रेम जब गहरा जाता है... मौन भी मुखर हो जाता है.. सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंक्या मौन में प्रेम मर जाता है ...
जवाब देंहटाएंक्या मौन में प्रेम मर जाता है ...
जवाब देंहटाएंye nischhal or
जवाब देंहटाएंmoon pram ki bhawna hai
ati sunder
प्रेम जब गहरा जाता है... मौन भी मुखर हो जाता है---- सुन्दर भाव। अच्छी रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंमौन के मुखर होने की सुन्दर अभिव्यक्ति बेहद उम्दा है दिल को छूती है।
जवाब देंहटाएंमौन मुखरित हुआ , हम झांक आये . मन प्रफुल्लित हुआ इस उत्कृष्ट कविता से .
जवाब देंहटाएंहो जाती है स्वतः ही
जवाब देंहटाएंठंडी जब अगन
शांत चित्त से फिर
होता है कुछ मनन
मौन भी हो जाता है
फिर से मुखरित ... gahri abhivyakti
मन गीत गाता है
जवाब देंहटाएंविहग बन आसमान में
उड़ जाना चाहता है ..
--
जी हाँ मन ऐसा ही होता है!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
मौन मौन भी रहे तो बहुत कुछ कह जाता है, मौन जब मुखरित होता है तो फिर जो कहता है - वह अद्भुत होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव.
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसच है सब मन के भाव हैं...मौन को मुखरित होते देर नहीं लगती ..सुन्दर कविता .
जवाब देंहटाएंयह मुखरित मौन ....इसको कैसे अभिव्यक्त करें ....
जवाब देंहटाएंप्रेम पूरित मोवस्था ka बड़ा ही प्रभावशाली निरूपण किया है आपने...
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी अतिसुन्दर कविता...
हो जाती है स्वतः ही
जवाब देंहटाएंठंडी जब अगन
शांत चित्त से फिर
होता है कुछ मनन
सुंदर रचना -
मन के बदले हुए भावों से बदल जाता है दृष्टिकोण -
.
जवाब देंहटाएंमौन भी हो जाता है
फिर से मुखरित ....
वाह ! उम्दा अभिव्यक्ति !
.
मौन की आवाज बड़ी तीव्र होती है. इतनी तीव्र कि हमारे सामान्य कान उसे सुन नहीं पाते. जो सुन पाते है उनकी बात दुनिया वाले नहीं मानते. यही द्वंद है जो सदियों से चल रहा है और आगे भी चलेगा अनवरत..लगातार...लेकिन सुनना तो पडेगा मौन को ही क्योकि वही मूल स्वर, मूल एहसास है.
जवाब देंहटाएंमेरे लिये तो बस ही मौन ही आज सर्वोत्तम टिप्पणी है!!
जवाब देंहटाएंमौन ही मुखर होकर कविता में पुष्पित हो जाता है - सुन्दर विचार !
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त - सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंMummmma
जवाब देंहटाएंbahut sunder kavita..:)
badhayi aur shukriya bahut sara..
:)
pranaam mumma.....